जिंदगी की तलाश में हम, मौत के कितने पास आ गए !

जिंदगी की तलाश में हम, मौत के कितने पास आ गए !

जिंदगी बचाने की होड़ कुदरत के कायदे रहे तोड़

 पारा पहुंचा 47 डिग्नी के पार तो बहुत याद आए वृक्ष छायादार
-राहुल सावर्ण

वाराणसी (रणभेरी )। नौतपा की बेपनाह गर्मी में भले ही धन्नासेठ अपने घरों में एसी लगवाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हो, लेकिन इस भीषण गर्मी में आज गरीब और मध्यवर्गीय लोग उस हरे पेड़-पौधों को याद कर रहे जिसके छांव में कभी उनका बचपन बीता था। समय के बदलाव ने मानव जीवन को इस कदर बेबस और बेरहम कर दिया जिसके जाल में फंसकर लोग खुद आज अपनी जिंदगी की  नई दुनिया तलाश रहे। घर में भले एसी के तले ठंड मिल जाती होगी लेकिन घर से बाहर निकलने के बाद फिर उसी हरे पेड़ की याद आती है जिसे काटकर उसने गांव से दूर शहर में एक नई दुनिया बसाई थी। सपनों की रंगीन दुनिया को ढूंढते ढूंढते इंसान मौत के कितने करीब आ पहुंचा है, उसका उसे अंदाजा नहीं है। ज्ञातव्य हो कि वृक्षों के अंधाधुंध कटान से मानव जीवन बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। जेठ के महीने में पारा 47 डिग्री को पार कर गया है। आग उगलती जमीन और सिर पर सूर्यदेव की तपिश से बचने के लिए पेड़ों की छाया ढूंढी जा रही है, लेकिन यही आलम रहा तो कुछ ही दिनों में यह हरे पेड़ की  छाया दूर तक नसीब नहीं होगी। हरे-भरे वृक्ष माफियाओं की जकड़न में हैं। पेड़ मरते जा रहे हैं और प्रशासन इस विनाश को होते देख रहा है। वह दिन दूर नहीं जब  शहरों में दूर तक पेड़ नहीं दिखेंगे। होंगी तो बस कंक्रीट कंस्ट्रक्शन और तपती सड़कें और खुला आसमान।  शहरों में सालो साल सैकड़ों बीघा हरे-भरे बाग, सड़क किनारे लगे पेड़-पौधे और वन विभाग के जंगल को उजाड़ दिया जा रहा है। जबकि, हर साल लगाए जाने वाले पौधे देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं। शहर कस्बा के इर्द-गिर्द हरे-भरे पेड़ों को काटकर प्लाटिंग कर दी गई है। जिस कारण फिजा और पर्यावरण में जहर घुलता जा रहा है। ऐसे में जहां प्राणवायु यानी आॅक्सीजन की कमी होने लगी है, वहीं मौसम का चक्र भी पूरी तरह बिगड़ गया है।
बढ़ रहे कार्बनडाइ आक्साइड की मात्रा: वायुमंडल में कार्बनडाइ आक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। सांस लेना भी दुभर होता जा रहा है। बिगड़ते वायुमंडल के चलते सांस, संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो रही हैं। ऐसे में हम सभी को वृक्षों को सहेजने की तरफ बढ़ना होगा। इससे प्राणवायु का स्तर सुधारेगा और पर्यावरण भी बचाया जा सके। पेड़ों की लगातार कटाई होने की वजह से दिन प्रतिदिन वन क्षेत्र घटता जा रहा है। यह पर्यावरण की दृष्टि से बेहद चिंतनीय है। जीवन के लिए घातक है। विभिगीय अधिकरियों की मिलीभगत से पेड़ों को काटाकर वृक्षों के संरक्षण के लिए बने नियम और कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इससे प्राकृतिक संरचना बिगड़ रही है। जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो रहा है।


फेफड़ों को आक्सीजन नहीं मिलने से फैल रहीं बीमारी: डॉक्टरो की माने तो जीवन के लिए आॅक्सीजन जरूरी है। यदि आक्सीजन नहीं होगी, तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए आक्सीजन को बचाने के लिए वृक्षों को बचाना जरूरी है। इंसान जो सांस छोड़ता है, वह कार्बनडाई आक्साइड होती है। वृक्ष वायुमंडल में फैली इसी कार्बनडाई आक्साइड को ग्रहण करते हैं और इसके बदले आॅक्सीजन छोड़ते हैं। लेकिन, वर्तमान में जिस तेजी से वृक्षों का दोहन किया जा रहा है, यह मानव जीवन के लिए संकट के द्वार उत्पन्न कर रहा है। कभी बाढ़, बेमौसम बरसात, , मृदा कटान आदि ऐसी तमाम आपदाएं हैं, जो लगातार लोगों की मुश्किलें बढ़ा रही है। पेड़ों के कटान के चलते वायुमंडल में आक्सीजन की 40 फीसद तक की गिरावट आ चुकी है। 


हर साल लगते हैं करोड़ों के पौधे, देखरेख पर ध्यान नहीं: बरसाती मौसम में हर वर्ष करोड़ों रुपये की लागत से पौधरोपण किया जाता है। वन जंगल, सड़क, हाईवे और नदी किनारे कई क्षेत्रों में पौधरोपण किया जाता है। नेतागण, प्रशासनिक अफसर और वन विभाग के अधिकारी पौधरोपण के दौरान फोटो खिंचवाने तक सीमित रहते हैं, लेकिन इन पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी के नाम पर वन विभाग के अधिकारी आंखें बंद कर बैठक  जाते हैं। 

पेड़ों की निरंतर कटाई होने से हरे-भरे पेड़ पौधे खत्म हो गए हैं। दूसरी ओर, शहर के चारों ओर कंकरीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। बढ़ती आबादी व माइग्रेशन की वजह से इमारतों का कंस्ट्रक्शन लगातार हो रहा है। इसी वजह से पानी व बिजली पर अधिक दबाव पड़ रहा है। इसी से गर्मी के तेवर तीखे नजर आ रहे हैं। -एडवोकेट नमिता झा

छायादार पेड़ों की संख्या निरंतर कम हो रही। इसके साथ ही  फैक्ट्रियों, बिजली संयंत्र और वाहनों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन मोनोआक्साइड, फ्रेयान गैस,  आदि के बढ़ते स्तर के कारण  ओजोन की परत का छाय हो रहा है। बढ़ते एसी के कारण उससे निकलने वाले फ्रेयन वातावरण के साथ साथ ओजोन लेयर को भी प्रभावित कर रहा है। ओजोन लेयर के छय के कारण वातावरण में बहुत अधिक गर्मी हो रही है। वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। लोगों को पौधे लगाने के लिए जागरूक करना पड़ेगा। -डॉ. प्रद्दुम्न राय

लगातार और तेजी से हो रहा भूमंडलीय परिवर्तन के कारण वर्षा चक्र अनियमित होता जा रहा है। कुल भू क्षेत्रफल का 33 फीसद में वन होने चाहिए लेकिन 14 फीसद ही वन क्षेत्र हैं । कृषि भूमि और वनों को कंकरीट के जंगल तेजी से निगलते जा रहे हैं जिसके कारण भूमि में जल संग्रहण क्षमता कम होती जा रहीं है। कार्बन उत्सर्जन चरम पर है। हर घर वातानुकुलित होते जा रहे हैं और वातानुकूलन संयन्त्रों से उत्सर्जित गर्मी से वातावरण धधक रहा है। हम सभी को छायादार हड़े पेड़ लगाने की जरूरत है। -अरुण कुमार त्रिपाठी

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, कंक्रीट की इमारतों की बढ़ोतरी, अनियंत्रित आबादी , पड़ोसी देशों में आर्टिफिशियल बरसात की अधिकता, ओजोन परत की क्षति, एयरकंडीशनर की बहुलता, आदि वे प्रमुख कारण समझ आते हैं जिनके चलते गर्मी बढ़ रही है ।भारत में बढ़ता वाहनों का प्रदूषण, कटते जंगल और विकासशील देशों में बढ़ता ग्रीनहाउस गैस प्रभाव, सूखते जल संसाधनो के कारण गर्मी के तेवर तीखे होते जा रहे हैं। -डॉ. राज यादव

बेतहाशा गर्मी का कारण है पेड़पौधों और हरियाली की कमी का होना। शहर के बीचोंबीच ऊंची इमारतों में बढ़ोतरी हुई है। सरकार भी विकास के नाम पर हरियाली को नष्ट कर रही है। बारिश के मौसम में बहुत सा पानी, नालों में बहकर व्यर्थ चला जाता है। उसका सदुपयोग नहीं हो रहा है। लोगों को पेड़ पौधे लगाना चाहिए वरना आने वाले दिनों में इसके दुष्परिणाम भयावह होंगे। -फकीर धीरज बाबा

जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है जो बेहद चिंतनीय है । मानवीय गतिविधियों जैसे जीवाश्म ईंधनों का जलाना और वनों की कटाई से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। ये गैसें वातावरण में तापमान बढ़ा रही हैं, जिससे हीटवेव्स और गर्मी की तीव्रता बढ़ रही है। साथ ही भौतिक संसाधनों का दुरूपयोग प्राकृतिक संरचना को विकृत कर रहा है ऐसे में तमाम विसंगतियों का प्रभाव देखने को मिल रहा है । -रत्नेश तिवारी चंचल