आज आकाश से बरसेगा अमृत
वाराणसी (रणभेरी सं.)। अश्विनी मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस पूर्णिमा का बहुत ही खास महत्व है। सनातन धर्म में आज की रात आकाश में चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर निकलते हैं और उनकी किरणें धरती पर अमृत की बूंदे बरसाती है। ज्योतिषाचार्य महेंद्र तिवारी ने बताया कि पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी एरावत हाथी पर सवार होकर भूमंडल का भ्रमण करती हैं। देखती हैं कि कौन-कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
शरद पूर्णिमा का एक नाम "कोजागरी पूर्णिमा" भी है। यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।आयुवेर्दाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।
चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है... चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। ज्योतिष आचार्य महेंद्र तिवारी ने कहा की शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।