महाकुंभ में ही होगा हिंदू शब्द के दुष्प्रचार का अंत

वाराणसी (रणभेरी सं.)। कुंभक्षेत्र प्रयागराज में आयोजित परमधर्म संसद में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती के समक्ष शास्त्रों की महत्वपूर्ण व्याख्या की गई। शंकराचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि शास्त्रों के अनुसार जहाँ अपूज्य की पूजा होती है और पूज्य की पूजा में विकृति होती है, वहाँ दुर्भिक्ष, मरण और भय उत्पन्न होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान समय में हिन्दुओं में यह बीमारी तेजी से फैल रही है, और यह स्थिति बनी हुई है कि पूज्य देवताओं के मन्दिरों में भी अपूज्यों की पूजा का प्रचलन हो रहा है। इस सन्दर्भ में परमधर्मसंसद के इस सत्र में हिन्दुओं के उपास्य देवताओं पर विचार विमर्श किया गया। शङ्कराचार्य ने कहा अचेतन और अयोग्य की पूजा किसी भी दशा में नहीं की जा सकती और सही पूजा विधि के अनुसार पंचायतन पूजा करनी चाहिए, जिसमें पाँच प्रमुख देवताओं झ्र सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति और गणेश की पूजा की जाती है। शंकराचार्य ने कहा कि हर हिंदू को सामान्य धर्मों का पालन करने के साथ-साथ अपना नाम, पिता, दादा का नाम, गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, शिखा, सूत्र, कुलदेवी, देवता की जानकारी होना जरूरी है। इसके साथ ही कंठी या जनेऊ संस्कार, तिलक, चोटी धारण करना और हिंदू तिथि से मनाए जाने वाले पर्व मनाना अनिवार्य है। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू शब्द प्राचीन है। वेदों में भी इसके प्रमाण हैं और वर्णन भी मिलता है। हिंदू शब्द को लेकर जो भ्रामक प्रचार किया जा रहा है वह गलत है। हिंदू शब्द के लिए होने वाले इस दुष्प्रचार का निवारण महाकुंभ में ही होगा। हिंदू शब्द का वेदों के साथ ही स्मृतियों, पुराणों और तंत्र साहित्य में भी उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि हिन्दू शब्द को लेकर चल रही भ्रांतियों का निराकरण अत्यंत आवश्यक है। भारत के विभाजन के समय हिन्दू शब्द के दुष्प्रचार के कारण कई लोगों ने खुद को हिन्दू मानने से इंकार कर दिया और अन्य नामों का चयन किया, जिसका परिणाम पंजाब का विभाजन था। हिन्दू शब्द न केवल प्राचीन है, बल्कि यह वेदों, स्मृतियों, पुराणों और तंत्र साहित्य में भी परिभाषित हुआ है।
हिन्दू तिलक,चोटी और संस्कारों का करे पालन
शंकराचार्य ने यह स्पष्ट किया कि हिन्दू शब्द वेदों से उत्पन्न हुआ है और यह हमारे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हिन्दू आचार संहिता में बताया गया कि हिन्दू वह है जो हिंसा से दूर रहे, सदाचार में तत्पर हो, गाय की सेवा करे, वेदों का पालन करे और मूर्तिपूजा में श्रद्धान्वित हो। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हर हिन्दू को अपने वंश, गोत्र, वेद, शाखा, कुलदेवी और अन्य धार्मिक पहचान के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, हिन्दू धर्म के सामान्य और विशेष रूपों का पालन करना अनिवार्य है, जिसमें तिलक, चोटी और संस्कारों का पालन आवश्यक है।