मां की जयकारों से  गूंजा शिव की  काशी का चप्पा-चप्पा

मां की जयकारों से  गूंजा शिव की  काशी का चप्पा-चप्पा

बैरिकेडिंग के साथ भक्तों के लिए बिछाई रेड कार्पेट, पहली बार बाबा धाम में दर्शन देंगी माता रानी

वाराणसी (रणभेरी सं.)। नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं, लेकिन उन्होंने रहने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी को चुना। बनारस में वरुणा नदी के किनारे मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है। पूरे भारत में ये इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां खुद से विराजमान हुईं। जबकि दूसरे शक्तिपीठों में मां की प्रतिमा और पिंडियों के दर्शन होते हैं। सुबह से ही माता के दरबार में भक्तों की लम्बी कतार लगी हैं। मां शैलपुत्री मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि मान्यता है कि जब माता किसी बात पर भोलेनाथ से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गईं, तो कुछ दिनों बाद बाबा उन्हें मनाने यहां आए। उन्होंने देखा कि मां वरुणा नदी के किनारे उनकी तपस्या कर रही थीं। तब महादेव ने उनसे वापस कैलाश चलने का आग्रह किया। लेकिन मां को ये जगह इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने वापस जाने से मना कर दिया। उन्होंने बताया कि मां चलने से इनकार किया तो महादेव उनको काशी में अकेला छोड़कर वापस कैलाश चले गए। तब से माता यहीं विराजमान हैं।
नवरात्र के पहले दिन घरों से लेकर शहर के देवी मंदिरों में कलश स्थापित कर मां की आराधना की गई। काशी विश्वनाथ धाम में पहली बार कलश स्थापना करके नवरात्रि का पूजन और उत्सव आयोजित किया गया। गुरुवार को प्रतिपदा में प्रात: पांच शास्त्री मंदिर परिसर में कलश स्थापित करके मां दुर्गा का आह्वान किया गया। शाम को भजन और बनारसी लोकगीत पचरा का आयोजन होगा। पांच शास्त्रियों द्वारा नौ दिन तक अनवरत दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ होगा। इसके साथ ही नौ दिन माता विशालाक्षी को चुनरी, सोलह शृंगार व प्रसाद बाबा विश्वनाथ की ओर से भेजी जाएगी। इसके साथ ही नवरात्रि में हर दिन नौ देवियों के अलग-अलग सिद्ध पीठों में चुनरी, सोलह शृंगार व प्रसाद भेंट किया जाएगा। नवरात्र की प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री के दर्शन पूजन का विधान है। आधी रात के बाद मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की कतार लगी रही। मंदिर में भक्तों की भीड़ को देखते हुए बैरिकेडिंग की गई है। वहीं दुगार्कुंड, मां विशालाक्षी सहित शहर के सभी दुर्गा मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रबंध किए गए हैं।

12 को काशी विश्वनाथ धाम में होगी शस्त्र पूजा

चार अक्तूबर को रामलीला में धनुष यज्ञ का मंचन मंदिर चौक पर होगा। पांच अक्तूबर को राम द्वारा रावण वध का मंचन, छह अक्तूबर को बंगाली लोक नृत्य धुनुची का आयोजन होगा। सात अक्तूबर को 51 मातृशक्तियों द्वारा ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाएगा। आठ अक्तूबर को महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पर नृत्य, नौ अक्तूबर को देवी मां का भजन, 10 अक्तूबर को माता के नौ स्वरूपों को दशार्ती नौ कन्याओं द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ होगा। 11 अक्तूबर को प्रात:काल नीलकंठ मंदिर के समीप यज्ञ कुंड पर हवन औरशाम को भजन व नृत्य का आयोजन होगा। दशमी तिथि पर 12 अक्तूबर को सुबह सांकेतिक रूप से शस्त्र पूजा मंदिर प्रांगण में की जाएगी। शाम को शास्त्रीय युद्ध कला का प्रदर्शन मंदिर चौक पर होगा।

पहली बार विश्वनाथ मंदिर में दर्शन देंगी माता रानी

काशी में इस बार पहला मौका होगा जब श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में 9 दिनों तक नौ देवियों के अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाएगी। विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ने इस बार शारदीय नवरात्र को लेकर विशेष तैयारी की है। काशी विश्वनाथ के धाम में माता गर्भगृह में विराजमान होगी और मंदिर परिसर में कलस की स्थापना भी की जाएगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्रा ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर परिसर में कलश स्थापना करने के साथ ही समस्त धार्मिक अनुष्ठानों को 9 दिनों तक पूरा किया जाएगा।

खरीदारी के लिए बाजारों में लगी दुकानें

जनपद में गुरुवार की देर रात तक बाजारों में पूजा सामग्री खरीदने वालों की भारी भीड़ रही। कलश स्थापना के लिए लोगों ने कलश, चुनरी, नारियल, जौ, अगरबत्ती, गुघुल, शहद, मिष्ठान, फल और नए वस्त्र आदि की खरीदारी की। पूजा सामग्री की दुकानों के अलावा माता दुर्गा की मूर्तियां खरीदने के लिए भी बाजारों में भीड़ है। इस बार माला 10 रूपए से 500 रूपए तक माता की चुनरी 5 रूपए से 2 हजार रूपए तक इसके आलावा पूजा की पूरी डोली 100 रूपए से 5 हजार रूपए तक मिल रही हैं।