सीएम योगी के साथ अपने ही कर रहे विश्वासघात

- वीडीए के भ्रष्टाचार पर जनप्रतिनिधियों की चुप्पी क्यों?
- मंत्री, विधायक, मेयर, पार्षद... सबके सब हैं मौन
- जीरो टॉलरेंस के दावे में है अगर दम तो वीडीए कर्मियों के सम्पत्ति की जांच करवा ले सरकार
- अवैध निर्माण के लिए वीसी से लेकर जोनल, जेई और बाबू तक भ्रष्टाचार में लिप्त
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के साथ ही यह ऐलान किया था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाएगी। उनकी यह नीति केवल कागजों में नहीं, बल्कि मैदान में भी असर दिखाए, ऐसी उम्मीद जनता ने की थी। लेकिन जब प्रदेश की धार्मिक राजधानी वाराणसी की बात आती है, तो तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में ही एक ऐसा विभाग है जो खुलेआम मुख्यमंत्री की छवि को ठेंगा दिखा रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) वो संस्था है जो अवैध निर्माण, भू-माफिया गठजोड़, नक्शा स्वीकृति में धांधली, और सरकारी आदेशों की अनदेखी का जीता-जागता उदाहरण बन चुकी है। और हैरानी की बात यह है कि इस सबके बीच स्थानीय जनप्रतिनिधि, चाहे वे विधायक हों, मंत्री हों, मेयर हों या पार्षद...सबके सब खामोश हैं। सवाल यह उठता है कि क्या ये चुप्पी संयोग है या साजिश ? क्या यह भ्रष्टाचार में साझेदारी है या फिर राजनीतिक सुविधा की चुप्पी ? वाराणसी के अलग-अलग इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण हो रहा है। न तो इन निर्माणों के लिए वैध मानचित्र स्वीकृत हुआ है और न ही ऐसे निर्माणों में सुरक्षा मानकों का पालन किया गया है। गंगा किनारे और एचएफएल क्षेत्र से लेकर अस्सी, नगवां, भेलूपुर, लंका, शिवाला, सोनारपुरा, गोदौलिया, सुंदरपुर, शिवपुर, रामनगर, मंडुआडीह, सामने घाट, रामघाट, दशाश्वमेध जैसे इलाकों तक, हर जगह नियमों को ताक पर रखकर बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं। लेकिन इनमें से किसी निर्माण को लेकर न तो विधायक सवाल उठा रहे हैं, न मंत्री, न महापौर और न ही स्थानीय पार्षद। प्रथम नागरिक के रूप में वाराणसी नगर के महापौर का ओहदा बेहद सम्मानित होता है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से महापौर होने के कारण अशोक तिवारी को सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व के अत्यंत करीब माना जाता है। अशोक तिवारी का दायरा पूरे शहर में फैला है, लेकिन आज तक उनका एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस या ऐसा बयान नहीं आया जिसमें उन्होंने वीडीए की कार्यशैली पर सवाल उठाया हो। महापौर अशोक तिवारी को कभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भ्रष्टाचार विरोधी नीति का समर्थन करते भी न देखा गया न सुना गया। वार्ड स्तर पर पार्षदों को अपने क्षेत्र की गतिविधियों की जानकारी सबसे पहले होती है, लेकिन उनकी भी चुप्पी संदेह पैदा करती है। क्या इन सभी की चुप्पी भी भ्रष्टाचार में हिस्सेदारी का संकेत है ?
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी से तार तार हो रहा सीएम का संकल्प
जनता की ओर से चुने गए जनप्रतिनिधि... विधायक, मंत्री, मेयर, पार्षद यदि केवल फीता काटने, मंच साझा करने और फोटो खिंचवाने तक सीमित रह जाएं, तो यह लोकतंत्र के साथ विश्वासघात है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में भ्रष्टाचारमुक्त शासन और प्रशासनिक पारदर्शिता का संकल्प लिया है, लेकिन उनके अपने ही पार्टी के जनप्रतिनिधि ही इस संकल्प को खोखला कर रहे हैं, अपने मुख्यमंत्री के दृढ़ संकल्पों के साथ धोखा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आठ विधायक, एक मेयर, वीडीए बोर्ड में शासन के तीन प्रतिनिधि, महानगर अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष और एक एमएलसी हैं, फिर भी विकास प्राधिकरण (वीडीए) भ्रष्टाचार का सर्वोच्च अड्डा बना हुआ है। वाराणसी कैंट से सौरभ श्रीवास्तव, उत्तरी से रविंद्र जायसवाल, दक्षिणी से नीलकंठ तिवारी, पिंडरा से अवधेश कुमार सिंह, अजगरा से त्रिभुवन राम, रोहनिया से सुनील पटेल, सेवापुरी से नील रतन सिंह, शिवपुर से अनिल राजभर, मेयर अशोक तिवारी, वीडीए बोर्ड सदस्य प्रदीप अग्रहरि, साधना वेदांती, अंबरीष सिंह भोला, जिलाध्यक्ष व एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा और आयुष मंत्री डॉ.दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ जैसे जनप्रतिनिधियों की लंबी फेहरिस्त है। फिर भी, वाराणसी में गैरकानूनी निर्माण, अवैध अतिक्रमण, फर्जी मानचित्रों की स्वीकृति और आम जनता, पीड़ितों की अनदेखी आम बात हो गई है। वीडीए के भ्रष्टाचार पर कोई भी जनप्रतिनिधि आवाज उठाना या विरोध दर्ज कराना तो दूर बल्कि एक शब्द सुनना भी नहीं चाहतें। यह शर्मनाक है कि सीएम की सरकार के एक भी विधायक सीएम के संकल्प के समर्थन में न ही बोलते हुए सुने जाते हैं और न ही देखे जाते हैं। सत्ता पक्ष के सभी जन प्रतिनिधि निर्वाचित हो या फिर मनोनीत हो सारे के सारे एक साथ खामोशी की चादर ओढ़े हुए हैं और मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हैं। यह सवाल बेहद गंभीर है कि क्या ये सभी जनप्रतिनिधि भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन चुके हैं ? क्या ये मुख्यमंत्री के संकल्प से विमुख हो चुके हैं ? या फिर सत्ता के मोह में जनता से किया गया वादा भूल गए हैं ? जब शासन के नुमाइंदे ही आँखें मूंद लें, तो जवाबदेही तय करना आवश्यक हो जाता है। वरना “भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश” केवल एक नारा बनकर रह जाएगा।
मुख्यमंत्री को देना होगा सख्त संदेश
अगर वाकई "जीरो टॉलरेंस" की नीति में दम है, तो वीडीए से जुड़े सभी कर्मचारियों, अफसरों और अधिकारियों की संपत्ति की जांच तत्काल शुरू होनी चाहिए। जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतें हैं, उन्हें बर्खास्त करने की कार्यवाही हो। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि भविष्य में कोई भी अफसर सत्ता और पैसे के गठजोड़ से जनता के हक को न कुचल सके।
जब तक यह कार्रवाई नहीं होती, तब तक जनता को यह हक है कि वह यह पूछे कि क्या वाकई सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस रखती है या यह नारा केवल जुमला भर है ?
भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक क्या कदम उठे और क्यों रहे नाकाफी ?
पिछले कुछ वर्षों में वीडीए के कुछ अधिकारियों पर निलंबन, विभागीय जांच या तबादले जैसी कार्रवाइयां हुई हैं, लेकिन ये सारे कदम सिर्फ दबाव या दिखावे के लिए उठाए गए प्रतीत होते हैं। अधिकतर मामलों में दोषी अधिकारियों को जल्द ही बहाल कर दिया गया, और जांच फाइलें धूल फांकती रहीं। कुछ वर्ष पूर्व एक प्रमुख ज़ोनल अधिकारी पर फर्जी नक्शा पास कराने और रिश्वत लेने के गंभीर आरोप लगे थे, लेकिन उन्हें कुछ ही महीनों में क्लीन चिट देकर वापस उनकी कुर्सी पर बैठा दिया गया। इसी तरह एक जूनियर इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा हुई, लेकिन आज वही अधिकारी एक और ज़ोन में मलाईदार पोस्टिंग पर तैनात है। भ्रष्टाचार के मामलों में बार-बार एक ही पैटर्न दोहराया गया है। मीडिया में खबरें आने पर एक-दो दिन की हलचल, फिर 'पाईप हटाओ' या 'शटर खोलो' जैसी प्रतीकात्मक कार्रवाई, और अंत में मामला ठंडे बस्ते में। यह स्पष्ट संकेत है कि जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी, तब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए सारे कदम सिर्फ नौटंकी ही रहेंगे।
वीसी से जोनल तक की काली सच्चाई
वीडीए के शीर्ष अधिकारी वीसी (उपाध्यक्ष), जोनल ऑफिसर, जूनियर इंजीनियर और बाबू...सभी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के गंभीर आरोप हैं। यह आरोप उस पीड़ित जनता का है जिसने अपनी मेहनत की कमाई से मकान का निर्माण करवाया लेकिन इस दौरान वे वीडीए के अधिकारियों के अवैध वसूली के शिकार बने।
नक्शा पास कराने के लिए मोटी रकम की मांग, अवैध निर्माण पर आंखें मूंद लेना, और दिखावटी कार्रवाइयों के पीछे असली दोषियों को बचा लेना, यह वीडीए की नियमित कार्यप्रणाली बन चुकी है। सूत्रों की मानें तो अवैध निर्माण की सूचना पहले ही जोनल और जेई को मिल जाती है, लेकिन वे मौन रहते हैं। जब मीडिया या कोर्ट का दबाव बनता है तब जाकर पाईप हटाने जैसी प्रतीकात्मक कार्रवाई की जाती है, जिससे असल निर्माण बचा रहता है। इस तरह से यह पूरा तंत्र आम जनता को धोखा देता है और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण।
करोड़ों की संपत्ति, वेतन से परे की कमाई
वीडीए के कई अधिकारियों के पास आय से अधिक संपत्ति होने के गंभीर आरोप हैं। एक जेई जिसकी सरकारी तनख्वाह महज 50–60 हजार प्रतिमाह है, उसके नाम वाराणसी और आस-पास के जिलों में प्लॉट, फ्लैट और व्यापारिक संपत्तियां हैं। कई बाबू ऐसे हैं जो अपने रिश्तेदारों के नाम पर संपत्ति खरीद चुके हैं। ये सभी बेनामी संपत्तियां भ्रष्टाचार से कमाई गई पूंजी की ओर इशारा करती हैं। सरकार यदि अपने "जीरो टॉलरेंस" के दावे को सही साबित करना चाहती है, तो उसे इन अधिकारियों की संपत्तियों की जांच करानी चाहिए, दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।
पार्ट-37
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