गोली-बंदूक की दुकान पर प्रचार, 'पाइए मां की गोद जैसा आराम'
गोरखपुर। गोली-बंदूक का धंधा चौपट होने से दुकानदारों ने अब उन्हीं दुकानों पर रजाई-गद्दों का साइड बिजनेस भी शुरू कर दिया है। दुकानों का किराया निकालने के लिए दुकानदारों को यह रास्ता चुनना पड़ा है।
गोली-बंदूक की दुकानों पर प्रचार के लिए स्लोगन लिखा दिखाई दे-पाइए मां की गोद जैसा आराम... तो चकराएं नहीं। यह स्लोगन है तो रजाई-गद्दे बनाने वाली कंपनी का, मगर गोली-बंदूक के दुकानदारों को ऐसे ही तमाम स्लोगन पढ़वाकर ग्राहकों को अपना माल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। दरअसल, गोली-बंदूक का धंधा चौपट होने से दुकानदारों ने अब उन्हीं दुकानों पर रजाई-गद्दों का साइड बिजनेस भी शुरू कर दिया है। दुकानों का किराया निकालने के लिए दुकानदारों को यह रास्ता चुनना पड़ा है।
टाउनहॉल स्थित ऐसी कई दुकानों पर रजाई-गद्दे भी बिकते दिखाई देने लगे हैं
टाउनहॉल स्थित एक बंदूक विक्रेता ने बताया कि पहले एक दिन में कारतूस-बंदूक का लाखों का व्यापार होता था। लोग पहले से अपनी पसंद की राइफल और पिस्टल बुक कराते थे। इनका नंबर कई महीने बाद आता था। वहीं कारतूस के खरीदार भीड़ लगाए रहते थे।
शादी-विवाह में हर्ष फायरिंग के लिए गोलियां खरीदने के लिए लोग पैरवी कराकर आते थे। जब से बंदूक का लाइसेंस बनना बंद हुआ, तबसे दुकानदारों को इस व्यापार से खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है। इसलिए लोग इसके साथ ही साइड बिजनेस भी कर रहे हैं। टाउनहॉल पर असलहों की एक दुकान में गोली-बंदूक और रजाई-गद्दे के अलावा प्रॉपर्टी डीलिंग का भी काम हो रहा है। इस दुकान पर लगे बोर्ड पर लिखा है-जमीन खरीदने व बेचने के लिए संपर्क कर सकते हैं। इसी तरह बक्शीपुर के एक असलहा दुकानदार ने भी साइड बिजनेस शुरू कर दिया है। कई दुकानदार इसके साथ ही पोल्ट्री फॉर्म भी चला रहे हैं। उनका कहना है कि दुकान के भरोसे अब घर का खर्च नहीं चल सकता ।
कई दुकानदार शटर गिराकर घर बैठे
शहर में पहले लाइसेंसी असलहे की 25 दुकानें थीं। वर्तमान में आठ से 10 दुकानें तो हैं, लेकिन क्रियाशील केवल पांच-छह ही हैं, जहां पर असलहे बेचने और उनकी मरम्मत का कार्य होता है। वहीं टाउनहॉल पर ही तीन-चार दुकानों पर गन हाउस का बोर्ड तो दिखता है, लेकिन वह खुलती नहीं हैं। उसका शटर हमेशा गिरा रहता है। दुकानदार बताते हैं कि जो गन हाउस वाले साइड बिजनेस नहीं कर सके, वे घर बैठ गए।
लोग न जमा बंदूक लेने आते, न किराया जमा कराते
राजेश गन हाउस, गणेश गन हाउस, ब्रह्म शस्त्रालय, काजी इंन संस, रॉयल गन हाउस, अमर गन हाउस समेत कई नाम के बोर्ड लगी दुकानें आपको दिख जाएंगी, लेकिन इसमें कुछ ही खुली मिलेंगी। दुकानदारों का कहना है कि लोग कई साल पहले बंदूक जमा करके गए फिर उसे लेने नहीं आए, इससे दुकान भर गई है। ये लोग किराया भी जमा करने नहीं आते हैं। ऐसे में बंदूक पर जंग न लगे, यह भी देखना पड़ता है। प्रशासन को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए, ताकि दुकानों पर जमा बंदूकों का बोझ कम हो।