सुर-लय-ताल से यादगार बनी संगीत समारोह की अंतिम निशा

सुर-लय-ताल से यादगार बनी संगीत समारोह की अंतिम निशा
सुर-लय-ताल से यादगार बनी संगीत समारोह की अंतिम निशा

वाराणसी (रणभेरी)। श्री संकट मोचन संगीत समारोह का 101वे वर्ष की अंतिम निशा का समापन आज अल सुबह सूरज की पहली किरण के साथ हुआ और यह अपने आप में समारोह की अंतिम निशा यादगार बन गई । अंतिम निशा का शुभारंभ प्रख्यात शास्त्रीय गायक स्वर्गीय पंडित जसराज जी के शिष्य नीरज पारीक के गायन से हुआ। उन्होंने अपने गायन से एक बार तो पंडित जसराज जी की याद दिला दी उनके साथ तबले पर अंशुल प्रताप सिंह, हारमोनियम पर मोहित साहनी एवं सारंगी पर गोरी बनर्जी ने सुंदर संगत करके समारोह को और ही सुंदर बना दिया। इसके पश्चात दूसरी प्रस्तुति में मुंबई से आए युवा बांसुरी वादक यश आकाश का बांसुरी वादन हुआ उन्होंने अपने बांसुरी की आवाज से एक बार तो पूरा  परिसर कृष्णमय   बना दिया। उनके साथ तबले पर इशान घोष थे। इन दोनों ने बांसुरी और तबले की जुगलबंदी से श्रोताओं को देर रात तक आनंदित किया।इसके पास समारोह के अंतिम निशा की  तीसरी प्रस्तुति जिसका श्रोताओ को बहुत देर से इंतजार था। अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास जी के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा का पखावत से संगत करना। तीसरी प्रस्तुति में गायन के लिए जब गुंडेचा बंधु मंच पर पहुंचे तो महंत विश्वम्भर  नाथ मिश्रा भी पखावज लेकर मंच पर उत्तर पड़े और पूर्व  महंत अमरनाथ मिश्र की स्मृति को जिंदा कर दिया। उमाकांत- अनंत रामाकांत गुंडेचा के गायन में पखावज पर साथ दिया।  गुन्देजा बंधुओ ने जब राग पटिदीप  में चौताल में पारंपरिक बैजू बावरा की बंदिश' जय करतार करम करे' का अलाप लिया तो श्रोताओं में बड़ा ही शांत भाव से अलापचारी को सुना। उनके साथ पखावज पर प्रोफेसर महंत ने सुंदर संगत की, उनको पखावत बजाकर बजाते हुए देखकर यह कभी आभासी नहीं हुआ कि वह कुशल पखावज  पखावज वादक नहीं है। इसके बाद चौथी प्रस्तुति के रूप में प्रख्यात  गायिका कविता कृष्णमूर्ति स्मृति ने मंच संभाला और अपने गायकी से श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर दिया उन्होंने हनुमत प्रभु के आराध्य  राम की आराधना  हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की ये रामायण है पूर्ण कथा श्रीराम की प्रस्तुति कर सबको भाव विभोरकर दिया। सूरदास की रचना जागिए ब्रजराज कुमार कमल कुसुम फूले और फिर मीरा के भजन जो तुम तोड़ो पिया मैं नहीं तोड़ो रे की प्रस्तुति कर सबको भाव विभोर कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने एक दो फिल्मी फूलों को भी शास्त्री गायन के रूप में प्रस्तुत कर मंच को पूरी तरह से भक्तमय  में बना दिया।
बाबा से जो सीखा उसे हनुमान जी के चरणों  मे अर्पित किया : महंत विश्वम्भर नाथ मिश्रा 
वाराणसी (रणभेरी सं.)। श्री संकट मोचन संगीत समारोह के 101 वें  वर्ष में एक यादगार लम्हा भी गुरुवार को जुड़ गया जब अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के महंत प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्रा मंच से पखवाज वादन कर अपने पूर्वजों के परंपरा को जीवंत कर दिया। इसके पूर्व 1979 में उनके बाबा स्वर्गीय अमरनाथ मिश्रा ने पखावज पर इसी मंच पर संगत की थी। इस अवसर पर महंत विश्वम्भर नाथ मिश्र ने कहा कि वह कोई पखावज के प्रोफेशनल कलाकार नहीं है।  हमारे  बाबा ने जो कुछ सिखाया उसी को हनुमत चरणों में अर्पित कर रहा हूं । उन्होंने कहा कि संकट मोचन संगीत समारोह का यह मंच एक साधना स्थली है इस मंच पर देश के कलाकारों को स्थान दिया जाता है।  वह आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर  हनुमान जी की आराधना करते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत एक मयार्दा का हिस्सा है और यहां पर मयार्दा में रहकर साधना करनी पड़ती है वह एक मात्र संगतकार है।