डबल इंजन सरकार के हर दावे पर सवाल

रणभेरी को मिला है वीडीए के भ्रष्ट अफसरों के बात-चीत का दर्जनों आडियों क्लिप
ऑडियो में जोनल शिवा जी मिश्रा वीडीए अफसरों की हिस्सेदारी का कर रहे हैं बखान
वीडीए में भ्रष्टाचार की जड़े गहरी, बाबू से लेकर उच्चाधिकारियों तक की लंबी फहरिस्त
वही बन बैठा भ्रष्ट और निकम्मा जिसके हाथ शहर के विकास का है जिम्मा
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जब विकास प्राधिकरण के दफ्तरों से भ्रष्टाचार की गंध आती है, तब यह सिर्फ स्थानीय मामला नहीं रह जाता। यह सवाल उठाता है पूरे डबल इंजन सरकार के उस दावे पर, जिसमें भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की बात कही जाती रही है। रणभेरी को मिले दर्जनों स्टिंग ऑडियो में वीडीए के जोनल अफसर शिवा जी मिश्रा खुद स्वीकार करते सुने जा सकते हैं कि कैसे 'हम डील नहीं कर पाए' और 'सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते, कौन नहीं लेता' जैसी बातें खुलेआम कही जाती हैं। इन स्टिंग ऑडियो में कई वरिष्ठ अधिकारियों का नाम सामने आता है और यह संकेत मिलता है कि नक्शा पास कराने से लेकर निर्माण को वैधता दिलाने तक हर पड़ाव पर पैसे का खेल चलता है। जाहिर है, यह मामला सिर्फ एक अधिकारी का नहीं है, यह तो पूरे तंत्र की मिलीभगत का लक्षण है। और यही कारण है कि अब वक्त आ गया है, जब इस पूरे ऑडियो की फॉरेंसिक जांच होनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि कौन-कौन इस भ्रष्टाचार की चेन में शामिल है और पीएम के संसदीय क्षेत्र को आखिर किसने नीलाम करने का ठेका ले रखा है।
स्टिंग में मिले ऑडियो की होनी चाहिए फॉरेंसिक जांच !
काले कारनामों की कहानी जोनल शिवा जी मिश्रा की ज़ुबानी
वाराणसी विकास प्राधिकरण के जोन-1 के जोनल अधिकारी शिवाजी मिश्रा की बातचीत वाले कई ऑडियो क्लिप सामने आए हैं। इन क्लिप्स में मिश्रा न केवल यह स्वीकार करते हैं कि किस स्तर पर और किस अधिकारी के माध्यम से पैसा चलता है, बल्कि वे खुद को 'डील न कर पाने' को लेकर भी असहज दिखाते हैं। एक ऑडियो में वे कहते हैं..."हम डील नहीं कर पाए, वरना मामला निपट जाता...एक ऑडियो में तो बात चीत के दौरान शिवा जी मिश्रा ने गलत और सही के सवाल पर झुंझला कर कहा कि.....सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते, या कौन नहीं लेता... ? आप समझ रहे हैं ना ?" असल में शिवा जी मिश्रा ने अपनी बात में इस बात का दावा किया कि विकास प्राधिकरण में ऐसा कोई नहीं जो नहीं लेता हो, असल में तो अवैध वसूली के धन में नीचे से ऊपर तक सबकी हिस्सेदारी होती है। शिवाजी मिश्रा के एक वाक्य में ही पूरा भ्रष्टाचारी विभाग चौराहे पर नंगा खड़ा नजर आता है। सवाल है कि जब यह अफसर खुद ये सब जानता है, तो कार्रवाई क्यों नहीं होती ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हर स्तर पर साझेदारी का खेल चल रहा है ? रणभेरी के पास मौजूद स्टिंग ऑडियो में सिर्फ शिवा जी मिश्रा ही नहीं, कई और अधिकारियों और पदाधिकारियों का ज़िक्र आता है। इनमें सचिव स्तर के अधिकारी, अपर सचिव, नक्शा पास करने वाले इंजीनियर, और यहां तक कि निजी बिचौलियों के नाम भी सामने आते हैं। बातचीत से यह भी साफ होता है कि किसी भी अवैध निर्माण को वैध बनाने का एक 'रेट कार्ड' मौजूद है।
मानचित्र स्वीकृती से लेकर निर्माण तक भ्रष्टाचार की पूरी चेन
ऑडियो से जो बातें संज्ञान में आ रही हैं और विभागीय सूत्र जो बताते हैं उससे यह तो स्पष्ट हो रहा है कि धन्नासेठों के बड़े निर्माण के मानचित्र स्वीकृत कराने के डील की शुरुआत सबसे कम 2 लाख रुपए से होती है। निर्माण के दौरान कोई बाधा न आने के लिए मासिक 'कट' किया जाता है। ज़ोनल ऑफिसर से लेकर बाबू तक सबका हिस्सा बनता है। और जब कोई शिकायत करता तो उसे उल्टा ही डराया जाता है। यदि किसी भवन निर्माण के खिलाफ शिकायत आ जाए तो तत्काल पूर्व में हुई डील का टैरिफ रेट बदल जाता है। क्योंकि तब बहुत कुछ नए सिरे से मैनेज करना होता है। ऐसे मामलों में निर्माण कर्ताओं से की जाने वसूली का रेट बढ़ा दिया जाता है। और शिकायतकर्ता को दलालों के जरिए धमकी दिलवाई जाती है।
सीएम साहब, जनता पूछ रही है... कौन कौन लेता है ?
जब अफसर खुद कह रहा है कि सचिव नहीं लेते...अपर सचिव नहीं लेते या कौन नहीं लेता है? कहने का मतलब कि इस विभाग में कोई दूध का धुला नहीं बल्कि सारे के सारे अफसर लेते हैं। तो जनता पूछ रही है...क्या मुख्यमंत्री कार्यालय इसका जवाब देगा कि जीरो टॉलरेंस का दावा आखिर वीडीए पर लागू नहीं होता है क्या ? वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर हाल ही में रणभेरी को के पास ऐसे दर्जनों ऑडियो क्लिप सामने आए हैं जिसमें पूरे सिस्टम की सच्चाई को आईने की तरह साफ कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार भ्रष्टाचार मुक्त शासन और जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं, लेकिन जब अफसर खुद यह कह रहे हैं कि ऊपर के लोग लेते हैं, तो सवाल उठेगा ही कि इस पूरे तंत्र में लेन-देन की गंदगी फैलाने वाले लोग आखिर कौन कौन हैं ? क्या यह संभव है कि जोनल स्तर पर बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के भ्रष्टाचार वर्षों तक खुलेआम चलता रहे ?
जनता जानना चाहती है, अगर सचिव और अपर सचिव भी भ्रष्टाचार की इस कहानी में अहम किरदार निभा रहे है तो पाक-साफ कौन हैं, तो फिर भ्रष्टाचार की यह गाड़ी किसके इशारे पर चल रही है ? सीधे तौर पर क्या यह मान लिया जाए कि विकास प्राधिकरण के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार के नंगे नाच में मुख्य हीरो की भूमिका में पुलकित गर्ग ही है ? क्या स्थानीय विधायक, मंत्री, महापौर, या खुद मुख्यमंत्री कार्यालय तक अब तक इसकी जानकारी नहीं है ? और अगर है, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं ? यह सवाल अब जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है। दबी जुबान अधिकारी कहते हैं कि वे ऊपर के आदेश पर पैसा लेते हैं, और ऊपर के लोग चुप बैठे हैं। क्या यह चुप्पी विभाग के अधिकारियों के इस बात की पुष्टि कर रही है की ऊपर के आदेश पर ही वसूली होती है या फिर यह सब कुछ सीधे तौर पर शासन की नाकामी है ? मुख्यमंत्री कार्यालय को अब इस पर स्पष्ट जवाब देना चाहिए और ऑडियो की फोरेंसिक जांच करवानी चाहिए। जनता पूछ रही है। क्या जवाब मिलेगा ? अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हैं, तो इस ऑडियो की फॉरेंसिक जांच कराकर सच सामने लाना चाहिए और दोषियों को बेनकाब कर दंडित करना चाहिए। वरना यह मान लिया जाएगा कि लेने वाला कोई गुमनाम नहीं, बल्कि सत्ता और सिस्टम का ही हिस्सा है और यही सबसे बड़ा धोखा होगा उस जनता के साथ, जिसने ईमानदार सरकार के नाम पर वोट दिया था।
वीडीए में बहुत गहरी है भ्रष्टाचार की जड़ें
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) का काम शहर को योजनाबद्ध तरीके से विकसित करना है, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट नजर आती है। वीडीए में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि नियम-कानून और सरकारी आदेश भी सिर्फ कागजों तक सिमटकर रह गए हैं। अवैध निर्माणों को लेकर आए दिन जो खुलासे हो रहे हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि अधिकारियों की मिलीभगत के बिना एक भी ईंट नहीं रखी जा सकती। नक्शा स्वीकृति से लेकर निर्माण पूरा होने तक हर स्तर पर दलाली और घूसखोरी का खेल चलता है। कई मामलों में अधिकारियों द्वारा ही फर्जी नक्शे स्वीकृत कराए जाते हैं, जबकि गरीब जनता को नियमों का हवाला देकर परेशान किया जाता है। कुछ जोनल अधिकारी और इंजीनियर तो अवैध निर्माणों को खुला संरक्षण दे रहे हैं। इनके खिलाफ शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, उल्टे शिकायतकर्ता को ही परेशान किया जाता है। सूत्रों की मानें तो वीसी स्तर पर भी अनदेखी और राजनीतिक दबाव के चलते भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। जनता की उम्मीदों पर पानी फेरती यह व्यवस्था न केवल विकास की मूल भावना का अपमान है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस की नीति की भी सीधी अवहेलना है। जरूरत है एक ईमानदार और निष्पक्ष जांच की, जिससे भ्रष्टाचार की इन जड़ों को उखाड़ फेंका जा सके।
पीएम और सीएम की नीति की उड़ती धज्जियाँ
एक तरफ प्रधानमंत्री वाराणसी को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना दिखाते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं के क्षेत्र में सरकारी अफसरों के संरक्षण में भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति का क्या यही मतलब है कि अफसर खुलेआम लेनदेन की कहानी सुन रहे हैं,डील कैसे होती है यह बता रहे हैं, कौन पास हुआ कौन फेल हुआ इस पर चर्चा हो रही है, शहर के कौन-कौन से जनप्रतिनिधि सबसे ज्यादा अवैध निर्माण की पैरवी करते हैं उस पर भी चर्चा हो रही है, इन स्टिंग के ऑडियो क्लिप्स की जांच के साथ प्रमाणिकता की पुष्टि जरूरी है, और इसके लिए फॉरेंसिक जांच होना अनिवार्य है। यह जांच साबित कर सकती है कि आवाजें किसकी हैं, किस दिन और किस जगह रिकॉर्डिंग हुई। यदि सरकार वाकई ईमानदार है तो उसे तुरंत इन क्लिप्स को परीक्षण के लिए फॉरेंसिक लैब भेजना चाहिए।
पार्ट- 38
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए.....अस्सी क्षेत्र में जोनल के शह पर तैयार हो रहा एक और होटल।