काव्य-रचना

काव्य-रचना

   परिवार      

        मालारूपी परिवार पिरोया         
सबको एक धागे में संजोया
दुःख, सुख के हर घड़ी में
सब है एक दूजे के संग में ।।
हर स्तर का रूप दिखाता
एक चक्र में बचपन,युवा,वृद्धा का दृश्य दिखाता
कभी इन्हे ना कोई तोड़ पाया 
ऐसा संबंध प्रेम का जमाया।।
बुरा करे चाहे लाख जमाना
सदा निस्वार्थ सा आदर्श सिखाया
दादा दादी में जीवन का सार समाया 
जीवन की शैली का हर ढंग बताया।।
बिना इनके जीवन असंभव लगता
पूछो जिनपर साया रहा न इनका 
ये ना हो तो सुना आंगन लगता 
जब रहें ये खुशियां का साथ है रहता।।

कंचन गुप्ता