काव्य-रचना
एक कहानी.....
एक तरफ़ा ही सही मोहब्बत का नाम तो है
माना कोई हवेली नहीं पर हमारा मकान तो है
छत पर यूं तन्हा बैठा था मैं तुम्हारी याद में
हाथों में तुम्हारी हथेली न सही एक जाम तो है
तुम रख लो ये दिन ये धूप कोई शिकवा नहीं
मेरे पास ये तन्हाई से भरी बोझल शाम तो है
हैरां न हो मेरे दिल, इन टूटे फूटे ख्वाबों से
तेरे पास उम्मीदों को समेटने का काम तो है
तुम करो मेरी बुराई ज़माने भर में कोई गिला नहीं
अच्छा है कम से कम ये शक्स बदनाम तो है
रमेश बीएचयू