काव्य-रचना
आज के क्रान्तिचेता कवि करघे पर
बहुत समय पहले ही कबीर का करघा
कोई चुराया लिया है धरम...
चरखा तो गाँधी तक चला भी
वे बुनकरों पर कविता लिखते हैं
ताकि वे कबीर कहला सकें
कबीर नहीं तो कबीर के वंशज कहला सकें
कबीर होना इतना आसान नहीं है
कबीर इतना आसान होना भी इतना आसान नहीं है
कबीर हिंदी के पहले क्रान्तिचेता कवि हैं न!
वे कबीर पर लिखी कविता किसी ए.सी. कमरे में पढ़ते हैं
वे करघे के 'खाटी-राग' क्या जानें?
वे टेकुए की चुभन क्या जानें?
वे कपास का काला होना क्या जानें?
वे तानी की तान क्या जानें?
वे क्या जानें कि कैसे बुनी जाती है
करघे पर नई चेतना की नई चादर!
वे क्या जानें कि कपड़ों के थान का गान कैसा है
कि मानवीय रेज़े का रंग कैसा है
कि धरती की गति किस ढरकी की गति जैसी है!
वे कबीर के शब्द किताबों से सीखते हैं न?
वे धन्य हैं कि वे कबीर के कोविद हैं
और काशी धन्य है कि कबीर उसके यहाँ के हैं
और हम धन्य हैं कि कबीर पेश से हमारे पुरखे हैं!
गोलेन्द्र पटेल