काव्य-रचना
कर रहा हूँ अपना ये नाम तेरे पास..
वो जो गुज़ारी गयी शाम तेरे पास
कर रहा हूँ अपना ये नाम तेरे पास
चल रहे थे तेरे पाँव से हम पाँव मिलाकर
चल रहे हो जैसे लहरों से नाव मिलाकर
मेरा सार का सारा आराम तेरे पास
कर रहा हूँ अपना ये नाम तेरे पास
गीत गुनगुना रहे थे साथ मे हम जो
गा रहे थे गीत उस रात मे हम जो
सौंप रहा अपनी चीजें तमाम तेरे पास
कर रहा हूँ अपना ये नाम तेरे पास
बची जो जिंदगी है मेरी तेरे साथ गुजर हो
सांसों का मेरी हर पहर तुझमे ही बसर हो
वो जो गुज़ारी गयी शाम तेरे पास
कर रहा हूँ अपना ये नाम तेरे पास
-आयुष उपाध्याय