काव्य-रचना
बाल हनुमान
बहुरूपिये का रूप लिए
एक दिन देखा बाल हनुमान
जिह्वा उसकी रट लगाए
जय श्री राम जय श्री राम
मंत्रमुग्ध करे लघु रूप
लाल मुख बढ़ाए शान
कुलाँचे भर-भर सड़कों पर
निकला है गदा को थाम
पूँछ में बँधी छोटी सी घंटी
डाल रही किरदार में जान
पीछे लगी बच्चों की टोली
खिंच पूँछ करती परेशान
गली गली हर घर पर जाए
जाकर बोले जय श्री राम
पेट सहला कर करे इशारा
कहता दे दो भगवान के नाम
कहीं मिले मुट्ठी भर चावल
कहीं सिक्के तो कहीं अपमान
ईश्वर तेरी यह कैसी लीला
मंदिर में चढ़े लाखों का दान
ठुकरा रहे जो बाल रुप में
उन्हें पत्थर में ढूँढे वही इंसान
और कहते हैं सारे के सारे
कण कण बसते हैं भगवान
दर्द छुपा उसका हँसी के अंदर
भूख की मारी नन्ही सी जान
करने जुगाड़ रोटी का बालक
निकला बन कर बाल हनुमान
- आशीष कुमार