काव्य-रचना
माँ की याद मायके से
चली गई मां मेरी
जीवन से मुंह मोड़ कर
एक निर्वात सा.......
हम सबको जीवन में अकेला छोड़ कर......
जो कभी नहीं भर पाएगा
आपको इस तरह से खोकर
क्यों चली गई मां......
हमें यू विचधारा के भंवर में अकेला छोड़कर....
बस बेबस बेसहाय सी देखती रही
उन्हें पल-पल ख्वाबों में जाता देख कर
घर दरवाजे पर सदा वार जो हती मेरी मां
फिर घर जल्द आने का वादा लेकर छोड़ती मेरी मां,,,
खाने का ढेर सारा सामान और
साड़ी कपड़े लाड प्यार देना कभी न भूलती मेरी माँ........
मायके की दहलीज में उन्हें अब कभी न पाऊंगी..
कैसे कैसे कैसे वहां अकेली में रह जाऊंगी......
मां तेरी यादें अब जीवन में रहेंगे सदा..
पर प्रत्यक्ष में उन्हें कभी न पाऊंगी....
ममत्व और संस्कारों में था इतना अपनापन....
फिर वही मां मिले फिर वही परिवार मिले....
वही आंगन वही घर द्वार मिले.।..
वही खेत वही खलिहान वही संसार मिले
हे ईश्वर अब तुम मिले या ना मिले
अब मुझे मेरी वही मां मिले,,,,,,,,,
विवेक पाण्डेय