मेघा भगत ने दिया था काशी में रामलीला को विस्तार

सवा पांच सौ साल से अधिक है काशी की रामलीलाओं का इतिहास
अपने बलबूते या चंदा संग्रह कर होती हैं रामलीलाएं, आर्थिक संकट का सामना कर रही हैं रामलीलाएं
राधेश्याम कमल
वाराणसी (रणभेरी)। काशी में लगभग साढ़े पांच सौ साल पुरानी रामलीलाओं का गौरवमयी इतिहास रहा है। रामलीला का वर्तमान स्वरूप रामचरित मानस की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने रचा था। वैसे काशी में रामलीला के प्रवर्तक मेघा भगत माने जाते हैं। काशी में लगभग अस्सी रामलीला कमेटिया रामलीलाओं का मंचन करती हैं। लेकिन इनमें कई रामलीला कमेटियां आर्थक संकट के चलते या तो बंद हो गई हैं या फिर बंद होने की कगार पर चल रही हैं। इसके पीचे वजह यह है कि काशी में होने वाली रामलीलाओं को लेकर सरकार का रवैया कम उदासीन नहीं है। काशी की रामलीलाओं के लिए सरकार की ओर से लीला कमेटियों को कोई भी अनुदान नहीं मिलता है। सिर्फ रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला को छोड़ कर बाकी सभी रामलीलाएं या तो अपने बलबूत पर संचालित हो रही हैं या फिर चंदा एकत्र कर संचालित होती हैं। लेकिन अब पहले की तुलना में चंदा भी कम हो गया है। कई पदाधिकारी तो ऐसे हैं जो अपनी जेब से धन एकत्र करके रामलीला समिति को देते हैं। वैसे भी पिछले कई दशकों से काशी में दुर्गापूजा के बढ़ते वर्चस्व एवं चकाचौंध के चलते भी काशी की रामलीलाओं की चमक-दमक फीकी पड़ गई है। कोरोना काल के दौरान रामलीलाएं भी बाधित रही। काशी में रामलीला की शुरुआत अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर आश्विन शुक्ल पक्ष की शरद पूर्णिमा तक चलता है।
काशी की प्राचीन रामलीलाओं में वैसे तो कई रामलीलाएं संचालित होती हैं लेकिन इनमें मौनी बाबा की रामलीला (जतनबर), चित्रकूट रामलीला समिति (बड़ागणेश लोहटिया), आदि लाटभैरव (वरुणा संगम), भदैनी, चेतगंज, जैतपुरा, खोजवां, शिवपुर की रामलीलाएं काफी प्रसिद्ध हैं। काशी में रामलीला की शुरुआत करने का श्रेय मेघा भगत को दिया जाता है। मेघा भगत गोस्वामी तुलसी दास के समकालीन थे। जनश्रुतियों के मुताबिक तुलसीदास के महाप्रयाण के बाद मेघा भगत को प्रभु श्रीराम एवं लक्ष्मण के साक्षात दर्शन हुए थे। कहते हैं कि प्रभु ने मेघा भगत को काशी जाकर रामलीला प्रारंभ करने की प्रेरणा दी थी। उन्हीं की प्रेरणा से मेघा भगत ने काशी आकर रामलीला की शुरुआत की। गोस्वामी तुलसी दास के साथ काशी में दो रामलीलाएं शुरू हुई थी जिसमें एक चित्रकूट रामलीला समिति (लोहटिया) और दूसरी भदैनी की रामलीला थी।
528 साल पहले शुरू हुई थी मौनी बाबा की रामलीला
मौनी बाबा रामलीला कमेटी जतनबर की रामलीला का इस वर्ष 528 वर्ष है। यह रामलीला संवंत 1554 सन् 1947 ईस्वी में स्थापित हुई थी। यह रामलीला मौनी बाबा ने शुरू करायी थी। वैष्णव सम्प्रदाय की लीला होने के कारण इसाक मुकुट पूजन डतनबर स्थित वल्लभाचार्य के षष्ठ पीठ की बैठक से लीला की शुरुआत होती है। पहले चुकी वाल्मिकी कृत रामयण से रामलीला विधिवत तरीके से डतनबर स्थित मौनी बाबा के शिवाला पर सम्पन्न होती थी। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पं. श्रीराम शर्मा बताते हैं कि इस लीला स्थल पर कतिपय लोगों ने कब्जा करके वहां स्थापित देव विग्रहों को गायब कर दिया। वे बताते हैं कि मौनी बाबा का शिवाला (शिवजी का मंदिर) लगभग 600 साल पुराना है। इस रामलीला कमेटी को लीला सम्पन्न कराने में भरी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इस बार रामलीला की शुरुआत 15 सितम्बर से मुकुट पूजा से हो रह है।
कई रामलीलाएं हैं प्रसिद्ध
वे बताते हैं कि मौनी बाबा रामलीला कमेटी की कई रामलीलाएं काफी मशहूर हैं। इनमें जयंत नेत्र भाग (बागेश्वरी देवी मंदिर जैतपुरा), नक्कटैया (नाटीइमली मैदान), लक्ष्मण शक्ति (चौकाघाट पानी टंकी), विजयादशमी (चौकाघाट लकड़ी मंडी), भरत मिलाप (नाटीइमली मैदान), राजगद्दी की लीला है। भरत मिलाप नाटीइमली मैदान में सायं ठीक 4.45 बजे होता है। जब भगवान भाष्कर की किरणें अस्त होने को होती है तभी राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न चारों भाइयों का मिलन होता है। इस मिलन को देखकर वहां मौजूद हर किसी की आंखें सजल हो उठती हैं। इसमें भारी भीड़ जुटती है। पुष्पक विमान पर चारों भाइयों को विराजमान करा कर यादव बंधु वहां से अयोध्या (जतनबर) मौनी बाबा का शिवाला पहुंचते हैं। जहां पर माताएं उनकी आरती करती हैं।
एक माह पूर्व होता है पात्रों का चयन
वे बताते हैं कि पात्रों का चयन एक माह पूर्व ही कर लिया जाता है। यह लीला झांकी प्रधान की लीला है। यहां पर पात्रों में कुंभकर्ण, मेघनाद, रावण, हनुमान, नल-नील, जामवंत, निषादराज आदि सभी पारम्परिक व कई पीढ़ियों से करते चले आ रहे हैं। वे बताते हैं कि रामलीला कमेटी को चंदा भी बहुत कम मिलता है। सरकार की ओर से कमेटी को कोई अनुदान भी नहीं है। यह रामलीला काशी के पुराने कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के आर्थिक सहयोग से चल रही है। रामलीला स्थल भी जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं। यहां पर पितृपक्ष की मातृनवमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक लीला चलती है। यहां पर कुल 22 दिनों की रामलीला होती है। पहले रामलीला में उनके परदादा सिद्धेश्वरी महराज, उनके बाद उनके दादा स्व. पं. जगदीश महराज, पिता स्व. राधेमोहन व्यास कराते थे। वर्तमान में उनके पुत्र पं. श्रीराम शर्मा, सीताराम शर्मा, पौत्र विक्रम भारद्धाज, प्रपौत्र आशुतोष भारद्वाज एवं श्रीकांत करा रहे हैं।