काव्य-रचना
जब भी कोई त्योहार आता है
जब भी कोई त्योहार आता हैअपने घर का याद आता है
अब परदेस में गांव जैसी खुशी कहा मील पाता है,
अब फुर्सत कहा मिलता है सर पर इतनी
जिम्मेदारी है अब कहा पता चलता है
कब होली और दीवाली है,
घर से दूर होने के बाद सब कुछ छूट है जाते
त्योहार कोई भी हो घर का ही याद आते है,
पास पैसे भी है पर घर जैसी खुशी
कहा मिल पाती हैअपने ही घर
जानो को छुट्टी नही मिल पाती है,
जब भी कोई त्योहार आता अपनो
का ही याद आता हैअब घर जैसी
खुशी कहा नसीब हो पाता है,
किसको घर से दूर भाता है कुछ मजबूरिया है
जो घर छुड़ाता है वरना कौन घर से
दूर जाना चाहता है,
चाहे होली हो दीवाली कोई मुश्किल से
घर जा पाता हैफ़ेसबुक व्हाट्सएप तो
एक जरिया है बधाई देने कावरना
त्योहारो में कौन घर से दूर होंना चाहता है।
महेश कुमार प्रजापति