काव्य-रचना
वही नाटक पुराना चल रहा है
वही नाटक पुराना चल रहा है
मशवीरे का जमाना चल रहा है।
जुमले से तो है सरकार चल रही
बस झूठों का फसाना चल रहा है।
कहीं बुधुआ कहीं धनिया लगे हैं घर बनाने में, चलाने में
नहीं उनको ठीकाना मिल रहा है।
पड़े हैं बाबा जी खोलने में सच्चाई का चिट्ठा
मगर वही किस्सा पुराना(झुठलाना) चल रहा है।
किसान, जवान तो मुद्दे हैं वोट बैंक के
बस उनसे दोस्ताना चल रहा है।
रोजी रोटी तो सबको चाहिए
बस राशन का बहाना चल रहा है।
उधर माल्या नीरव अडानी लगे हैं
जेब भरने में,
इन पर कार्यवाही फिल्माना चल रहा है।
बेरोजगारी है चरम सीमा पर
बेरोजगारों पर सिर्फ लाठी बरसाना चल रहा है।
गाय मंदिर मस्जिद ही है विकास का रास्ता
सिर्फ यही जुमला पढ़ाना चल रहा है।
मनोज कौशल