काव्य-रचना
वह मां है मेरी
दिल में बसाती है मुझे नकली दुत्कार करती
वह मां है मेरी जो मुझे आज भी प्यार करती
किताबें नहीं पढ़ी है इसलिए थोड़ी नासमझ है
हर समस्या का समाधान रखती मेरी मां गजब है
गुस्से में लाल होती फिर रोती बहुत दुलार करती
वह मां है मेरी जो मुझे आज भी प्यार करती
अपने खूं के कतरे कतरे से मां ने मुझे बनाया
गीले में खुद सोई हरदम सीने पर मुझे सुलाया
हर बला कट जाए मेरी हरपल यही गुहार करती
वह मां है मेरी जो मुझे आज भी प्यार करती
कैसे विधाता ने दुनियां में विधान बनाया होगा
कैसे सोई होगी मां जब बेटा अलगाया होगा
विधना तेरी लिखी यह हर घर में आज उतरती
वह मां है मेरी जो मुझे आज भी प्यार करती
मिटा दे इस पन्ने को जहां मां बेटे की है लड़ाई
ममता की बहा दे दरिया कर दे सबकी भलाई
ना छीनो यह नेमत जो जनम से पहले मिलती
वह मां है मेरी जो मुझे आज भी प्यार करती
जयप्रकाश "जय बाबू"