काव्य-रचना
ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!
क्या कोई रोक पाया है कभी
आँखों से पकी पीड़ा का टपकना
माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना
देह में दर्द का खिलना
फिर कैसे रोक पायेगाकभी कोई
ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!
सुख मेंपत्थर पर उग
जाती है प्रसन्नता जैसे
रेत में रोती हुई दूब ;
जहाँ मर्द और औरत के बीच
नदी किन्नर का संचित
आँसू हैजो अपने आप में धाँसू है!
©गोलेन्द्र पटेल