काव्य-रचना
पितृ पक्ष में तर्पण
पुरखों से चली आ रही परंपरा
पितृ भक्ति में होकर अर्पण
पार कराने उनको वैतरणी
पहुँचते गयाजी में करने तर्पण
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में
पितृ पक्ष में आते पितृगण
प्रतिपदा से अमावस्या तक
ऋण चुकाते सभी पुत्रगण
पिंडदान का होता विधान
काग रूप में देते दर्शन
आशीष बरसाते खुशी खुशी
धन्य हो जाते पाकर तर्पण
तीन पीढ़ी पितृलोक में रुक
मुक्त हो जाते पाकर तर्पण
उद्धार होता उनकी आत्मा का
स्वर्ग लोक में करते पदार्पण
पितरों को जो भूखा रखते
होता सर्वदा उनका अमंगल
अपयश के भागी हैं बनते
मुक्ति नहीं पितृलोक में मिलता बंधन
- आशीष कुमार