काव्य-रचना

काव्य-रचना

  नवरात्रि की बेला को प्रणाम है    

जगजननी है, सर्वशक्तिमान वो, 
है अपनत्व आगाध प्रेम का मान वो  
मां से बढ़कर कोई अपना नहीं होता,
की  मां से बढ़कर कोई अपना नहीं होता,
और मां ने जो देखा है अपनी आंखों में मुझे 
और मां ने जो देखा है अपनी आंखों में 
मुझे उस से बढ़कर कोई सपना नहीं होता ,
और जो एक बार मिल जाए साहस मां का और 
एक बार जो मिल जाए साहस मां का तो 
किसी के आगे मेरा कपना नहीं होता, 
किसी के आगे कपना नहीं होता,,,

और  छाया / छांव मां के ही आंचल में मिलता है,
और वो छांव मां के ही आंचल में मिलता है 
उसके आगे कोई तपन भी तपना नहीं होता,,,

और जो यू ,यह मन दूर होता है मां से तो भले ही बैठे हो
लाख महफिलों में उस समय का हंसना भी वह हंसना नहीं होता,,,

थोड़ा भाव देख कर लिख रहा हूं इस लाइन को,
की थोड़ा भाव देख कर लिख रहा हूं इस लाइन को 
,पढ़ना भी भाव से, की जो छवि मां की आंखों में ना बसे की  
जो छवि मां की आंखों में ना बस से उस छवि का मेरी आंखों में
 बसना भी,बसना नहीं होता,,,,,

अजय कुमार पटेल (अजेय)