काव्य रचना

काव्य रचना

     मैं भी उड़ना चाहती हूं    

मैं भी उड़ना चाहती हूं
मैं उड़ान भरना चाहती हूं,
बिना पंखों के आसमान छूना चाहती हूं।
जानती हूं जमीन है मेरे लिए, आसमान को भी अपना घर बनाना चाहती हूं।
मैं भी उड़ना चाहती हूं.....
मैं सितारों की तरह चमकना चाहती हूं, सूरज की तरह सबकी जिंदगी रोशन करना चाहती हूं।
मैं अमावस्या की रात नहीं, पूर्णिमा की चांद बनना चाहती हूं।
मैं भी उड़ना चाहती हूं.....
ख्वाब बेशक बड़े हैं मेरे लेकिन मेरे ख्वाबों के आगे, हर परेशानी छोटी लगने लगे।
ऐसा मुकाम पाना चाहती हूं।
हां मैं भी उड़ना चाहती हूं ‌


-आयुषी तिवारी