काव्य रचना

काव्य रचना

     बेटी का विवाह और निर्धनता.....

काश अगर तुम निर्धन होते, और तुम्हारी बेटी होती।
रात कभी न सोते होते सपने में भी 
रोते होते, सोच सोच के दिल घबराता दुःख दरिया में गोते होते, काश अगर तुम निर्धन होते, और तुम्हारी बेटी होती।
हो जाती वह कभी सयानी ले आती वह दाना पानी देख तुम्हे वह शर्मा जाती, तब होती तुमको हैरानी, काश अगर तुम निर्धन होते, और तुम्हारी बेटी होती।।
पीले करने हाथ जो चलते लड़के वाले गांठ मसलते घर आकर भी पछताते मिनिमम लाखो लाख जुटाते, काश अगर तुम निर्धन होते और तुम्हारी बेटी होती।।
खोज खोज के वर थक जाते
चलते चलते पग रुक जाते
काना कौतर भी हा करता
उसके आगे भी झुक जाते
काश अगर तुम निर्धन होते,
और तुम्हारी बेटी होती।।
बाराती मंडप में आते
शहरे चुनर जब चढ़ जाते
बुलट पर होता झगड़ा
काश अगर तुम निर्धन होते,
और तुम्हारी बेटी होती।।
फटती चुनर,टूटती चूड़ी
चलती उसके गले पर छुरी,
माँ से लिपटी रोती होती,
मरने की वह आश लगाती,
काश अगर तुम निर्धन होते,
और तुम्हारी बेटी होती।।


           -प्रमोद कुमार मिश्रा