नाटीइमली के भरत मिलाप में प्रभु का होता है साक्षात दर्शन

- 482 वर्ष पुरानी है चित्रकूट की रामलीला, मेघा भगत ने संवंत 1600 में की थी शुरुआत
- लक्खा मेलाओं में है शुमार भरत मिलाप की लीला, 200 वर्षों से काशी नरेश परिवार निभा रहा है परम्परा
राधेश्याम कमल
वाराणसी (रणभेरी): गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन रहे संत नारायण दास उर्फ मेघा भगत ने संवंत 1600 में चित्रकूट की प्रसिद्ध रामलीला की शुरुआत की थी। चित्रकूट की रामलीला में भरत मिलाप की लीला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यही वजह है कि नाटीइमली का भरत मिलाप लक्खा मेले में शुमार है। इसमें काशी नरेश परिवार लगभग 200 वर्षों से नाटीइमली आकर इस परम्परा को निभा रहा है।
यह रामलीला काशी के धूपचंडी स्थित चित्रकूट नामक स्थान पर शुरू हुई थी। चित्रकूट की रामलीला 482 साल पूरे कर चुकी है। जनश्रुतियों के मुताबिक गोस्वामी तुलसीदास के महाप्रयाण के बाद मेघा भगत को भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण के साक्षात दर्शन हुए थे।
उन्हीं की प्रेरणा से मेघा भगत ने काशी आकर चित्रकूट की रामलीला की शुरुआत की। चित्रकूट रामलीला समिति के संस्थापक संत नारायण दास मेघा भगत नित्य अपने योग बल से अयोध्या जाकर रामलीला देखते थे। कहते हैं कि एक बार मेघा भगत काफी बीमार पड़ गये जिसके चलते वह अयोध्या नहीं जा सके। इसको लेकर मेघा भगत काफी दु:खी हो गये। इस बीच भगवान श्रीराम ने स्वप्न में आकर मेघा भगत को काशी में चित्रकूट नामक स्थान पर रामलीला शुरू करने का निर्देश दिया। कहा कि हम इसी रामलीला में दर्शन देंगे। नाटी इमली के मैदान में भरत मिलाप के दिन मेघा भगत को राम-लक्ष्मण-भरत शत्रुघ्न सभी भाइयों का दर्शन मिला। तभी से यह रामलीला अनवरत रूप से चल रही है। नाटीइमली के भरत मिलाप में सभी को प्रभु श्रीराम का साक्षात दर्शन होता है।
राम-लक्ष्मण ने मेघा भगत को सौंपा था धनुष-वाण
चित्रकूट रामलीला समिति के प्रबंधक पं. मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि एक बार मेघा भगत अयोध्या गये थे। किसी कारणवश उन्हें प्रभु श्रीराम का दर्शन नहीं हुआ। इस पर वह सरयू नदी के किनारे बहुत ही दु:खी होकर बैठे थे। उसी समय दो सुंदर बालक वहां आये और मेघा भगत को धनुष-वाण देकर उसे रखने को कहा। वे बोले कि हम जाते समय इसे वापस ले लेंगे। लेकिन दोनों बालक वापस नहीं आये। उसी समय स्वयं हनुमानजी प्रगट होकर मेघा भगत से बोले कि धनुष- वाण दोनों बालकों ने आपको दिये हैं। वह स्वयं प्रभु श्री राम व लक्ष्मण थे। किवदंतियों के अनुसार बैठे-बैठे मेघा भगत को नींद आ गई। इस नींद में उन्हें स्वप्न हुआ कि इस धनुष- वाण को लेकर तुम काशी जाओ। श्रीराम की लीला शुरू करो। भरत मिलाप के दिन प्रभु श्रीराम अपने भाइयों के साथ तुम्हें दर्शन देंगे। यही वजह है कि नाटीइमली के भरत मिलाप में हर साल लाखों की भीड़ जुटती है। यह मेला बनारस की लक्खा मेलाओं में शुमार है। प्रबंधक पं. मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि नाटीइमली के भरत मिलाप में कई बार ऐसा देखा गया कि लीला के 10 मिनट पहले तक घनघोर बरसात या बदली छायी हुई थी। लेकिन जैसे ही श्रीराम-लक्ष्मण अपने चारों भाइयों के साथ आपस में गले मिलते हैं उस वक्त भगवान भाष्कर प्रगट हो जाते हैं। लीला में ऐसा कई बार देखा गया। इसे लोगों ने स्वयं देखा और महसूस किया है। लीला के दौरान ऐसा अहसास होता है कि जैसे आकाश मार्ग से स्वर्ग से समस्त देवी-देवता भरत मिलाप की लीला देख रहे हैं।
कौन-कौन रामलीलाएं है प्रसिद्ध
चित्रकूट रामलीला समिति की रामलीलाओं में वैसे तो भरत मिलाप की लीला सबसे प्रसिद्ध है लेकिन इनके अलावा अन्य कई रामलीलाएं भी काफी प्रसिद्ध हैं। इनमें राम घनरैल, भरत मनावन, हनुमान मिलन, लंका दहन, लक्ष्मण शक्ति, विजयादशमी आदि लीलाएं हैं। यहां की रामलीला प्रसंग के अनुसार झांकी प्रमुख लीला है। यहां पर रावण वध तो होता है लेकिन उसके पुतला का दहन नहीं होता है। इस लीला का आधार वाल्मिकी रामायण से लिया गया है।
दो सौ वर्षों से काशीनरेश परिवार निभा रहा है परम्परा
पं. मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि नाटीइमली के भरत मिलाप में विगत दो सौ वर्षों से महराज काशीराज परिवार परम्परागत रूप से इसे निभा रहा है। काशी नरेश को हर साल उनके रामनगर स्थित किला पर जाकर उन्हें विधिवत आमंत्रित किया जाता है। पहले पूर्व काशीनरेश डॉ. विभूतिनारायण सिंह अपने मंत्रियों के साथ हाथी पर सवार होकर लीला स्थल तक पहुंचते थे। अब उनके सुपुत्र काशीनरेश अनंत नारायण सिंह अपने युवराज पुत्रों के साथ हाथी पर सवार होकर लीला का अवलोकन करते हैं।
प्रभु के रथ को कंधों पर ढोते हैं यादव बंधु
नाटीइमली के भरत मिलाप के दिन भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न, सीता, हनुमान का काफी वजनी रथ को यादव बंधु अपने कंधों पर रख कर ढोते हैं। प्रभु के इस रथ को ढोने के लिए यादव बंधुओं में एक होड़ लगी रहती है। यादव बंधु भी परम्परागत ढंग से लाल पगड़ी व सफेद धोती तथा गंजी पहन कर हर साल वहां मौजूद रहते हैं। इस वजनी रथ को वहां से कंधों पर रख कर अयोध्या भवन लोहटिया तक ले जाना कम मुश्किल नहीं है। इस झांकी को देखने के लिए नाटीइमली से लेकर लोहटिया तक भारी हुजूम उमड़ता है।
कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता
वर्तमान समय में सरकारों की उपेक्षा के चलते दिन प्रतिदिन रामलीला को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आज तक इस रामलीला को कोई भी सरकारी अनुदान नहीं मिला। रामलीला अपनी पुरानी परम्पराओं के अनुरूप चल रही है। जो खुद में एक मिसाल है। प. मुकुंद उपाध्याय इस रामलीला से पांच पीढ़ियों से जुड़े हुए हैं। जिसमें सर्वप्रथम पं. भगवन दत्त उपाध्याय, पं. उमादत्त उपाध्याय, पं. भोलानाथ उपाध्याय (सभी स्वर्गीय) रहे। अब वर्तमान में पं. मुकुंद उपाध्याय एवं उनके सुपुत्र पं. अभिनव उपाध्याय सेवारत हैं। इस लीला के अध्यक्ष सुबोध अग्रवाल, मत्री मोहन कृष्ण अग्रवाल, संयुक्त मंंत्री सत्येन्द्र कुमार एवं भंडार मंत्री रघुनाथ दास हैं।