काव्य रचना

काव्य रचना

  संस्कृति भारत की  मैं   

संस्कृति भारत की 
पूर्ण हूँ मैं, अपूर्ण नहीं। 
धीर हूँ मैं, गंभीर नहीं ।
शुन्य हूँ मैं, संसार हूँ मैं।
जीव जगत आधार हूँ मैं। 
मैं प्राच्य नवीन का संगम हूँ, 
दया-दंड का मेल हूँ मैं। 
काल-खंड, अखंड-विखंड, 
दिव्य देव, दानव-दैत्य हूँ मैं।
अपूर्ण नहीं, पूर्ण नहीं, परिपूर्ण हूँ मैं। 
घात अनेक, प्रतिघात अनेक 
सहती नित नए वार अनेक।
अटल अचल अक्षुण्ण मैं 
अमिट संस्कृति भारत की मैं।

- मोहित त्रिपाठी