काव्य रचना
कुछ तो असर है...
कुछ तो असर है ज़िन्दगी में तेरी दुआओं का,
कि ग़म बहुत है, आँखें भी नम है,
फिर भी जिए जा रहे हैं, धीरे धीरे ही सही पर दो घूँट पीए जा रहे हैं,
एक नीला सा आसमान है, कहने को तो सारा जहान है,
पर तेरे बिना सब मंजर बंजर सब रेगिस्तान है,
ये अहसास मेरे दिल का तेरे दिल से यूं ना जाएगा,
मेरी यादों का ज़र्रा ज़र्रा किस्सा मेरा तुझे सुनाएगा,
मेरी आँखों से गिरता हर एक आँसूं मेरी कहानी तुझे बताएगा,
कहने को तो ज़िन्दगी नदी की तरह बहती एक धारा है,
किस्मत वाले हैं वो जिन्हें मिल जाए जो मिलना किनारा है,
मुक्कमल हो जाए तेरा साथ मेरे साथ में, शायद मेरे हाथ में वो लकीर ही नहीं,
धन दौलत है बहुत पर तेरा साथ ही नहीं, चलो फिर तेरे लिए एक फकीर ही सही,
ये रौशनी, ये हवा, ये ज़िंदगानी सब तेरी ही तो है,
ये कहानी वो जवानी, मेरी रवानी तेरी ही तो है,
तू आकर मेरी यादों में मुझे न गमगीन कर
बहुत मुश्किल से सीखा है जीना, इस तरह से मेरी ज़िन्दगी को न नमकीन कर,
तू कहे तो तेरे नाम को अमर मैं कर दूँ,
मेरा कुछ मोल ना सही तेरी नज़रों में,
पर तू कहे तो कोहिनूर तुझे कर दूँ,
लोग भरते है सागर में गागर, पर तू कहे तो संग जी के तेरे साथ
कुमार मंगलम-