अलम, ताबूत और दुलदुल की जियारत करने उमड़ा जनसैलाब, आंसुओं संग खूनी मातम का भी पेश किया नजराना

अलम, ताबूत और दुलदुल की जियारत करने उमड़ा जनसैलाब, आंसुओं संग खूनी मातम का भी पेश किया नजराना
अलम, ताबूत और दुलदुल की जियारत करने उमड़ा जनसैलाब, आंसुओं संग खूनी मातम का भी पेश किया नजराना

वाराणसी (रणभेरी सं.)। नामे हुसैन गूंजा है शंकर के शहर में, गूंजी है कर्बला में सदा मैं हुसैन हूं... की सदाओं से काशी की गलियां और चौराहे गूंजते रहे। यौमे आशूरा पर जब ताजियों का जुलूस निकला तो हर आंख अश्कबार थी और हर होंठ पर या हुसैन अलविदा... के बोल थे। अजादारों ने जंजीर और कमा के मातम के जरिये करबला के 72 शहीदों को खून के साथ ही आंसूओं का नजराना पेश किया। देर रात सबसे आखिर में रांगे का ताजिया दरगाह ए फातमान पहुंचा। बुधवार की सुबह मुहर्रम के दसवें दिन ताजिया उठाने का सिलसिला शुरू हुआ तो देर रात तक अनवरत चलता रहा। शहर की 28 अंजुमनों ने अलम, दुलदुल और ताजिया के 11 जुलूस उठाए। जंजीर और कमा के मातम के साथ खून का नजराना भी पेश किया। सर्वाधिक जुलूस दरगाह ए फातमान में पहुंचे।
इसके बाद सदर इमामबाड़ा लाटसरैया, शिवाला घाट और हसन बाग टेंगरा मोड़ का नंबर रहा। शहर से लेकर गांव तक अलम, दुलदुल और ताजिया का जुलूस निकला तो हिंदू समाज के लोगों ने भी जगह-जगह शबील लगाकर अजादारों को शरबत और पानी पिलाया। 

गंगा जमुनी तहजीब का नजारा पेश करते हुए ताजिए को फूल-माला चढ़ाई तो दुलदुल का फल, मेवा और खीरनी से सत्कार किया। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सुबह से ही गहमागहमी रही। छोटे-छोटे बच्चे भी ताजिया लेकर या हुसैन की सदाएं लगाते हुए इमामबाड़ों और दरगाहों की ओर बढ़ रहे थे।  कोई नारा लगा रहा था कर्बला दूर है जाना जरूर है... तो कोई हुसैनियत जिंदाबाद...। जंजीर और कमा का मातम देखकर लोगों की आंखें अश्कबार हो गईं। शाम को जुलूस ठंडा होने के बाद शाम ए गरीबां की मजलिसों का आयोजन हुआ। इसमें हुसैन की शहादत के बाद का हाल बयां किया गया। 

ख्वातिन की मजलिस भी जगह-जगह होती रही। इस अवसर पर प्रसाद के रूप में खिचड़ा, मलीदा और हलवा का वितरण किया गया। 72 शहीदों की याद में जगह-जगह लोगों ने मेडिकल कैंप लगाकर अजादारों की खिदमत की। ख्वातिन ने खीर, मलीदा और हलवा इमाम के रौजे पर फातिहा कराई और लागों में तकसीम किया। इसके साथ ही छह महीने के शहीद अली असगर के नाम पर बच्चों को दूध पिलाया गया। अंत में अलविदाई मजलिस के साथ मुहर्रम के पहले असरे का समापन हुआ।

ये ताजिये रहे आकर्षण का केंद्र

शहर में निकले ताजियों में बुराद का ताजिया, रांगे का ताजिया, पीतल का ताजिया, मोतीवाला ताजिया, शीशे वाला, नगीने वाला, जरी वाला, चपरकट की ताजिया आकर्षण का केंद्र रहे। बजरडीहा, खोजवां, बाकराबाद, जैतपुरा, चौक, कर्णघंटा, मंडुवाडीह, ककरमत्ता के ताजिए दरगाह ए फातमान, पठानी टोला, दोषीपुरा, चौहट्टा, मुकीमगंज, पड़ाव के ताजिये सदर इमामबाड़ा पहुंचे, दुगार्कुंड का तालिया शिवाला पर और रामनगर के सभी ताजिय इमामबाड़ा हसनबाग टेंगरामोड़ पहुंचे। इस अवसर पर उलेमा ने तकरीर की और शायरों ने कलाम पेश किए।

भारत में अगर आ जाता तो हृदय में उतारा जाता

दरगाह ए फातमान में मजलिस को खिताब करते हुए हाजी फरमान हैदर ने कहा कि इमाम हुसैन ने ख्वहिश जाहिर की थी यजीद जंग ना कर मैं भारत चला जाऊंगा। हुसैन अगर भारत आते तो काशी में ही आते और गंगाजल से उनका स्वागत किया जाता। 

मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा था भारत में अगर आ जाता तो हृदय में उतारा जाता, यूं चांद बनी हासिम को धोखे से ना मारा जाता...। 1385 साल के बाद भी हिंदुस्तान इमाम हुसैन को गले लगाए हुए है। ऐसी मान्यता है कि पहली मोहर्रम से हुसैन हिंदुस्तान आ जाते हैं और 10 दिनों तक मेहमान की तरह रहते हैं। गरीब का झोपड़ा हो या किसी राजा का महल, हर जगह हुसैन एक समान याद किए जाते हैं। हर जगह हुसैन का ताजिया रहता है।