फेफड़े के कैंसर की जांच को अब नहीं करना होगा महानगरों का रुख

फेफड़े के कैंसर की जांच को अब नहीं करना होगा महानगरों का रुख

वाराणसी के कैंसर अस्पताल में मिलेगी सारी सुविधा, अब बिना चीर-फाड़ किए होगी फेफड़ों के कैंसर की जांच

वाराणसी (रणभेरी): काशी और पूर्वांचल के लोगों को बड़ी सुविधा मिल गई है। अब फेफड़े के कैंसर की जानकारी के लिए महानगरों का चक्कर नही लगाना होगा। जांच से लेकर ऑपरेशन तक वाराणसी के कैंसर संस्थान में ही हो जाएगा। इसके लिए कैंसर संस्थान में फेफड़े के कैंसर की जांच के लिए जरूरी जांच "एंडोब्रोंकाइल अल्ट्रासाउंड" यहीं हो जाएगा। जांच में कैंसर की पुष्टि के बाद बिना चीरफाड़ के ही ऑपरेशन भी हो जाएगा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सुंदरबगिया स्थित महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर सेंटर और लहरतारा के होमी भाभा कैंसर अस्पताल में आने वाले मरीजों की फेफड़े के कैंसर की जांच हो सकेगी। इन दोनो ही अस्पतालो में 'एंडोब्रोंकाइल अल्ट्रासाउंड या ईबीयूएस जांच की सुविधा उपलब्ध हो गई है। इससे ये बहुत जल्द पता चल सकेगा कि फेफड़े में कैंसर है या नहीं। इतना ही नहीं इस जांच से ये भी पत चल सकेगा कि फेफड़े का कैंसर किस स्टेज में पहुंच गया है।

देश के गिनेचुने अस्पतालों में ही है ये सुविधा

डॉक्टरों का दावा है कि भारत भर में गिनकर 8-10 जगहों पर ही इसकी जांच होती है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में इस तरह की जांच सुविधा बहुत कम है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ एसजीपीजीआी में कभीकधार इस विधि से जांच होती है। अब बनारस में ये सुविधा उपलब्ध होने के बाद कैंसर का जल्द से जल्द पता लगा कर मरीज का इलाज शुरू किया जा सकेगा। इस जांच में मरीजों को दर्द भी नहीं होता है। अस्पताल के थोरासिक कैंसर विशेषज्ञ डॉ. मयंक त्रिपाठी का कहना है कि कैंसर की जांच के साथ ही एंडोब्रोंकाइल अल्ट्रासाउंड के जरिए फेफड़े से जुड़ी दूसरी तरह की बीमारियों का भी पता लगाया जा सकेगा।

नहीं करनी होती चीरफाड़

डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि अब तक मिडाइस्टोनोस्कोपी टेस्ट होता था। इसमें मरीज के सीने में एक चीरा लगाकर उपकरण अंदर डालते थे। इससे बायोप्सी टेस्ट होता था। इसमें करीब दो घंटे लगता था। वहीं खून की नसों के क्षतिग्रस्त होने या ज्यादा रक्तश्राव होने का खतरा रहता था। लेकिन ईबीयूएस जांच से केवल आधे घंटे में जांच की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। खास ये कि इसमें चीरफाड़ भी नहीं करनी होती। बस मुख या नाक के जरिए एक तार अंदर डालते हैं और तार में लगा कैमरा फेफड़े के आसपास के लिंफनोड और गांठ को मॉनिटर पर दिखाता है। इसके बाद निडिल डालकर हम बायोप्सी जांच करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर की मौतों में फेफड़े का कैंसर ज्यादा खतरनाक होता है। मौत ज्यादा होती है। इसकी वजह ये है कि इसकी पता जल्दी चल पाता जिसके चलते मरीज का इलाज समय से शुरू ही नही हो पात जिससे वो दम तोड़ देता जानकार बताते हैं कि अभी तक जांच की प्रक्रिया काफी जटिल थी और मरीजों को काफी दर्द से गुजरना पड़ता था। मगर, अब जांच भी अल्प समय में हो जाएगी फिर समय से इलाज भी शुरू हो जाएगा।

वाराणसी में 10 हजार में होगी जांच, दूसरी जगह 25 हजार तक लगते हैं

कैंसर संस्थान इस जांच में महज 10 हजार रुपए चार्ज करता है। जबकि, प्राइवेट या दूसरी जगहों पर 20-25 हजार रुपए तक लगते हैं। उन्होंने बताया कि इस जांच में नीडिल का पैसा लगता है। एक नीडिल को स्टर्लाइज कर दो या तीन मरीजों में इस्तेमाल कर सकते हैं।

लंग्स कैंसर मरीजों की मौतें ज्यादा

कैंसर की मौतों में लंग्स कैंसर की संख्या काफी ज्यादा होती है। क्योंकि, समय रहते इसकी पहचान जल्दी नहीं हो पाती और मरीज दम तोड़ देता है। अभी तक जांच की प्रक्रिया काफी जटिल थी और मरीजों को काफी दर्द से गुजरना पड़ता था। मगर, अब झटपट जांच और इलाज किया जा सकेगा।