अबीर गुलाल संग हर हर महादेव के उद्घोष से निहाल हुई काशी

अबीर गुलाल संग हर हर महादेव के उद्घोष से निहाल हुई काशी
  • रंगभरनी एकादशी पर देवी गौरा से गौने के बाद काशी की गलियों में घूमे बाबा विश्वनाथ
  • देवाधिदेव महादेव को भक्तों ने जमकर लगाया अबीर-गुलाल, आज महाश्मशान में उड़ेगी चिता भस्म

वाराणसी (रणभेरी): बाबा भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी नगरी में शिवपूजन और इससे जुड़े त्योहारों का विशेष महत्व है। सावन, महाशिवरात्रि और रंगभरनी एकादशी सभी त्योहारों में भोले बाबा और उनके भक्तों की धूम मची रहती हैं क्योंकि देवाधिदेव महादेव बाबा विश्वनाथ काशी में विराजते हैं। इसलिए काशी में हर दिन बाबा भोले से जुड़ा रहता है, लेकिन शिवरात्रि के बाद पड़ने वाला रंगभरी एकादशी का अपना अलग ही महत्व है। रंगभरनी एकादशी के दिन काशी पूरी तरह से भोले भंडारी के रंग में रंग जाती है। इस दिन बाबा विश्वनाथ टेढ़ीनीम स्थित पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के आवास से गलियों से होते हुए अपने स्वर्णमयी दरबार यानी विश्वनाथ धाम पहुंचकर देवी गौरा के साथ गौना कराकर अपने कैलाश धाम के लिए निकलते हैं। रंगभरी एकादशी पर शिवभक्त जगत के नाथ बाबा विश्वनाथ और देवी गौरा के गौना का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। बाबा विश्वनाथ की आगवानी को आतुर उनके भक्त काशी की गलियों में उनके साथ जमकर अबीर और गुलाल की होली खेली गई, इस दौरान टेढ़ीनीम गली से लेकर विश्वनाथ धाम तक का इलाका हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंजता रहा। इसी के साथ काशी का माहौल होलीमय हो गया है। आज बाबा विश्वनाथ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में चिता भस्म की होली खेली गई । 

अबीर-गुलाल उड़ा रंगों से सराबोर हुई काशी

जगत के नाथ बाबा विश्वनाथ ने रंगभरी एकादशी के दिन धाम में अपने भक्तों के साथ जमकर अबीर-गुलाल की होली खेली। बाबा विश्वनाथ के स्वर्णमयी दरबार में उन्हें देवी गौरा और श्रीगणेश के साथ विराजमान देख श्रद्धालु निहाल हो उठे। इसके साथ ही श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में जमकर अबीर-गुलाल उड़ा और बाबा अपने परिवार के साथ रंगों से सराबोर नजर आए। इस दौरान समूचा विश्वनाथ धाम परिसर हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान रहा। 

बाबा ने पहने खादी के वस्त्र

रंगभरी एकादशी पर अबीर और गुलाल से सराबोर हुए बाबा विश्वनाथ ने अहमदाबाद से आए खादी के कपड़े पहने। इसके साथ ही उन्होंने हाजी गयास के परिवार के लोगों द्वारा मखमल, जरी, बूटा, नगीना, फलंगी और सुरखाब के पंख से तैयार हुई शाही पगड़ी धारण की। वहीं, देवी गौरा ब्रज से आई हुई चुनरी को धारण की।

हरिश्चंद्र घाट पर भक्तों ने खेली चिता भस्म की होली

एक तरफ धधकती चिताएं और दूसरी ओर शिवभक्तों की अड़भंगी होली। ढोल, मजीरे और डमरुओं की थाप के बीच झूमते शिवगण और हर-हर महादेव के उद्घोष से वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट का श्मशान गूंज उठा। भगवान शिव के गणों ने चिता भस्म की होली खेलकर मोक्ष की नगरी काशी में राग और विराग को एकाकार किया। इसके साथ ही काशी अब पूरी तरह होली के इंद्रधनुषी रंग में रंग गई है। सोमवार को शिव भक्तों ने रंगभरी एकादशी पर श्मशान पर चिता भस्म से होली खेली। बाबा के भक्तों की अनोखी होली देखने के लिए भी भीड़ उमड़ी। इससे पहले बाबा के गौना की बरात रवींद्रपुरी स्थित बाबा कीनाराम मठ से आरंभ हुई। काशी मोक्षदायिनी संस्था की ओर से निकाली गई यात्रा में डमरूदल की गर्जना के बीच हर-हर महादेव का जयघोष करते नाचते गाते शिवगणों का रूप धारण किए भक्तों की टोली हरिश्चंद्र घाट पहुंची। भगवान शिव व पार्वती के साथ नंदी, भृंगी, भूत, पिशाच, शृंगी, नाग, गंधर्व, देवता और किन्नरों की टोली शोभायमान हो रही थी।

मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली

काशी में बाबा विश्वनाथ आज महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अपने गणों और भक्तों के साथ धधकती चिताओं के बीच खेली गई चिता भस्म की होली,खास बात यह है कि महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर इस बार की चिता भस्म की होली में ब्रज और द्वारिका के रंग भी घुलेंगे। शास्त्रीय गायक पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र से काशी की होली के बारे में कोई पूछता है, तो वह कहते हैं कि खेले मसाने में होरी दिगंबर...। फिर बताते हैं कि गंगा किनारे बसी अविनाशी काशी के अलबेले मिजाज की ही तरह यहां की होली भी अड़भंगी है। 

देश और दुनिया भर से आते हैं लोग

उत्सवधर्मिता की प्रतीक राग-विराग की नगरी काशी के मणिकर्णिका घाट पर एक ओर लोग अपने स्वजनों की अंत्येष्टि कर दुखी मन और आंसुओं से भरी आंखों से उनके मोक्ष की कामना करते हैं। वहीं दूसरी ओर ठीक उसी स्थान पर शिव भक्त अड़भंगी मिजाज से फगुआ के गीत गाते हुए देश और दुनिया को यह संदेश देते हैं कि काशी में जन्म और मृत्यु दोनों ही उत्सव है। रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन होने वाली चिता भस्म की होली के साक्षी बनने के लिए देश और दुनिया भर से लोग काशी आते हैं।

यह है पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के ससुराल पक्ष के अनुरोध पर रंगभरी एकादशी के दिन उनके गौने में पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी, शैव-साक्त सहित अन्य गण शामिल नहीं आ पाते हैं। बाबा विश्वनाथ तो सभी के हैं और सभी पर एकसमान कृपा बरसाते हैं। इसलिए गौने में शामिल न होने पाने वाले अपने गणों को निराश नहीं करते हैं। बल्कि, उन्हें गौने के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका पर बुलाकर उनके साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं। उधर, मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महामशानेश्वर महादेव मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि आज दोपहर मध्याह्न आरती होगी। इसी के साथ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली शुरू हो जाएगी।