104 वां वर्ष मना रहा है वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलिनी

- आज़ादी के समय राष्ट्रीय भावना जगाने हेतु हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत
- महापंचमी से महाएकादशी तक भजन, संख-ध्वनि, आरती और नाट्य प्रस्तुतियाँ
- गरीब एवं जरूरतमंदों को वस्त्र, अनाज और पात्र वितरण की परंपरा जारी
- दशमी पर भव्य विसर्जन शोभायात्रा, सैकड़ों श्रद्धालु होंगे सहभागी
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी की प्राचीनता और सांस्कृतिक परंपराओं का गौरवशाली हिस्सा बनने जा रही दुर्गोत्सव की गाथा इस वर्ष एक ऐतिहासिक मुकाम छू रही है। पांडे हवेली, वाराणसी स्थित वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनि अपनी 104वीं वर्षगांठ पर श्री श्री दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन करने जा रहा है। पूर्वांचल की यह सबसे प्राचीन दुर्गापूजा समिति मानी जाती है, जिसका आरंभ आज़ादी के आंदोलन के समय हुआ था। सबसे पहले यह पूजा मिंट हाउस में आयोजित हुई थी, जब महाराजा के विशिष्ट व्यक्ति, जो बंग समाज से जुड़े थे, ने इसकी नींव रखी थी। तीन वर्षों तक पूजा-अर्चना वहीं संपन्न होती रही, जिसके बाद यह आयोजन स्थानांतरित होकर एंग्लो बंगाली प्राइमरी स्कूल, पांडे हवेली में आ गया। आज तक यह पूजा यहीं निरंतर होती आ रही है और अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए है।
दुर्गा पूजा का प्रारंभ वाराणसी में केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक गहरी देशभक्ति की भावना निहित थी। उस दौर में जब देश पर बाहरी ताक़तों का शासन था, इस पूजा का उद्देश्य समाज के लोगों को एकत्रित करना, उनमें राष्ट्रभावना को जाग्रत करना और सनातनी हिंदू परंपराओं को बचाने की चेतना जगाना था। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में यह पूजा काशीवासियों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का मंच बन गई थी। इस वर्ष का आयोजन भी कई विशेषताओं से परिपूर्ण होगा। समिति की ओर से पंडाल में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया जाएगा। महापंचमी के दिन प्रतिमा का आगमन होगा और उसी दिन से महोत्सव का शुभारंभ किया जाएगा। महाषष्टि की प्रातः बेला, सुबह 4 बजे से ही श्री श्री चंडी पाठ गीति आलेख की प्रस्तुति की जाएगी, जिसमें लगभग 25 कलाकार सम्मिलित होंगे। इसके बाद प्रातः 8 बजे मंच से ही गरीब एवं समाज के कमजोर तबके के लोगों को वस्त्र, अनाज और पात्र का वितरण किया जाएगा। यह परंपरा संस्था वर्षों से निभाती आ रही है और इसे समाज सेवा की दृष्टि से एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है।
संस्था ने हमेशा से विद्यार्थियों और नवयुवकों को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयास किए हैं। पिछले 15 दिनों से विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है, और इस बार भी यह क्रम जारी रहा। महापंचमी के दिन भजन प्रतियोगिता आयोजित होगी, जबकि महाष्टमी और महानवमी के दिन शंखध्वनि एवं आरती प्रतियोगिताएं होंगी। इन आयोजनों का उद्देश्य न केवल बच्चों में प्रतिभा को निखारना है बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ना भी है।
महा सप्तमी और एकादशी के अवसर पर संस्था के सदस्य कलाकारों द्वारा नित्य, गायन और नाट्य प्रस्तुतियां दी जाएंगी। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों से महोत्सव में और भी उत्साह और भक्ति का संचार होगा। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रत्येक दिन श्रद्धालुओं के लिए भोग एवं प्रसाद का वितरण किया जाएगा। पंडाल और बंगाली टोला इंटर कॉलेज से हजारों की संख्या में भक्तों को प्रसाद प्राप्त होगा। पिछले वर्षों की तरह इस बार भी समिति को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। पूजा के अंतिम दिन यानी विजयदशमी पर परंपरा के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन निकाला जाएगा। यह शोभायात्रा पांडे हवेली से प्रारंभ होकर मदनपुर, गोदौलिया होते हुए लक्ष्मी कुंड पोखरा पहुंचेगी, जहां प्रतिमा का विसर्जन संपन्न होगा। इस अवसर पर संस्था के सैकड़ों महिला और पुरुष सदस्य सम्मिलित होकर इस ऐतिहासिक परंपरा को निभाएंगे। यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि वाराणसी की गंगा-जमुनी तहजीब और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक भी है।
यहां बंग समाज की पहल से आरंभ हुई पूजा आज काशी की आत्मा में रच-बस गई है। इस बार मां दुर्गा के विविध रूपों की झलक, कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, भजन एवं आरती प्रतियोगिताएं, गरीबों में वस्त्र-अनाज वितरण और हजारों श्रद्धालुओं की सहभागिता इस महोत्सव को और भी विशेष बना देगी। एडवोकेट तरुण कुमार मुखर्जी, जो केन्द्रीय पूजा समिति काशी, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष एवं विधिक सलाहकार होने के साथ-साथ वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनि पांडे हवेली के उपाध्यक्ष भी हैं, ने बताया कि समिति का प्रयास केवल परंपरा का निर्वहन करना नहीं है बल्कि इसे समाज सेवा और सांस्कृतिक चेतना का माध्यम बनाए रखना है। 104 वर्षों की इस अखंड परंपरा का संदेश यही है कि धर्म और संस्कृति के माध्यम से समाज को जोड़ना और राष्ट्रप्रेम की भावना को सुदृढ़ करना सबसे बड़ी साधना है।