अवैध कब्जा नहीं ...तो कहां बिला गया शिवपुर तालाब!
- तालाब को अपने पूर्ण स्वरूप में लाने में फेल, अधिकारी खेलते हैं ज्ञापन और आश्वासन का खेल
- अधिकारियों की मिलीभगत से भूमाफियों ने पाट दी काशी की पौराणिक धरोहर
वाराणसी (रणभेरी सं.)। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में भ्रष्ट अधिकारियों का बोलबाला है। ये अधिकारी सीएम से लेकर पीएम तक को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक ऐसा ही मामला है काशी के पौराणिक धरोहर शिवपुर तालाब का जो बीते दो दशक के अधिकारियों के ज्ञापन और आश्वासन के खेल के कारण आज भी तिल तिल मर रहा है। तमाम आरटीआई के जवाब में यही कहा गया कि उक्त शिवपुर तालाब पर कोई कब्जा नहीं है, पर यह कोई बताने को तैयार नहीं कि अगर कब्जा नहीं है तो वह पौराणिक तालाब जो काशी की धरोहर है, वह कहां गई !
काशी, जो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, में काशी पंचकोशी परिक्रमा एक महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह परिक्रमा न केवल भक्तों के लिए बल्कि स्थानीय संस्कृति और पारिस्थितिकी के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु विभिन्न जलाशयों और धार्मिक स्थलों का दर्शन करते हैं, जो काशी की प्राचीनता और भक्ति का प्रतीक हैं। शिवपुर तालाब इस परिक्रमा के चौथे पड़ाव पर स्थित है। यह तालाब न केवल श्रद्धालुओं के लिए स्नान और पूजा का स्थान था, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए भी एक महत्वपूर्ण जल स्त्रोत भी। समय के साथ, इस तालाब का अस्तित्व कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस पौराणिक तालाब को भूमाफियाओं ने मिट्टी और मलवे से पाटकर इसके अस्तित्व को समाप्त कर दिया है। शिवपुर पंचकोशी मार्ग पर स्थित यह ऐतिहासिक सार्वजनिक तालाब को वर्षों से भू माफिया के कब्जे में है। इस तालाब को भू माफिया के कब्जे से मुक्त कराने की लड़ाई वर्षों से चल रही है। उच्च न्यायालय तक का निर्देश हो चुका है फिर भी तालाब की हालत जस की तस है। स्थानीय लोगों ने इसके विरोध में कई बार संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंप कर तालाब को कब्जा मुक्त कराने की गुहार लगाई लेकिन अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते रहे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पंचकोसी परिक्रमा मार्ग पर स्थित है शिवपुर तालाब
आपको बता दें कि काशी पंचकोसी परिक्रमा मार्ग स्थित शिवपुर तालाब (आराजी नंबर 69 मौजा एवं परगना शिवपुर कुल रकबा 2.70 एकड़ सदर तहसील वाराणसी) सन् 2002 में मिट्टी/मलवा डालकर जब तालाब पाटा जाने लगा जिसका स्थानीय नागरिकों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की। स्थानीय स्तर पर आंदोलन के पश्चात जिला मुख्यालय एवं नगर निगम मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन के साथ ही अधिकारियों का घेराव करके जोरदार तरीके से इस मामले को नगर निगम के सदन एवं कार्यकारिणी समिति की बैठकों में भी प्रमुखता से उठाया गया। पहले अधिकारियों ने कुछ रुचि जरूर दिखाई बाद में तालाब बचाने के संबंध में उदासीनता बरतने लगे। मा. उच्च उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में सुनवाई के पश्चात हाई कोर्ट के निर्देश पर वाराणसी के तत्कालीन मंडलायुक्त वाराणसी द्वारा गठित चार सदस्यों की जांच समिति ने मौके एवं अभिलेखों की जांच में पाया की सार्वजनिक तालाब की भूमि है जिसे पाटकर अवैध रूप से कब्जा किया जा रहा है। इन्हे कोई स्वत्त्वधिकार एवं संक्रमणीय भूमिधर का अधिकार प्राप्त नही हो सकता।
दर्ज हुआ था मुकदमा
सन्न 1924 में टाउन एरिया कमेटी शिवपुर का गठन किया गया था, जिसका सन् 1959 में पूर्व के नगर महापालिका वाराणसी में विलय कर दिया गया। प्रारंभ से ही शिवपुर क्षेत्र कॉपोर्रेशन एरिया का हिस्सा रहा है।
चुकीं सन 1291 फसली में गाटा संख्या 69 तालाब के रूप में दर्ज था, इसके बाद ही पूर्व में जारी नगर निगम वाराणसी की अनापत्ति प्रमाण पत्र एवं वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत मानचित्र को अस्वीकृत कर दिया गया।जिलाधिकारी वाराणसी के निर्देश पर मुख्य राजस्व अधिकारी वाराणसी द्वारा स्थानीय थाना शिवपुर में दिनांक 20 अप्रैल 2008 को शिवपुर तालाब पाट कर उसके स्वरूप को बदलने वालों के खिलाफ नामजद प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई।
कब्जेदारों और अधिकारियों की नीयत में खोट
डॉ. जितेंद्र सेठ ने बताया की अवैध कब्जेदारो और अधिकारियों की नियत शिवपुर तालाब पर शुरू से ही खराब रही है। वह जिला प्रशासन/नगर निगम वाराणसी के कुछ तथा कथित भ्रष्ट अधिकारियों को मिलाकर और येन-केन प्रकारेण शिवपुर तालाब को हथियाना चाहते हैं। बताया कि शिवपुर तालाब फसली सन 1291 के खसरा एवम बंदोबस्त के नक्शे में भी अंकित है, नगर निगम वाराणसी की 63 तालाबों की सूची में 31वे नंबर पर दर्ज है साथ ही नगर निगम की संपत्ति रजिस्टर में भी तालाब के रूप में दर्ज है। मौके पर भी नगर निगम वाराणसी का सूचना बोर्ड लगा हुआ है। तमाम आईजीआरएस में की गयी शिकायत के जवाब में यही लिखकर आया है कि यह भूमि तालाब की है और मौके पर किसी प्रकार का कोई अवैध कब्जा या निर्माण नहीं हो रहा है जमीन खाली है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब कोई कब्जा नहीं है तो फिर शिवपुर का वह पौराणिक तालाब कहां है ! जमीन खाली है तो तालाब को किसने पाटकर भर दिया ! और जब जमीन खाली है तो उसकी खुदाई कर तालाब को मूल स्वरूप में लाने में क्या परेशानी है ! ऐसे तमाम सवाल है जो अधिकारियों की नियत को कटघरे में खड़ा करता है।
तालाब की खोदाई का भी दिया गया था आदेश
शिवपुर तालाब के अस्तित्व कौनबचाने के लिए बीते 22 वर्षों से संघर्षरत डॉ. जितेंद्र सेठ ने बताया कि, मंडलायुक्त की अध्यक्षता में सम्पन्न कुंडो/तालाबों की संरक्षण समिति की बैठको दिनांक 1 जून 2016, 30 दिसंबर 2017 एवम 28 अप्रैल 2018 को पाटे गये तालाब की खुदाई कराने का निर्देश हुआ और मौके पर जेसीबी लगाकर तालाब के आंशिक भाग पर खुदाई भी करायी गयी थी। तभी से अवैध कब्जेदार मुझे रंजीश रखते हैं और इस मामले से पीछे हट जाने का हम पर बार-बार दबाव बनाते हैं। डॉ. सेठ ने कहा कि जब मैं इन लोगो के किसी प्रलोभन और दबाव के आगे नहीं झुका तो, ये लोग मेरे खिलाफ साजिश रचकर वाराणसी जनपद से लगभग 450 किलोमीटर दूर हरदोई जनपद के संडीला थाने में मनगढ़ंत आरोप लगाकर फर्जी मुकदमे में मुझे फंसा दिये। जब मैं इसका डटकर मुकाबला किया उत्तर प्रदेश शासन एवं जिला प्रशासन के अलावा पुलिस के उच्च अधिकारियों को मामले से अवगत कराया और माननीय उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका दायर की जिसमें हरदोई पुलिस अपने ही बुने जाल में फसते हुआ देख अपने द्वारा लिखित फर्जी एफआईआर में फाइनल रिपोर्ट लगा दी।