माता चंद्रघंटा के दरबार में भक्तों की भीड़
वाराणसी (रणभेरी सं.)। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन घंटे की नाद से राक्षसों का संहार करने वाली जगदंबा की तीसरी अवतार चंद्रघंटा मां का दिन है। वाराणसी में चौक क्षेत्र के चंद्रघंटा गली में स्थित प्राचीन माता के मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। भोर में 4 बजे से ही भक्त नारियल-चुनरी लेकर माता को भोग लगाने के लिए कतार बद्ध हैं। सिंह पर सवार 10 भुजाओं वाली माता चंद्रघंटा के हाथ में शिव का त्रिशूल, विष्णु भगवान का चक्र, इंद्र का घंटा साथ ही गदा, कमल, धनुष-बाण काफी सुशोभित हो रहे हैं। माता का ये रूप भक्तों को ऊर्जा से भर दे रहा है। कहा जाता है कि माता के दर्शन मात्र से रुका हुआ हर काम पूरा हो जाता हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि चंद्रघंटा को रणचंडी, चंद्रखंडी और चंडिका के नाम से भी जानते हैं। उनके माथे पर बने अर्द्धचंद्र में बुराई को नष्ट करने वाली शक्ति है। साहस, संकल्प, धार्मिकता और निर्भयता का प्रतिनिधित्व करती हैं। मान्यता है कि नवरात्रि में माता सिर्फ शक्ति का ही वरदान नहीं देती हैं, बल्कि भक्तों के जीवन से भय को भी दूर करती हैं। माता चंद्रघंटा का रंग सोने जैसा चमकीला है। मां को सुगंध प्रिय है।
चौथा दिन कुष्मांडा देवी के नाम
नवरात्रि का चौथा दिन कुष्मांडा देवी के नाम है। इन्हें ही अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। वाराणसी में सुप्रसिद्ध दुगार्कुंड मंदिर में ही कुष्मांडा की पूजा की जाती है। माता का मंदिर वाराणसी सहित मिजार्पुर में भी है। ब्रह्मांड निमार्ता, धन, उत्कृष्ट शक्ति, स्वास्थ्य, तेज और भाग्य की देवी हैं। देवी कुष्मांडा का संबंध पीले रंग से है, जो कि चमक और महिमा का प्रतीक है।
पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा का विधान है। वाराणसी के चौक स्थित संकठा गली में मंदिर है। माता ने भगवान स्कंद को जन्म दिया, जिन्हें कार्तिकेय महाराज के नाम से भी जाना जाता है। माता अपने बच्चों को बुराई और राक्षसों से बचाती हैं। इन्होंने कार्तिकेय को राक्षस तारकासुर को हराने में सक्षम बनाया था। नवरात्रि के छठवें दिन माता कात्यायनी देवी की
घाट पर है। माता जीवन के बाधाओं को दूर करने वाली हैं। इन्होंने महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि देवी को समर्पित है। इन्हें चामुंडा देवी भी कहते हैं। राक्षस चंड और मुंड दोनों को इन्होंने हराया था। बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ गली में कालिका गली पर यह प्राचीन मंदिर कालरात्रि को समर्पित है। इन्हें मुकुट चक्र देवी के रूप में लोग पूजते हैं।
माता महा गौरी देवी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। विश्वनाथ गली के लाहोरी टोला में यह प्राचीन मंदिर स्थित है। माता अपने भक्तों को जीविका, शक्ति, सद्भाव और मातृत्व का संदेश देती हैं। नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री देवी के रूप जाना जाता है। इनका दूसरा नाम सरस्वती भी है। मैदागिन स्थित गोलघर में माता सिद्धिदात्री का प्राचीन मंदिर है। आध्यात्मिक और एकाग्रता क्षमताओं से लैस देवी हैं। इनकी पूजा से मानसिक स्थिरता और जीवन में शांति बनी रहती है।