शीश खड़ाऊं ले चले ऐसे, राम सियाजी संग हों जैसे

शीश खड़ाऊं ले चले ऐसे, राम सियाजी संग हों जैसे

 लीला के 14 वें दिन भगवान राम ने भ्राता को समझाई रघुकुल की परंपरा, लीला देखने के लिए उमड़ी भीड़

वाराणसी (रणभेरी सं.)। प्रभु कर कृपा पांवरी दीन्हि, सादर भारत शीश धरी लीन्ही, राम भक्त ले चला रे राम की निशानी, शीश पर खड़ाऊं, अंखियों में पानी.. शीश खड़ाऊ ले चला ऐसे, राम सियाजी संग हो जैसे, अब इनकी छांव में रहेगी राजधानी, राम भक्त ले चला रे राम की निशानीङ्घराम जब रघुवंश के वचनों का मान रखते हुए अयोध्या आने से इंकार कर देते हैं, तब भरत उनकी खड़ाऊ शीश पर उठा रोेते-बिलखते अयोध्या को निकलते हैं। सूर्यवंश की रगो में मयार्दा बहती थी। त्याग बसता था। समर्पण की भावना होती थी, तभी तो जब पिता के वचन की बात आई तो दोनों भाइयों ने ऐसा हल निकाला कि न तुम जीते न हम हारे... वाली बयार बह निकली। आखिर श्रीराम तो मयार्दा पुरुषोत्तम थे ही। पिता के वचन की लाज भी उनको रखनी थी और सूर्यवंश की रीति भी निभानी थी। सूर्यवंश की रीति-नीति यही थी कि प्राण जाए पर वचन न जाये। उधर परम त्यागी भरत कहां पीछे रहने वाले। राम के बिना अयोध्या कैसे भाती तो मांग लिया श्रीराम का खड़ाऊ और उसे लाकर अयोध्या के सिंहासन पर प्रतिस्थापित कर चले गए नंदीग्राम निवास करने। 

रामलीला के 14वें दिन इन्ही मार्मिक प्रसंगों का मंचन हुआ। अभी सब इस विमर्श में व्यस्त थे कि आखिर होगा क्या। तब राम भरत को समझाते हुए कहतें है कि रघुकुल की रीति तो तुम जानते हो। वचन पालन से बढ़कर कुछ भी नहीं। फिर तुमको भी सिर्फ एक अवधि भर की कठिनाई है। राम के समझाने पर भरत मान जाते हैं, लेकिन श्रीराम से उनकी खड़ाऊं मांगते है। भरत अयोध्या लौटने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने जाने से पूर्व चित्रकूट के पावन स्थलों को देखने की इच्छा व्यक्त की। अत्रि मुनि के कहने पर भरत ने पहाड़ के समीप स्थित एक कूप में श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए लाए गए सभी तीर्थो का जल रख दिया। मुनि ने उसको भरत कूप नाम दिया। इसकी महिमा राम ने सब को बताते हुए कहा कि इस कूप के जल के सेवन से नर जाति रोग व्याधि मुक्त रहेगी। चित्रकूट परिक्रमा के पश्चात भरत ने राम से कहा कि हमारी इच्छा पूरी हुई अब आप आज्ञा दीजिए। 

श्रीराम फिर उनको समझाते है और अपना खड़ाऊ उतार कर भरत को दिए, जिसे पाकर भरत बहुत प्रसन्न हुए और अयोध्या वापस चल पड़े। सभी को विदा करके राम अपनी कुटिया में गए और वहां चित्रकूट में राम सीता और लक्ष्मण की आरती हुई। वहां से लीला प्रेमी भरत जी के साथ अयोध्या वापस लौटे, जहां भरत ने अयोध्या के राज सिंहासन पर श्रीराम की खड़ाऊं विधिविधान के साथ स्थापित की। शत्रुघ्न को अयोध्या की जिम्मेदारी सौंपकर नंदीग्राम चले गए। 

 निकली रामबरात तो श्रद्धालुओं ने की फूलों की बरसात

लोहता के महमूदपुर गांव के छेदी साव के घर से जब राम बरात निकली तो पूरा क्षेत्र अयोध्या व जनकपुरी में तब्दील हो गया। घोड़े पर सवार चारों भाई जब निकले तो उन्हें देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। रास्ते भर श्रद्धालुओं ने फूल बरसाकर बरात का स्वागत किया और जगह-जगह चारों भाइयों की आरती उतारी गई। बरात महमूदपुर से निकलकर जनकपुर कुशवाहा नगर तक गई। 
 बड़ी बाजार में बजरंगबली के मंदिर पर बरात पहुंची तो फौजी स्पोटिंग क्लब ने बरातियों का स्वागत किया। चारों भाइयों की आरती उतारी गई। छत्तों से महिलाओं ने पुष्पवर्षा की तो जगह-जगह रोककर आरती उतारी। रामलीला समिति के अध्यक्ष त्रिलोकी नाथ दूबे ने सभी रामलीला प्रेमियों और पदाधिकारियों को धन्यवाद दिया।

रामलीला में आज 

 रामनगर: जयंत नेत्र भंग, अत्रि मुनि मिलन, विराध वध, इंद्र दर्शन, शरभंग-सुतीक्षण- अगस्त्य-गिद्धराज समागम, पंचवटी में निवास, गीता उपदेश
 जाल्हूपुर: जयंत नेत्र भंग, अत्रि मुनि मिलन, विराध वध, इंद्र दर्शन, शरभंग-सुतीक्षण अगस्त्य-गिद्धराज समागम, पंचवटी में निवास, गीता उपदेश
लोहता: श्रीराम राज्याभिषेक की तैयारी और कोप भवन
भोजूबीर: चित्रकूट में राम-भरत भेंट, भरत सभा, जनक आगमन, भरत विदाई, नंदीग्राम की झांकी
लाटभैरव: भरत का वन प्रस्थान और घंडईल पार
दारानगर: ताड़का वध, अहिल्यातारण और जनकपुर प्रवेश
मौनी बाबा: श्रीराम घंडईल