टूटना एक रिवाज का, बनारस के अलमस्त अंदाज का

टूटना एक रिवाज का, बनारस के अलमस्त अंदाज का

कुमार अजय/राहुल सावर्ण

वाराणसी (रणभेरी सं.)। रीतेपन का एक अजीब सा अहसास रविवार को उदासियों का सबब बनकर बनारस वालों के दिल तक उतर गया लगा मानो किसी पिटारे में बंद उमंग उल्लास का कोई खजाना बस यूं ही मुठ्ठी के रेत सा फिसल गया। ये बेचैनी बे-सबब नहीं थी। यह पहली बार था जब 19 वीं सदी के पूर्वाद्ध से लेकर आज के दिन तक के बीच बनारस के चार लक्खा मेलों (लाखों की भीड़ वाले) की सूची में बड़े रूआब के साथ शुमार चेतगंज के नक्कटैया जुलूस का मेला इस दफा टूट गया था यह महज एक रिवाज का टूटना भर नहीं था इसे ऐसे समझें तो बेहतर होगा कि बनारसियों की मस्त मिजाजी को सबसे अधिक रास आने वाला एक अलमस्त रतभर्रा (पूरी रात) हंगामी जश्न का छलकता कलश टूट 
गया था। चेतगंज की नक्कटैया लीला में रविवार को काशी की सबसे बड़ी रौनकों की बारात तबीयत से सजी। इस चकाचौंध में लाग-विमानों ने इजरायल युद्ध की विभीषिका से वैश्विक विषाद का आभास कराया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट रोपवे की झलक भी दिखाया। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत पर केंद्रित परम्परागत झांकी संग देव स्वरूपों के सजीव स्वरूपों ने मन मोह लिया। उत्सवी तरंगों में भिंगो देने वाले रंग-बिरंगे उजालों की हर तरफ बौछार और देशभक्ति गीतों की धुन के बीच झांकियां गजब सजी। सौ से अधिक पारंपरिक लाग विमान नक्कटैया शोभायात्रा का हिस्सा बने। पिशाचमोचन, मलदहिया, लहुराबीर, सेनपुरा, रामकटोरा, चउरछटवा, चेतगंज, बागबरियार सिंह, लहंगपुरा व कबीरचौरा मार्ग तक में पसरे मेला क्षेत्र में हजारों की भीड़ से सड़कें-गलियां पूरी रात मनसायन रहीं।

जुलूस देखने रात भर डटा हुजूम मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के प्रयाग से आई चौकियां भी अपनी आकर्षक लाइटिंग से बनारसी मेला प्रेमियों का मन मोह रही थीं। रामायण, महाभारत और शिवमहापुराण के प्रसंगों पर आधारित पारंपरिक लाग विमान अपनी शोभा के साथ शामिल हुए। मलदहिया से लहुराबीर, चेतगंज, बागबरियार सिंह होते हुए कबीरचौरा मार्ग के दोनों किनारों के घरों की खिड़िकयों, बारामदों और छतों पर महिलाओं-बच्चों का हुजूम नक्कटैया का जुलूस देखने के लिए सारी रात डटा रहा। परंपरा के अनुसार मध्यरात्रि में चेतगंज थाने के सामने नक्कटैया की शोभायात्रा का उद्घाटन हुआ।

लक्ष्मण से प्रतिशोध लेने सेना संग निकले खर-दूषण

लीला प्रसंग में सूर्पणखा आयी और अपने विवाह का प्रस्ताव पहले राम के सम्मुख रखा। उन्होंने मना किया और अपने भाई लक्ष्मण के पास भेजा तो लक्ष्मण ने भी मना कर दिया। इस पर भी सूर्पणखा नहीं मानी। वह सीता को देखकर उन पर झपटी। इससे क्रोधित होकर लक्ष्मण ने तलवार से सूर्पणखा की नाक काट दी।   इसके साथ ही पूरा क्षेत्र 'हर-हर महादेव' व 'राजा रामचंद्र की जय' के उ?द्घोष से गूंज उठा। नक्कटैया से पूर्व प्रसंग स्थल सेनपुरा मोड़ पर श्री चेतगंज रामलीला समिति के पदाधिकारियों व महिला-पुरुष भक्तों ने प्रभु राम, माता जानकी व लक्ष्मण के स्वरूपों की पूजा- अर्चना कर उनके पांव पखारे।
सेना संग निकले खर-दूषण
कटी नाक लिए सूर्पणखा भाई खर-दूषण के पास पहुंची और अपनी आपबीती सुनाई। सूर्पणखा की बात सुनकर खर-दूषण लक्ष्मण से प्रतिशोध लेने अपनी सेना के साथ निकल पड़े। खर-दूषण की सेना ही मेले में लाग-स्वांग व विमान के रूप में शामिल रहीं। विभिन्न पारम्परिक मार्गों से होते हुए खर-दूषण की सेना भगवान के रथ के पास पहुंची, जहां राम से युद्ध में दोनों भाइयों का वध हुआ।

एदवां नाहीं अइलिन धीया, मसोसत हव जिया

आज पहली बार ही यह भी रहा कि करवाचौथ का व्रत के पारण के बाद और जगह ब्याही गई चेतगंज की बेटियां नक्कटैया के आमंत्रण पर मायके नहीं आ पाईं यकीनन सोमवार की सुबह भी ऐसी पहली सुबह होगी जब नकदी त्योहारी के साथ रेवणी-चूड़ा के ठोंगो से नहीं हो पाएगी बिटिया रानियों की विदाई वाली गोदभराई।

आखिर है क्या नक्कटैया

पूरी दुनिया घूम कर वले आइये कोई जोड़ नहीं मिलेगा नक्कटैया का। किसी की नाक कटे और पूरा शहर इसका गवाह बनने जुट जाए। ऐसी उलटबांसी तो बस फक्कड़ी शहर बनारस में ही देखने को मिल सकती है। दरअसल, यह पूरा मेला मानस के एक प्रसंग विशेष शूपर्णखा नासिका छेदन का एक हिस्सा मात्र है। लीला पूरी होती है रावण की बहन शूपर्णखा की नाक कटने से शुरू होकर उसकी हिमायत मे दंडकारण्य के अधिपतियों खर-दूषण तथा त्रिशिरा की मायावी सेना के साथ ही श्रीराम पर चढ़ाई और इन तीनों राक्षसों के वध के साथ। नक्कटैया का जुलूस वास्तव में राक्षसों की सेना के श्रीराम पर आक्रमण के कूच का प्रतीक है। आज भी नक्कटैया के जुलूस की अगुवाई खर-दूषण के पुतले ही करते हैं। अभी कोई डेढ़-दो दशक पहले तक सबसे पीछे गधे के तीन मुखों वाले दैत्य त्रिशिरा का भी रथ हुआ करता था, मगर अब जुलूसों से यह पात्र गायब है। सेना चूंकि मायावी है इसलिए इसमें आपको तलवार भांजती देवी दुर्गा-काली के स्वरूपों की भी झांकी मिल जाएगी और तो और श्रीराम लक्ष्मण व हनुमान के स्वरूपों से भी नक्कटैया में भेंट हो सकती है। पुराने लोग बताते हैं कि पहले नक्कटैया के जुलूसों में राक्षसों के वेष घरे स्वांगों की ही भरकार होती थी मगर मायावी सेना के नाम पर मिले 'स्पेस' का पूरा लाभ लेते हुए समाज सुधारक संत बाबा फतेह राम ने जुलूस को आकर्षक व पैगामी झाकियों के कारवां की शक्ल दे दी। जुलूस ने उत्सवी शोभायात्रा का रूप लिया तो आयोजन को भी नए आयाम मिले। मेला क्षेत्र में पड़ने वाले टोले-मोहल्ले में आकर्षक सजावट का दौर भी शुरू हो गया। भक्ति गीतों के केंद्रीय प्रसारण की शुरूआत के साथ मेले का रंग रूप और निखर आया। मनीषियों की मानसिक भागीदारी की बदौलत नक्कटैया झाकियों की एक शोभायात्रा से कहीं आगे जनजागरण की एक अखंड ज्योति थी।