अफ्रीका से ही हुआ था दुनिया में आदि मानव का विस्तार
वाराणसी(रणभेरी)। ईस्ट इंडिया के लोग चाइनीज की तरह दिखते हैं। वेस्ट इंडिया अरबी, उत्तर के लोग गोरे और दक्षिण भारतीय लोग अफ्रीकन की तरह से लगते हैं। कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के इस बयान पर सियासी तूफान मचा हुआ है। लोगों ने उन पर रंगभेद का आरोप लगाया है। बीजेपी से लेकर तमाम ट्रोलर्स ने सैम पित्रोदा को काले-गोरे लोगों के बीच भेद भाव करने वाला इंसान बता दिया। इस मसले को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जीन वैज्ञानिकों से बात की तो पता चला कि ये भ्रम है। 70 हजार साल पूरी दुनिया में आदि मानव का विस्तार अफ्रीका से ही हुआ था। लेकिन, शरीर का रंग क्या होगा, ये हमें अफ्रीका ने नहीं बल्कि, इंडियन जियोग्राफी ने ही 25 हजार साल पहले दिया था। हमारा गोरा होना चीन से और काले होने का कनेक्शन अफ्रीका से तो बिल्कुल ही नहीं है। बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और डॉ. चंदना बासु ने शरीर के रंग और डीएनए हिस्ट्री को लेकर रिसर्च किया है।
भारत के लोगों का रंग क्या होगा, ये भारत ने ही तय किया
उन्होंने बताया, भारत के लोगों का रंग क्या होगा, ये भारत ने ही तय किया है। हमारे भूगोल और क्लाइमेट ने ही हमको नेचुरली रंग दे दिया। 70 हजार साल पहले आदि मानव के तौर पर हम अफ्रीका से निकलकर भारत आए तो सबका एक ही रंग था। लेकिन, उत्तर की ओर रहने वाले गोरे होते गए और दक्षिण की ओर खिसकने वाले सांवले।
लोगों के शरीर में बढ़ता ही चला गया मिलेनिन
आबादी बढ़ी तो लोग भारत से ही पूरे साउथ एशिया यानी कि श्रीलंका, बांग्लादेश आदि क्षेत्रों में लोग माइग्रेट होते चले गए। यह टाइम था कि उत्तर में बसे लोगों का रंग गोरा होता गया, क्योंकि जीन की यहां रहने वाले लोगों का मिलेनिन कम हो गया। दक्षिण की ओर माइग्रेट होते लोग सांवले होते चले गए। वहां का मौसम काफी गर्मी और बरसात वाला था, वहां लोगों के शरीर में मिलेनिन बढ़ता ही चला गया।
मौसम ने हमारे शरीर के रंग को नेचुरली एडॉप्ट कर लिया
मौसम ने हमारे शरीर के रंग को नेचुरली एडॉप्ट कर लिया। इसी टाइम पर हमारे अंदर एक 'एसएलसी24ए5' नाम का जीन आया, जिसने गोरा या काला होना तय किया। इसी जीन मिलेनिन को कंट्रोल कर दिया। मौसम यानी कि बारिश, गर्मी और ठंडक की वजह से बॉडी स्किन टोन भी निर्धारित हो गया।
ज्यादातर आबादी भारत में आकर बस गई
अफ्रीका से निकली ज्यादातर आबादी भारत में आकर बस गई। माइक्रोलिथिक इरा, यानी कि 35 हजार साल आदि मानवों ने छोटे और नुकीले औजार बनाने की कला सीख ली। इससे ये हुआ कि भोजन की किल्लत समाप्त हो गई। क्योंकि, नुकीले औजारों से जानवरों का शिकार करने में आसानी हो गई।