भीलों ने बांट लिए वन, राजा को खबर तक नहीं
120 बिस्वा सरकारी भीटे और तालाब की सरकारी भूमि का अवैधानिक तरीके से कर दिया वरासत
वाराणसी (रणभेरी सं.)। प्रदेश की सरकार ने पूरे राज्य में सरकारी संपत्तियों पर कब्जा जमाएं लोगों से अवमुक्त कराने के लिए सतत प्रयास में अनवरत जुटी हुई है। इतना ही नहीं बल्कि सरकार ने गाइड लाइन जारी करते हुए भी आदेश पारित किया है कि तालाब और सरकारी भीटे और चकनाला को किसी भी सूरत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। जानकारी के मुताबिक, लालपुर थाना क्षेत्र के ऐढे गांव निवासी रजनीकांत पांडेय ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अपना नाम वसीयत कराने के लिए सदर तहसील में आवेदन किया। आराजी नंबर 770 रकबा 1.137हेक्टेयर यानी 90 विश्वा सरकारी भीटे के नाम से दर्ज है और आराजी नंबर 771 रकबा 0.450 हेक्टेयर यानी 37 विश्वा जमीन श्रेणी 6-4 सुरक्षित जमीन तालाब के नाम से दर्ज है, जिसका वरासत या वसीयत किसी के नाम से नहीं किया जा सकता। लेकिन ऐढे गांव के रहने वाले रजनीकांत पांडेय पुत्र स्व. मंशाराम पांडेय ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उपरोक्त दोनों आराजी नंबर 770व 771पर वरासत नामा करने का आवेदन किया। आरोप है कि आवेदन के बाद तत्कालीन राजस्व निरीक्षक यानी क्षेत्रीय लेखपाल और सदर तहसील के कानूनगो ने रजनीकांत पांडेय से मिलकर बिना अधिकारियों की संज्ञानता के सरकारी भीटे और तालाब की जमीन पर लाखों रुपए लेकर 15 नवंबर 2021 को रजनीकांत पांडेय का नाम बतौर खातेदार के नाम से दर्ज कर दिया। जब मामले की संज्ञानता स्थानीय लोगों को हुई तो मामले की शिकायत जिलाधिकारी समेत उपजिलाधिकारी सदर से किए। एसडीएम सदर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 23 अगस्त 2024 को मामले की जांच तहसीलदार सदर को सौंपते हुए तीन दिवस के अंदर रिपोर्ट तलब किए जिसके बाद मढ़वा के राजस्व निरीक्षक यानी लेघपाल ने 27 अगस्त 2024 को अपनी रिपोर्ट देते हुए बताए कि श्रेणी 6-4 व श्रेणी 6- 1 पर अंकित जमीन जो सरकारी तालाब और भीटे की जमीन होती है उसपर नियमानुसार वरासत नहीं होना चाहिए। पूर्व में क्षेत्रीय लेघपाल और कानूनगो ने कानून के नियमों को अनदेखा करते हुए गलत तरीके से दाखिल खारिज करके नाम वरासत के आधार पर चढ़ा दिया है।
वर्तमान समय में लेघपाल का विभाग से प्रमोशन पाते हुए वर्तमान समय ने फुलवरिया ग्रामसभा के कानूनगो पद पर नियुक्त है और उस समय के कानूनगो राजेश राम अभी भी तहसील सदर में कानूनगो के पद पर तैनात है। लेकिन इतने बड़े सरकारी संपत्ति का बंदर बांट हो गया और जिले के किसी भी अधिकारी को कानो कान भनक भी नही लग सकी। वाराणसी, प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। संसदीय क्षेत्र होने के नाते यहां पर अधिकारी हमेशा अपने कार्यों के प्रति लापरवाही पूर्वक कार्य नहीं करते फिर भी इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई यह सवाल जिंदा है। वहीं जिलाधिकारी तथा उपजिलाधिकारी द्वारा अभी तक इस मामले में अपने राजस्व के कर्मचारियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही तक अमल में नहीं लाई गई, जबकि लगभग 120 बिस्वा जमीन जिसकी कीमत लगभग 80 करोड़ के रुपया में स्थानीय लोगो के मुताबिक बताई जा रही है। इतने लंबे पैमाने पर नियम और कानून का अनदेखा करते हुए लेघपाल और कानूनगो के द्वारा सरकारी जमीन को वरासत कर दिया गया जो किसी भी स्थानीय निवासियों के गले से नहीं उतर रहा है।
यह कोई वाराणसी में नया राजस्व कर्मियो का हाल नही है, इसके पूर्व राजातालाब तहसील और पिंडरा तहसील में राजस्व कर्मियो ने कितने सरकारी भीटे और तालाब की जमीन को नाम चढ़ा कर भूमाफियाओं की मिलीभगत से जमीन की खरीद फरोख्त कर चुके है। वैसे सदर तहसील में यह पहला मामला है जिसमें किसी भी उच्चाधिकारियों को मामले की संज्ञानता के बगैर अकेले दो दो राजस्व के अधिकारी ने लाखों रुपए के चक्कर में अपना ईमान बेच कर सरकारी जमीन का वरासत कर दिया।