अयोध्या का सिंहासन त्याग राम को मनाने निकले भरत

अयोध्या का सिंहासन त्याग राम को मनाने निकले भरत

 भाई का प्रेम देख छलके आंसू, सभी भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे 

वाराणसी (रणभेरी सं.)। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का मंचन जारी है। यह लीला जितनी अनोखी है, उसे निहारने वाले भक्त भी उतने ही खास हैं। उनके ठाठ भी राजशाही है। लीला में शामिल होने से पहले वो बनारसी रूप में तैयार होते है। यह सिलसिला पूरे एक महीने तक चलता है। भरत जैसा आदर्श चरित्र विरल ही मिलता है। उनके भातृ प्रेम और त्याग की युगों युगों से मिसाल दी जा रही है। कैकेई को क्या पता था कि उसके सारे स्वांग धरे रह जाएंगे। भरत उसका ऐसा प्रतिकार करेंगे। मंथरा तो शत्रुध्न के हाथों पिट भी गई। राम के बिना भरत को अयोध्या भाया ही नही सो सभी को लेकर चल दिये श्रीराम को मना कर वापस लाने। ग्यारहवें दिन के प्रसंग के मुताबिक भरत ननिहाल से अयोध्या लौटे तो कैकेई से अयोध्या का हाल पूछने लगे। कैकेई ने बताया कि सब मैंने ठीक कर दिया है बस एक काम विधाता ने बिगाड़ दिया। महाराज दशरथ सुरधाम चले गए। सारा वृतांत सुनते ही भरत कैकेई पर फट पड़े। उन्हें कुलक्षिणी और न जानें क्या क्या कह बैठे। बोले ऐसा वर मांगते समय तुम्हारी जीभ गल क्यों नही गई। बेहतर होता कि मुझे जन्म देते समय ही मार डाला होता। जब पता चला कि यह सारा खेल मंथरा का रचा हुआ है तो शत्रुघ्न उसकी चोटी पकड़ कर जमीन पर पटक देते हैं। वे उसे जमीन पर चोटी पकड़कर नचाने लगे जिसपर भरत शत्रुघ्न को ऐसा करने से मना करते हैं। भरत कहते हैं स्त्री बध से भइया श्रीराम प्रसन्न नहीं होंगे। माता की करनी सुनकर भरत अपने आप को कोसने लगे। वह कौशल्या के पास गए तो उन्होंने उनको समझाया कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। गुरु वशिष्ठ ने उन्हें समझाया कि लाभ, हानि, जीवन मरण यश, अपयश सब विधाता ही करता है इसके लिए किसी को दोष देना व्यर्थ है। जो व्यक्ति उचित अनुचित का विचार छोड़ पिता की आज्ञा का पालन करता है वह सुख का भागी होता है। वह भरत को राज सिंहासन संभालने की सलाह देते हैं। लेकिन भरत राज सिंहासन संभालने से इनकार कर देते हैं। वह परिजनों को लेकर राम को मनाने के लिए वन की ओर चल पड़े। वन में ही श्रीराम के राजतिलक के लिए चतुरंगिणी सेना और चारों तीर्थों का जल भी लेकर चलते हैं। भरत को आते देख निषाद राज का दूत उन्हें सूचना देता है कि भरत अपनी सेना के साथ आ रहे हैं तो निषादराज सेवक से अपना धनुष बाण मंगा लेते हैं। लेकिन भरत से मिलकर उनका भ्रम दूर हो जाता है। गुरु वशिष्ठ भरत को बताते हैं कि निषादराज राम के मित्र हैं। भरत जी रथ से उतरकर उनसे मिलते हैं।

निषादराज भरत के साथ सबको लेकर गंगा दर्शन कर गंगा जी को प्रणाम करते हैं। भरत की दशा देखकर निषादराज उनसे कहते हैं कि आप दु:खी मत होइए। भरत गंगा पार करके उस उस रास्ते सिर नवाते आगे बढ़े जिधर से राम गुजरे थे। सभी भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचते हैं। भोजन करने के बाद सभी वही विश्राम करते हैं। यहीं पर आरती होती है।

लाटभैरव की रामलीला में शुरू हुई राज्याभिषेक की तैयारी

श्री आदि रामलीला लाटभैरव वरुणा संगम की रामलीला अयोध्या रूपी विशेश्वरगंज में हुई। इसमें भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारी की लीला हुई। राजा दशरथ शीशे में अपने बालों को देखकर कहते हैं कि अब मैं बूढ़ा हो चला। इसके बाद गुरु वशिष्ठ को बुलाते हैं और कहते हैं कि अब रामचंद्र को युवराज का पद दे देना चाहिए और उनका राज्याभिषेक कर देना चाहिए। 

रामलीला में आज

रामनगर: भरत का यमुनावतरण, ग्रामवासी मिलन, श्रीरामचंद्र दर्शन।
शिवपुर: बाल्मीकि मिलन, चित्रकूट में विश्राम।
जाल्हूपुर: भरत का यमुनावतरण, ग्रामवासी मिलन, श्रीरामचंद्र दर्शन।
भोजूबीर: श्रृंगवेर में निषाद मिलन, केवट संवाद, चित्रकूट निवास। काशीपुरा: विवाह रामकलेवा तथा राम विदाई।
मौनी बाबा: कोप भवन।
लाटभैरव: कोप भवन ।
चित्रकूट: कोप भवन ।