भृगु की भूमि पर जातीय गोलबंदी से होगा बेड़ा पार,  बागियों की धरती पर चटख हुआ चुनावी रंग

 भृगु की भूमि पर जातीय गोलबंदी से होगा बेड़ा पार,  बागियों की धरती पर चटख हुआ चुनावी रंग

बलिया।  इस चुनाव का सबसे रोचक तथ्य यह है कि चंद्रशेखर ने भले ही अपने जीते जी इस सीट पर कभी भगवा रंग नहीं चढ़ने दिया, उन्हीं के पुत्र नीरज शेखर इस बार भगवा खेमे से मैदान में उतरे हैं। नीरज के पिता ने जो समाजवादी जमीन तैयार की थी, उसे वापस पाने के लिए सपा ने अपने पुराने ब्राह्मण चेहरा सनातन पांडेय को मैदान में उतारा है। वहीं, बसपा ने अपने कोर वोटबैंक को बचाने के लिए लल्लन सिंह यादव पर दांव लगाया है। महर्षि भृगु की धरती पर जातीय गोलबंदी भी चरम पर है। चुनाव नजदीक आने के साथ ही ब्राह्मण बहुल इस सीट पर जंग भाजपा और सपा के बीच सिमटती दिख रही है। हालांकि, शुरूआत में बसपा के लल्लन यादव अपनी बिरादरी और पार्टी के परंपरागत मतदाताओं के बल पर जंग को रोचक बनाने की कोशिश में जुटे थे, पर सनातन पांडेय के उतरने के बाद फिजा बदल गई। यादव मतदाता सपा के पाले में मजबूती से नजर आ रहा है। ऐसी स्थिति में अब मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही होने के आसार हैं। ब्राह्मण बहुल इस सीट पर आजादी के बाद से अब तक एक भी ब्राह्मण उम्मीदवार के न जीतने की मिथक को तोड़ने की पूरी कोशिश जहां सपा के सनातन पांडेय कर रहे हैं, वहीं 2014 में सपा से इस सीट को छीनने वाली भाजपा का कब्जा बरकरार रखने के लिए नीरज शेखर भी जूझ रहे हैं। ऐसे में विरासत को बचाने और मिथक को तोड़ने की जंग बेहद दिलचस्प हो चली है। 2019 के लोकसभा चुनाव से अब की परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं। बिना किसी लहर के हो रहे चुनाव में जातीय गोलबंदी चरम पर है। वहीं, अपने-अपने दलों के परंपरागत मतदाताओं को सहेजने के साथ ही दूसरे दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश हो रही है। दूसरी बात यह भी है कि 2019 में 453,595 मत पाने वाले सपा के सनातन पांडेय को भाजपा बड़ी मशक्कत से महज 15,519 मतों के अंतर से हरा पाई थी।  मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट कटने में उनकी कम मार्जिन से जीत को भी एक आधार बनाया गया था। ध्यान रखने वाली एक बात यह भी है कि 2019 में सपा का बसपा के साथ तालमेल था। बसपा का हर सीट पर अपने कोर वोटरों का एक अच्छा आधार है। इसलिए इस बार सनातन के सामने सबसे बड़ी चुनौती बसपा के अलग हुए वोट बैंक की कमी को पूरा करना भी है। अब बात क्षेत्र के जनता की। ब्राह्मण समाज इस बार अपनी जाति की तरफ देख रहा है। फेफना विधानसभा क्षेत्र के थम्हनपूरा के रहने वाले अभय दुबे खुद को भाजपा का समर्थक बताते हैं, पर उनका कहना है कि इस बार ब्राह्मण समाज में मुख्य रूप से दो बातों की अधिक चर्चा हो रही है। पहला- 2019 में करीब 15 हजार वोटों से सनातन पांडेय के हारने की बात ब्राह्मण समाज के गले नहीं उतर रही है। चर्चा में कहा जा रहा है कि सनातन को जबरदस्ती हराया गया था। दूसरा-लोग यह मान रहे हैं कि उम्रदराज हो चुके सनातन पांडेय की संभवत: यह अंतिम पारी होगी। इसलिए इन दोनों कारणों से ब्राह्मण समाज में सनातन पांडेय के प्रति सहानुभूति की लहर दिख रही है। इसी क्षेत्र के सगरपल्ली बाजार में चाय की दुकान पर मिले राम उग्रह तिवारी कहते हैं, दिल्ली में तो हम लोग मोदी को ही चाहते हैं, लेकिन यहां सनातन पांडेय का आखिरी चुनाव है, इसलिए भाजपा एक सीट हार भी जाएगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बैरिया बाजार में चाय की दुकान पर मिले रामदुलार राजभर कहते हैं, जब सभी पिछड़े भाजपा के साथ ही जा रहे हैं। हमारे समाज के नेता ओम प्रकाश राजभर को तो भाजपा ने मंत्री ही बना दिया है। ऐसे में हम किसी को धोखा नहीं देंगे।


पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर है सपा का कब्जा
लोकसभा सीट में बलिया नगर, बैरिया, फेफना और गाजीपुर के दो विधानसभा क्षेत्र मोहम्मदाबाद और जहूराबाद शामिल हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट बलिया सदर में भाजपा विजयी रही। तीन सीट बैरिया, फेफना और गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में सपा के विधायक जीते। जहूराबाद सीट सुभासपा के खाते में है।


जातीय समीकरण
एससी     15.5%
ब्राह्मण     15%
क्षत्रिय     13%
यादव     12%
मुसलमान     8.03%
भूमिहार     8%
एसटी     2.6%