अंगद ने चूर-चूर किया रावण का अभिमान

अंगद ने चूर-चूर किया रावण का अभिमान

राम दूत का पैर तक नहीं हिला सके असुर योद्धा, रावण की सभा में बोले अंगद, प्रभु श्रीराम के चरण पकड़ने से होगा उद्धार

वाराणसी (रणभेरी सं.)। अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। फिर रावण तो इसके वशीभूत ही हो गया था। प्रभु से बैर न लेने की सबकी सलाह उसे नागवार गुजर रही थी। रामजी की वानरी सेना कहने को वानरों की थी। इसमें एक से बढ़कर एक शूरवीर थे। हनुमान ने इसकी बानगी दिखा ही दी थी। आज जब अंगद की बारी आई तो उन्होंने तो रावण के हर छोटे बड़े शूरमा को लज्जित तो किया ही रावण का भी मानमर्दन कर दिया। इसके साथ ही युद्ध टलने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई। रामलीला के 21वें दिन अंगद विस्तार की लीला हुई। समुद्र पार करने के बाद राम की सेना लंका में प्रवेश करती है। जामवंत की सलाह पर युद्ध टालने के लिए राम ने अंगद को दूत बनाकर रावण को समझाने के लिए भेजा। उधर, रावण के दूत ने उसे बताया कि राम सेना सहित लंका में प्रवेश कर गए हैं। वह राम की सेना का वर्णन करता है। यह सुनकर वह अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श करता है। उसके मंत्री उसको इससे न डरने की सलाह देते हुए कहते हैं कि बानर, भालू तो हमारे आहार हैं। राम अपनी सेना के साथ सुवेलगिरी पर्वत पर डेरा डालकर विभीषण से विचार विमर्श करते हैं। रावण अपने विचित्र महल में बैठकर नाच गाना सुनता है। उसी समय राम एक बाण मारते हैं, जिससे उसका छत्र, मुकुट, और कर्णफूल गिर जाते हैं। यह देखकर उसकी सभा डर जाती है। वह सभी से शयन करने के लिए कह कर अपने महल में चला गया। मंदोदरी भी उसे समझाती है कि श्रीराम से बैर मत लो, लेकिन वह उसके औरत होने का मजाक उड़ाता है। राम के कहने पर रावण को समझाने लंका पहुंचे अंगद को रावण अपनी सभा में बुलाता है। अंगद ने उसे समझाया कि राम से बैर मत करो और सीता को उन्हें सौंप दो। वह तुम्हारे अपराध को क्षमा कर देंगे। यह सुनते रावण गुस्से से आगबबूला हो गया। दोनों के बीच जमकर शब्द बाण चलते हैं। रावण अपने वीरों से अंगद को पकड़ने के लिए कहता है तो अंगद भरी सभा में अपने पैर जमा कर ललकारते हैं कि तुम में से कोई भी भूमि से मेरा पैर उठा दे तो राम बिना युद्ध किए वापस चले जाएंगे। मैं सीता को हार जाऊं। रावण के बड़े से बड़े शूरवीर उनका पांव हिला तक न सके। थक-हारकर रावण खुद उनका पांव उठाने के लिए उठ खड़ा होता है, जिस पर वह कहते हैं कि मेरे नहीं राम के पांव छुओ, वही तुम्हारा कल्याण करेंगे। यह कह कर वह राम के पास वापस लौट आते हैं। अंगद राम को सब बात बताते हैं। वह राम से उसके दल का पुरुषार्थ उसकी सेना का वर्णन तथा उसके चारों फाटकों की सुरक्षा के बारे में बताते हैं। यहीं पर आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया।

लक्ष्मण ने काटी सूपनखा की नाक

काशी के लक्खा मेलों में शुमार लाटभैरव की प्रख्यात नक्कटैया सोमवार की अर्द्ध रात्रि कड़ी सुरक्षा में उल्लासपूर्ण ढंग हुआ। नक्कटैया का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी व विशिष्ट अतिथि नागरिक सुरक्षा के उपनियंत्रक नरेंद्र शर्मा ने किया। नक्कटैया का जूलूस परम्परागत ढंग से विशेश्वरगंज से उठकर अम्बियांमंडी, हनुमान फाटक, गोस्वामी तुलसी दास मार्ग, लाटभैरव होते हुए सरैया गई जहां खर-दूषण युद्ध व वध एवं सीता हरण लीला का मंचन हुआ। नक्कटैया जुलुस के आगे बाजे-गाजे के साथ सूर्पणखा व उसके पश्चात खर एवं दूषण के पुतले के साथ ही हाथी, घोड़े व ऊंट का झुंड फिर तलवार भाजती काली के विविध चेहरे और इनके बीच में बैंड, शहनाई आदि के कई समूह चल रहे थे। शोभायात्रा में करीब 85 लाग, विमान व स्वांग आदि थे, जिसमें काली तांडव, ताड़का वध, गोवर्द्धन पूजा, साईं बाबा, महिषासुर मर्दिनी के प्रदर्शन की चौकी की लोगों ने सराहना की। जुलुस में लगभग चार सौ वर्ष पुराना बुढ़िया-बुढ़वा के चेहरे बच्चे-बड़ो सबके आकर्षण के केंद्र रहे। 

रामलीला में आज

रामनगर: चारों फाटक की लड़ाई, लक्ष्मण पर शक्ति का प्रयोग व प्रतिकार।
शिवपुर: श्रीजानकी अनिविषणार्थ, बानर गमन, समुद्र तट पर विश्राम।
जाल्हूपुर: चारों फाटक की लड़ाई, लक्ष्मण पर शक्ति का प्रयोग तथा प्रतिकार।
 तुलसीघाट: शूर्पणखा विरूपकरण (नक्कटैया), खरादिवध, सीताहरण।
 औरंगाबाद: संपाती से भेंट, लंका दहन, सीता जी से हनुमान का संवाद
 लाटभैरव: कबंध वध, सेवरी मंगल, हनुमान मिलन, सुग्रीव-मिताई।