ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनी दोनों पक्षों की दलीलें, अब अगली सुनवाई 6 जुलाई को

ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनी दोनों पक्षों की दलीलें, अब अगली सुनवाई 6 जुलाई को

(रणभेरी): ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई 6 जुलाई तक के लिए टाल दी। हाईकोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलों को सुना और करीब 30 मिनट चली सुनवाई के बाद जस्टिस प्रकाश पाड़िया की सिंगल बेंच इस विवादित मामले की सुनवाई अब 6 जुलाई को करेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मुस्लिम पक्षकार हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में दोनों पक्षकारों की ओर से कुल छह याचिकाएं दाखिल की गई हैं। बहस पूरी होने पर यूपी सरकार का भी पक्ष रखने की तैयारी है।

इसके पहले सुनवाई शुरू होते हुए वाराणसी की जि अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद के हो रहे सर्वे और सर्वे को लेकर को हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों से स्थिति जाननी चाही। कोर्ट को बताया गया कि सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होगी। जबकि, निचली अदालत के आदेश पर सोमवार को भी सर्वे का काम हुआ। मंदिर पक्ष की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी पेश हुए। उन्हाेंने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में एक बड़ा शिवलिंग मिला है। निचली अदालत ने उस एरिया को सील करा दिया है। 

अधिवक्ता ने तर्क दिया कि  सन 1936 में दीन मोहम्मद, मोहम्मद हुसैन व मोहम्मद जकारिया ने बनारस की अधीनस्थ अदालत में वाद दायर किया था। इसमें मौजा शहर खास, परगना देहात अमानत, बनारस गाटा संख्या 9130,  एक बीघा नौ बिस्वा छह धूर, चबूतरा, पेड़, पक्का कुआं आदि को वक्फ संपत्ति घोषित करने और अलविदा नमाज पढ़ने अनुमति देने का अनुरोध किया गया था। अधिवक्ता के मुताबिक कोर्ट ने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण यह वाद खारिज कर दिया था।इसके खिलाफ हाईकोर्ट में प्रथम अपील दायर हुई। उसमें केवल याची को नमाज पढ़ने की राहत मिली थी, जिसका फायदा दूसरा कोई नहीं उठा सकता। वह आदेश सामान्य मुसलमानों के लिए नहीं है। इसलिए वक्फ संपत्ति हिंदुओं के विरुद्ध नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि याची पक्ष सुप्रीम कोर्ट के जिन पांच जजों की पीठ के फैसले पर भरोसा कर रहा है, जबकि राम जन्म भूमि वाले मामले में सात जजों की पीठ का फैसला ज्यादा महत्वपूर्ण है। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में वह अधिक प्रभावी है।