लक्षचण्डी महायज्ञ के 21वें दिन शुरू हुई 8 दिवसीय काशी कथा
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी में संकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर में महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज के सानिध्य में कोरोना महामारी के शमन के लिए चल रहे 51 दिवसीय विराट श्री लक्षचण्डी महायज्ञ की श्रृंखला में 21वें दिन से परम् गोपनीय काशी कथा की शुरूआत की गई। कथा वाचक पं विश्वेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने कथा का आरम्भ करते हुए बताया कि काशी का महात्म्य तो अति विस्तृत है और इसके सभी पुराणों का वर्णन भी अत्यंत कठिन है। इस लिए स्कन्द पुराण के काशी खंड का ही वर्णन किया जाएगा।
उन्होंने काशी कथा के उपक्रम में प्रथम अध्याय का वाचन करते हुए सर्वप्रथम पुराण में वर्णित गणेश वंदना का वर्णन किया गया है। क्योंकि गणेश जी भगवान शंकर के अतिप्रिय पुत्र हैं, जिन्हें समस्त देवी देवताओं में प्रथमेश का स्थान दिया गया है। द्वितीय श्लोक में उन्होंने बताया कि काशी का वंदन किया गया है, जिसमें बताया गया है कि काशी का स्वरूप सर्वत्र है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में है। लेकिन भगवान शंकर ने काशी को विशेष क्षेत्र का वरदान दिया है। ताकि आम जनमानस को मोक्ष की प्राप्ति हो सके। न जन्म न मरण काशी की पुनस्थिति प्राप्त करना मात्र ही ब्रह्मतत्त्व है। कथा से पुर्व विधिवत पूजन अर्चन कर व्यासपीठ की स्थापना की गई। इस अवसर पर स्वामी प्रखर महाराज ने कहा कि सम्पूर्ण काशी भगवान विश्वनाथ हैं।
काशी की धरती और काशीवासी सभी भगवान विश्वनाथ के स्वरूप हैं। आज इसी पवित्र काशी में भगवान विश्वनाथ के चरित्र का वर्णन होने जा रहा है। इसमें सबसे विशेष यह है कि विश्वेश्वर के द्वारा ही विश्वेश्वर का वर्णन हो रहा है और ऐसे महा विद्वान के द्वारा काशी कथा सुनने का सुअवसर ही परम् सौभाग्य की बात है। इस दौरान कथा सुनने वालों की बड़ी संख्या में भीड़ रही। वहीं देर रात्रि वृंदावन के श्री राधा सर्वेश्वरी समूह द्वारा आयोजित रासलीला में मंगलवार को पूतना प्रसंग का का मंचन किया गया। कार्यक्रम में स्वामी पूर्णांनाद महाराज, डॉ सज्जन प्रसाद तिवारी, महायज्ञ समिति के अध्यक्ष कृष्ण कुमार खेमका, सचिव संजय अग्रवाल, कोषाध्यक्ष सुनील नेमानी, संयुक्त सचिव राजेश अग्रवाल, डॉ सुनील मिश्रा, अमित पसारी समेत अन्य लोग मौजूद रहे।