... और देखते ही देखते दुर्गाकुंड के तट पर खड़ी हो गई अवैध आलिशान इमारत 

... और देखते ही देखते दुर्गाकुंड के तट पर खड़ी हो गई अवैध आलिशान इमारत 
  • जोनल संजीव कुमार ने लगवा दी पौराणिक क्षेत्र की भी बोली
  • दुर्गा मंदिर व कुंड के इर्द गिर्द धड़ल्ले से खड़ी हो रही अवैध इमारतें 
  • विकास प्राधिकरण ने काशी की सुंदरता को बट्टा लगाने में नहीं छोड़ा कोई कसर 
  • गंगा के तट से लेकर हाई फ्लड लैंड तक लम्बी फेहरिस्त है अवैध निर्माण की 
  • भ्रष्टाचार और मक्कारी की सीमाओं के अतिक्रमण में अव्वल निकलें संजीव कुमार 

सरकारी राजस्व में लग रही जबर्दस्त सेंध फिर भी गांधी जी के बंदर बने हैं अपने वीसी साहब 

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी): काशी की धरती पर जितनी प्राचीनता है, उतनी ही बेशर्मी से आज आधुनिक भ्रष्टाचार भी पनप रहा है। गंगा के पावन तट से लेकर ऐतिहासिक कुंडों तक, हर ईंच ज़मीन अब नीलामी के कगार पर है लेकिन यह नीलामी सरकारी मंच पर नहीं हो रही, बल्कि अधिकारियों की ‘सेटिंग टेबल’ पर हो रही है। इसकी ताज़ा मिसाल है प्राचीन एवं पौराणिक महत्त्व वाले दुर्गा मंदिर एवं कुंड के समीप (आनंद पार्क के ठीक सामने) खड़ी हुई एक बहुमंज़िला अवैध इमारत, जिसके पीछे की पूरी पटकथा भ्रष्टाचार की कुरूप सच्चाई बयां करती है। यह इमारत काशी के उस हिस्से में खड़ी हुई है, जो धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक सहित ऐतिहासिक रूप से भी संवेदनशील माना जाता है। रवींद्रपुरी-दुर्गाकुंड मार्ग, जो कुंड से चंद कदम की दूरी पर स्थित है, वहीं यह निर्माण हुआ वह भी बिना किसी वैध स्वीकृति के।

रणभेरी गुंजी तो जोनल ने कर ली डील 

करीब तीन महीने पहले आपके अपने अखबार‘गूंज उठी रणभेरी’ ने इस निर्माण को उजागर किया था। फोटो सहित प्रकाशित खबर में स्पष्ट बताया गया था कि यह इमारत बिना किसी वैध नक्शे के, कुंड के बिल्कुल बगल में खड़ी की जा रही है। खबर छपते ही क्षेत्र में हलचल मच गई लेकिन यह हलचल भी एक ‘स्क्रिप्टेड ड्रामा’ साबित हुई। मसला डील में तब्दील हो गया। वीडीए के जोनल अधिकारी संजीव कुमार अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ मौके पर पहुंचे, निर्माण को रुकवाया, इमारत को सील किया गया। देखने वाले खुश हुए कि प्रशासन जाग गया। मगर हकीकत कुछ और थी सीलिंग सिर्फ़ दिखावा थी, अंदरखाने सौदेबाज़ी शुरू हो चुकी थी। विभागीय सूत्रों की मानें तो यह पूरी प्रक्रिया ही विकास प्राधिकरण के अफसरों की नौटंकी ही थी ताकि निर्माणकर्ता को दबाव में लाकर मोटी रकम वसूली जा सके। एक तरफ जनता को दिखाया गया कि कार्रवाई हो रही है, दूसरी ओर पर्दे के पीछे जोनल अधिकारी संजीव कुमार अपने ईमान की बोली लगाने में व्यस्त थे। सूत्र बताते हैं कि इसी डील के तहत हर महीने 15 लाख रुपए की दर से तीन महीनों में कुल 45 लाख की रिश्वत ली गई। इसके बदले, सील खोल दी गई, निर्माण फिर से शुरू हुआ, और आज वह इमारत लगभग पूरी तरह खड़ी हो चुकी है।

पहले 

अब 

धार्मिक आस्था वाले पौराणिक स्थल को ठेंगा

दुर्गाकुंड सिर्फ़ एक स्थल नहीं, काशीवासियों के आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यही वह जगह है जहां काशी की आस्थावान जनता माता दुर्गा के साथ साथ पवित्र कुण्ड के दर्शन को आती है। जहां विभिन्न त्योहारों के दौरान भारी भीड़ होती है, और जिसे हर सरकार संरक्षित क्षेत्र घोषित करती आई है। ऐसे स्थान के बिल्कुल सटे हुए क्षेत्र में आलीशान होटलनुमा इमारत खड़ी करना न सिर्फ़ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि काशी की सांस्कृतिक विरासत के साथ धोखा है। और सबसे बड़ा धोखा यह है कि यह सब कुछ हुआ उस अफसर की देखरेख में, जिसे इस क्षेत्र की सुरक्षा और नियमन की जिम्मेदारी दी गई थी। हम बताते चले कि भ्रष्टाचार की इस कहानी को लिखने वाले अफसर विकास प्राधिकरण के ज़ोन-4 के वही जोनल अधिकारी संजीव कुमार ही है जिनके कुकर्मों और भ्रष्टाचार से हम नितदिन पर्दा उठा रहे हैं।

सेटिंग, दलाली और वीसी साहब की चुप्पी...गांधी जी के बंदर बने अधिकारी

काशी की जो धरती पावन है जहां के कण कण में काशीवासियों की आस्था टिकी है, वहां हो रहे काले कारनामों पर आज सरकारी नुमाइंदे आंखें मूंदे बैठे हैं। आंखें भी, कान भी और ज़ुबान भी, जैसे गांधी जी के तीन बंदर। फर्क बस इतना है कि गांधी के बंदरों का संदेश नैतिकता था, और यहां इनका उपयोग भ्रष्टाचार को ढकने के लिए किया जा रहा है। इस पूरे खेल में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं —वीडीए के जोन-4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार और उनके 'मौन गुरु' विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष।

तो चुप्पी की कीमत थी 45 लाख या ईमान की ?

रणभेरी द्वारा खबर छापे जाने के बाद की गई सीलिंग कार्रवाई वास्तव में एक सौदे की शुरुआत थी। विभागीय सूत्रों के अनुसार, इस अवैध निर्माण को सुचारू रूप से पूरा करवाने के लिए संजीव कुमार ने हर महीने 15 लाख रुपये की दर से तीन महीने में 45 लाख रुपये वसूले। यह रकम किसे-किसे बांटी गई, यह जांच का विषय हो सकता है, लेकिन यह तय है कि अकेले संजीव कुमार इस भ्रष्टाचार के शिखर पर नहीं हैं। ऐसे में यह सवाल बेहद जरूरी हो जाता है कि क्या विकास प्राधिकरण के वीसी साहब को इस पूरे खेल की जानकारी नहीं थी ? या फिर उन्होंने जानबूझकर अपनी आंखें मूंद रखी हैं ?

वीसी साहब की चुप्पी और साजिश की गूंज चहुंओर 

प्राधिकरण के उच्च स्तर पर बैठे अधिकारियों की चुप्पी संदेह को गहरा करती है। एक तरफ, सीएम योगी आदित्यनाथ अवैध निर्माण पर जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं, दूसरी ओर उनके ही अफसर ऐसे निर्माण को संरक्षण दे रहे हैं वह भी पवित्र स्थलों के तट पर। वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। जब रवींद्रपुरी-दुर्गाकुंड मार्ग पर तीन मंजिला अवैध निर्माण दिनदहाड़े हो रहा था, तब क्या वीसी साहब को इसकी सूचना नहीं थी ? जब रणभेरी अखबार ने खबर छापी, तब भी क्या कोई संज्ञान नहीं लिया गया ? दरअसल, संजीव कुमार की तरह ही वीडीए में कई अधिकारी एक दूसरे की ढाल बन चुके हैं। आज जोनल अधिकारी की दलाली चल रही है, कल वही अधिकारी वीसी की कुर्सी पर बैठ सकता है। यही सोच कर कोई भी वरिष्ठ अफसर नीचे के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता। यह चुप्पी संज्ञाहीनता नहीं, बल्कि संलिप्तता की गवाही देती है। यह उसी गठजोड़ की निशानी है जिसे वाराणसी के लोग सेटिंग-गेटिंग कहते हैं।
इस गठजोड़ में बिल्डर, जोनल अधिकारी, इंजीनियर, क्लर्क से लेकर वीसी तक शामिल हैं। सबका हिस्सा तय है, सबकी चुप्पी खरीदी जाती है। अब सवाल यह नहीं कि यह इमारत कैसे खड़ी हुई, बल्कि यह है कि कितने अधिकारियों की ईमानदारी बिक चुकी है ? और सबसे अहम... क्या सीएम योगी को इसका कोई संज्ञान है ?

आय से अधिक संपत्ति का बादशाह संजीव कुमार 

जोनल संजीव कुमार की संपत्ति का ग्राफ उनकी नौकरी की आय से कहीं ऊपर छलांग मार चुका है। सूत्र बताते हैं कि लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, नोएडा सहित कई जगहों पर उनके और उनके रिश्तेदारों के नाम से ज़मीनें, फ्लैट और दुकानें खरीदी गई हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से अधिकांश संपत्तियां पिछले 4-5 वर्षों में खरीदी गई हैं। ठीक उसी समय जब संजीव कुमार को विकास प्राधिकरण के संवेदनशील क्षेत्रों का जोनल अधिकारी नियुक्त किया गया।

अवैध निर्माण का सिंडिकेट और संजीव कुमार की बादशाहत

काशी में ज़मीन नहीं बिक रही, सिस्टम बिक रहा है। और इस सिस्टम को नीलाम करने वाले सबसे बड़े नीलामीकार बन चुके हैं विकास प्राधिकरण के जोन-4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार। यह सिर्फ एक अफसर नहीं, बल्कि अवैध निर्माण का एक पूरा सिंडिकेट चला रहे हैं, जिसमें नकली नक्शे, फर्जी फाइलें, बंद आंखें और भारी रकम शामिल है। भेलूपुर जोन में आज कोई भी निर्माण कार्य बिना संजीव कुमार की सहमति के संभव नहीं। चाहे वह रवींद्रपुरी-दुर्गाकुंड मार्ग हो या फिर गंगा का किनारा। हर जगह एक ही नाम गूंजता है... सेटिंग हो गई है संजीव कुमार से। एचएफएल क्षेत्र, जो गंगा से बेहद करीब है और अति-संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है, वहां भी बहुमंज़िला इमारतें बन रही हैं। बिना नक्शा पास हुए, बिना अनुमति, और बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के। और ये सब कुछ हो रहा है संजीव कुमार की निगरानी में। सूत्रों के अनुसार, संजीव कुमार के इशारे पर कई बिल्डरों ने पुराने अप्रूव्ड नक्शों में हेराफेरी करके नए नक्शे तैयार किए हैं। ये नक्शे प्राधिकरण की रिकॉर्डिंग में नहीं हैं, लेकिन निर्माण ज़मीन पर होता है। जब कोई शिकायत करता है, संजीव साहब अपने लाव-लश्कर के साथ पहुंचते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, कुछ पाइप उखाड़ते हैं, और फिर लौट आते हैं।

संजीव कुमार का एक्शन का नाटक और कलेक्शन' का खेल

बेलगाम बिल्डिंगों पर सीलिंग की कार्रवाई एक नाटक मात्र है। इसका उद्देश्य अवैध निर्माण रोकना नहीं, बल्कि सेटिंग रेट तय करना है। एक बार सीलिंग हो गई, फिर बिल्डर समझ जाता है... अब खेल शुरू हुआ है। रेट तय होता है। जगह के हिसाब से 10 लाख से 50 लाख तक। और फिर शुरू होता है निर्माण का सुरक्षित दौर। कोई नहीं आता रोकने, कोई फाइल नहीं चलती, कोई जांच नहीं होती। इस पूरे खेल में सिर्फ कानून नहीं टूट रहा बल्कि सरकार का राजस्व भी लूटा जा रहा है। बिना नक्शा पास हुए भवन बनने का मतलब है न तो डेवलपमेंट शुल्क दिया गया, न कंपाउंडिंग, न म्युनिसिपल टैक्स, न कमर्शियल कन्वर्जन। और इससे नुकसान किसे है ? सरकार को, जनता को, काशी को।

पार्ट -25 

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए... सीएम योगी की निति को सद्दाम ने दे दी मात