पत्नी का पति को वैवाहिक अधिकारों से दूर रखना क्रूरता, अलग कमरे में रहने पर की टिप्पणी

 पत्नी का पति को वैवाहिक अधिकारों से दूर रखना क्रूरता, अलग कमरे में रहने पर की टिप्पणी

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक विवाद के मामले में कहा कि जब पत्नी अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दे और उसे अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है, तो वह उसे उसके वैवाहिक अधिकारों से वंचित करती है और यह क्रूरता के समान है। इस अहम टिप्पणी के साथ कोर्ट ने पति की तलाक की अपील मंजूर कर ली।पति ने कहा था कि उसकी पत्नी ने उसे

अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर किया था और धमकी दी थी कि अगर वह उसके कमरे में प्रवेश करेगा तो वह आत्महत्या कर लेगी और उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराएगी। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह फैसला लखनऊ के पति की पारिवारिक मामले में दाखिल अपील को मंजूर करते हुए दिया। पति ने अपील में पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। पारिवारिक न्यायालय ने पति के खिलाफ फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पत्नी ने वैवाहिक संबंध तब त्याग दिया था जब वह अलग कमरे में रहने पर जोर दे रही थी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पत्नी अभी भी घर में रह रही है या बाहर, क्योंकि पति ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह उसे अपने कमरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देती है।
दोनों का विवाह 2016 में हुआ था। महिला की यह पहली, लेकिन पुरुष की दूसरी शादी थी। 2018 में पति ने तलाक के लिए पहले पारिवारिक अदालत में इस आधार पर दावा दाखिल किया था कि दोनों के बीच संबंध केवल 4-5 महीने तक सामान्य रहे थे। उसके बाद उसकी पत्नी ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया था। हालांकि पत्नी शुरू में पारिवारिक न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुई थी, लेकिन बाद में उसने उपस्थित होने के लिए समन का पालन नहीं किया और इस तरह मुकदमा एकतरफा पति के खिलाफ निर्णीत हुआ।

जनवरी 2023 में पारिवारिक न्यायालय ने पति के खिलाफ फैसला सुनाकर निष्कर्ष दिया था कि उसने अपनी पत्नी द्वारा दी गई धमकियों का विस्तृत विवरण नहीं दिया था या यह सिद्ध नहीं किया कि ऐसी घटनाएं लगातार हो रही थीं। इसके खिलाफ पति ने राहत के लिए हाईकोर्ट में गुहार की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक देने के लिए क्रूरता के आधार को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। ऐसे में पति के तलाक के दावे को खारिज करने का पारिवारिक अदालत का फैसला कानून की नजर में ठहरने योग्य नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के निर्णय को रद्द कर पति के पक्ष में फैसला सुनाया।