सीएम के चहेते चौकीदार कब दिखाएंगे अपनी ईमानदारी ?

सीएम के चहेते चौकीदार कब दिखाएंगे अपनी ईमानदारी ?
  • जोनल से लेकर वीडीए वीसी तक पूरे शहर में करवा रहे अवैध निर्माण 
  • वीडीए बोर्ड के सदस्य में सीएम योगी के भी तीन दूत नहीं कर पा रहे निगरानी ?
  • अवैध निर्माण पर क्यों आंख मूंदे है अम्बरीष सिंह भोला, साधना वेदांती और प्रदीप अग्रहरि!
  • कही वीडीए के भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा तो नहीं बन चुके हैं सीएम के तीन दूत !

अजीत सिंह
 

वाराणसी (रणभेरी सं.)। काशी...एक ऐसा शहर, जिसकी पहचान सिर्फ घाटों, मंदिरों और आध्यात्मिक चेतना से नहीं, बल्कि उसके संघर्षशील और जागरूक नागरिकों से भी जुड़ी है। यह वही काशी है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "भविष्य और विरासत का संगम" कहा था। लेकिन इसी विरासत पर अब वीडीए (वाराणसी विकास प्राधिकरण) के खुले संरक्षण पर अवैध निर्माणकतार्ओं की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है। शहर में हर तरफ सीमेंट-कंक्रीट के अवैध पहाड़ सिर्फ इमारतें नहीं हैं, बल्कि यह चीखती हुई गवाही हैं, सरकारी संरक्षण में पनप रहे भ्रष्टाचार की। चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरी लूट में वे लोग भी मौन दर्शक बने हुए हैं, जिन पर जनता और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भरोसा था। वीडीए बोर्ड के तीन सदस्य...अम्बरीष सिंह भोला, साधना वेदांती और प्रदीप अग्रहरि, जिन्हें ह्यमुख्यमंत्री के दूतह्ण कहा जाता है, वे इन तमाम अनियमितताओं के बीच बिल्कुल खामोश हैं। इनके खिलाफ न कोई कार्रवाई, इनके द्वारा भ्रष्टाचार का न कोई विरोध, न ही जनहित में इनका कोई बयान। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ये ह्यचौकीदारह्ण अब सत्ता और सिस्टम के बीच एक अहम बन चुके हैं ? बीते दो वर्षों में वाराणसी में अवैध निर्माण की रफ्तार के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। गंगा किनारे से लेकर, यहां तक कि नक्शा पास न होने वाले एचएफएल जोन तक में धड़ल्ले से निर्माण हो रहे हैं। हैरत की बात यह है कि इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए जिÞम्मेदार संस्थान खुद ही इस लूट का हिस्सा बन चुके हैं। वीडीए के हर जोनल अफसर की भूमिका लगातार सवालों के घेरे में है। कभी फर्जी मानचित्र को पास कराने, तो कभी फजीर्वाड़े से जमीन की स्थिति बदलवाने के गंभीर आरोप उन पर लगते रहते हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ लीपापोती ही होती है और वीसी पुलकित गर्ग, जिनके अधीन वीडीए का पूरा प्रशासनिक ढांचा काम करता है वे तो पूरी तरह से मौन धारण किए हुए हैं। आरोप है कि उनकी मौन स्वीकृति के बिना एक भी अवैध निर्माण संभव भी नहीं। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार चेतावनी देते हैं कि गंगा के किनारे अवैध निर्माण बर्दाश्त नहीं होंगे, लेकिन हकीकत में उनकी चेतावनियों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यह जानना भी अब जरूरी है कि सीएम ने जिन तीन लोगों को वाराणसी में वीडीए की निगरानी की जिम्मेदारी दी, उन लोगों ने अपना आंख कान और मुंह आखिर किस मजबूरी में बंद कर लिया।

 सीएम के दूत या भ्रष्ट व्यवस्था के हिस्सेदार ?

जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) बोर्ड में अपने तीन विशिष्ट प्रतिनिधियों... अम्बरीष सिंह भोला, साधना वेदांती और प्रदीप अग्रहरि की नियुक्ति की थी, तब यह माना गया था कि ये लोग विकास को पारदर्शिता और जनहित के रास्ते पर लाएंगे। मुख्यमंत्री ने इन्हें जनता और शासन के बीच एक जिम्मेदार सेतु के रूप में देखा था। लेकिन आज सवाल है... क्या ये चौकीदार सचमुच जनता के रखवाले हैं या वीसी-पदाधिकारियों की शह पर भ्रष्टाचार के मूक साक्षी ?

वीडीए वीसी पुलकित गर्ग की चुप्पी है जहर?

वीडीए के वर्तमान उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग पर सवालों की झड़ी लग चुकी है। उनके कार्यकाल में वाराणसी में अवैध निमार्णों का ग्राफ जिस तेजी से ऊपर चढ़ा है, वह किसी संयोग का हिस्सा नहीं हो सकता। गंगा किनारे होटल, रेस्टोरेंट और कमर्शियल काम्प्लेक्स बनाने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हाई फ्लड लेवल जोन में भी निर्माण चल रहा है, जबकि यह इलाका पूरी तरह निषिद्ध है। कई निर्माण बिना नक्शा पास कराए शुरू हो जाते हैं और फिर वीसी कार्यालय से मैनेज होकर वैधता का लबादा ओढ़ लेते हैं। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि पुलकित गर्ग की सीधी जानकारी में कई ऐसे निर्माण हो रहे हैं जिन्हें नियम के तहत तत्काल रुक जाना चाहिए था, लेकिन उन निमार्णों पर कार्रवाई की जगह उन्हें संरक्षण दिया गया। सवाल यह है कि क्या यह प्रशासनिक चूक मात्र है, या फिर एक योजनाबद्ध भ्रष्टाचार ! वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग की चुप्पी अवैध निमार्णों की रेस के लिए जहर बनती जा रही है।

जोनल अधिकारी मतलब...नियमों के सौदागर

अगर वाराणसी में होने वाले अवैध निर्माण के लिए कोई जिम्मेदार चेहरा तलाशा जाए, तो सबसे पहले विकास प्राधिकरण के जोनल अधिकारी का ही नाम आता है। बात जोन-4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार की हो या दशाश्वमेध जोन के जोनल सौरभ देव प्रजापति। इनके कार्यकाल में भेलूपुर, चेतगंज, दशाश्वमेध, रामघाट, नगवां और गंगा किनारे सटे कई क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण हुए हैं। बिना नक्शा, बिना अनुमति और बिना किसी कानूनी वैधता के। सद्दाम, अल्ताफ और रिजवान जैसे दर्जनों भूमाफिया प्रवृत्ति के लोग इनके इलाके में खुलेआम बहुमंजिला इमारतें बना रहे हैं। मानचित्र स्वीकृत न होने पर भी बिजली-पानी के कनेक्शन हो रहे हैं, पाइपिंग से लेकर प्लास्टर तक कोई रोकने वाला नहीं। जोनल अधिकारी की मंजूरी के बिना एक भी ईंट नहीं लग सकती, यह बात हर स्थानीय बिल्डर जानता है। सूत्र बताते हैं कि संजीव कुमार ह्यरेडी टू पेह्ण बिल्डरों से सीधा सौदा करते हैं। नक्शा पास हो या न हो, निर्माण रुकता नहीं। जो रिश्वत नहीं देता, उस पर कार्रवाई की तलवार तुरंत लटका दी जाती है। यह एक समानांतर सत्ता है, जहां नियमों की नीलामी होती है।

क्या सीएम के खासमखास बन चुके हैं वीडीए सिंडिकेट का हिस्सा ?

यह सवाल अब जमीन से उठकर शासन तक पहुंच चुका है कि क्या सीएम के नाम पर नियुक्त किए गए ये प्रतिनिधि अब भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन चुके हैं ? अगर नहीं, तो फिर उनकी निष्क्रियता और चुप्पी की वजह क्या है ? क्यों ये लोग गंगा किनारे, नागवा, भेलूपुर, अस्सी, सोनारपुरा, चेतगंज, और दशाश्वमेध क्षेत्र में हो रहे हाईराइज निमार्णों को लेकर चुप हैं ? क्यों कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होती, क्यों जनता को रिपोर्ट नहीं दी जाती ? काशी में अवैध निर्माण की बाढ़ केवल इमारतें नहीं उगा रही, यह आम आदमी की उम्मीदें भी कुचल रही है। जो लोग अपने मोहल्ले, गली, और घाट को बचाने की गुहार लेकर जिम्मेदार अफसरों और बोर्ड सदस्यों तक पहुंचते हैं, उन्हें या तो टरका दिया जाता है, या उन्हें विरोधी तत्व मानकर डराया-धमकाया जाता है।

प्रदीप अग्रहरि...अपनी साख और पद का भी नहीं कर रहे लिहाज?

प्रदीप अग्रहरि की गिनती भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी में होती है। वीडीए बोर्ड का सदस्य होने के साथ ही उन्हें हाल में ही पार्टी ने अध्यक्ष पद से नवाजा है।अब वीडीए मामले में उनकी चुप्पी सबसे अधिक रहस्यमयी मानी जा रही है, क्योंकि अवैध निमार्णों से जुड़े सबसे ज्यादा लाभ व्यापारिक वर्ग को ही मिलते हैं। सूत्रों की माने तो प्रदीप अग्रहरि के कुछ करीबी रिश्तेदार भी प्रॉपर्टी और कंस्ट्रक्शन के कारोबार में हैं। क्या इसलिए उन्होंने कभी वीडीए अधिकारियों पर सवाल नहीं उठाए ? क्या उनकी चुप्पी का कोई व्यापारिक लाभ छिपा है ?

वीडीए बोर्ड के सदस्य चुप, अधिकारी बेलगाम

जनता यह पूछ रही है कि जब मुख्यमंत्री के तीन-तीन विशेष प्रतिनिधि (भोला, वेदांती, अग्रहरि) बोर्ड में बैठे हैं, तो उनकी जिम्मेदारी क्या है ? क्या वे जनता से मिलने के लिए बैठते हैं? क्या वे हर महीने कोई सार्वजनिक संवाद करते हैं ? उत्तर है...नहीं। कोई जन-सुनवाई नहीं होती। कोई पारदर्शी रिपोर्ट नहीं आती। कोई जोनल टीम जनता के सामने नहीं जाती। तो फिर आम आदमी जाए तो कहां? अदालत, मीडिया या आत्मसमर्पण ?

अम्बरीष सिंह भोला...महज नाम या संलिप्त समर्थन ?

भोला को हिंदू संगठनों के साथ उनकी नजदीकी और सीएम योगी के प्रति निष्ठा के लिए जाना जाता है। लेकिन बीते दो वर्षों में उन्होंने वाराणसी में हो रहे अवैध निमार्णों को लेकर एक बार भी सार्वजनिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया। ना कोई दौरा, ना कोई निरीक्षण, ना कोई पत्रकार वार्ता। सूत्र बताते हैं कि भोला वीडीए की बैठकों में मौन रहते हैं और केवल औपचारिक मुद्दों पर सहमति जताते हैं। सवाल उठता है क्या उनका यह मौन किसी दबाव का परिणाम है या भ्रष्टाचार के प्रति एक अनकहा समर्थन ?

साधना वेदांती... चुप्पी या समझौते की मजबूरी ?

साधना वेदांती का नाम भी उन लोगों में है जिनसे नैतिक नेतृत्व की अपेक्षा थी। लेकिन जब गंगा किनारे होटल, रेस्टोरेंट और रिवरव्यू प्रोजेक्ट्स ने आध्यात्मिक काशी की आत्मा को छलनी कर दिया, तब भी उनकी ओर से कोई आपत्ति नहीं आई। क्या सीएम के खासमखास के रूप में वे नहीं जानतीं कि गंगा किनारे का स्वरूप बदलना हमारी संस्कृति के साथ विश्वासघात है ? क्या उन्हें यह नहीं दिख रहा कि नक्शा पास किए बगैर गरीबों के अस्पताल को बेचकर एक आलिशान होटल का निर्माण कराया जा रहा है। चुप्पी उनकी भूमिका को सवालों के घेरे में ला रही है, क्योंकि साधना अगर बोलतीं, तो शायद आवाज शासन तक पहुंचती, पर वो भी भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा बन अपने निजी आय में वृद्धि को ही विकास समझ रही है। जबकि जिस मेहता अस्पताल को फर्जी दस्तावेज तैयार करके बेचा गया और होटल निर्माण कर दिया गया वह उसी क्षेत्र में आता है जिस क्षेत्र की जनता ने एक नहीं बल्कि दो दो बार उन्हें अपने वोटों की ताकत से पार्षद के रूप में चुनाव जीताकर मिनी सदन भेजने का काम किया था।

सीएम के चहेते चौकीदार की चुप्पी...संलिप्तता या बेबसी ?

अम्बरीष सिंह भोला, साधना वेदांती और प्रदीप अग्रहरि... तीनों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विश्वासपात्र माना जाता है। लेकिन जब अवैध निर्माण की बात आती है, तो ये तीनों न केवल मौन रह जाते हैं, बल्कि अक्सर ऐसे मामलों में निष्क्रियता ही नजर आती है। जनता और मीडिया से सवालों पर टालमटोल, वीडीए बोर्ड की बैठकों में आवश्यक निर्णयों से बचाव, जोनल अधिकारियों की मनमानी पर चुप्पी। वीडीए बोर्ड सदस्यों के रूप में ये लोग नीतिगत स्तर पर जिम्मेदारी लेते हैं, जिसमें अवैध निमार्णों को रोकना, पारदर्शिता सुनिश्चित करना, और सिस्टम की जवाबदेही बनाना शामिल है। पर असलियत में ये जिम्मेदारियां कबूलने से बचते नजर आते हैं।

पार्ट - 23

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए...
जोनल संजीव कुमार की शह पर हो रहा गली गली अवैध निर्माण