बनारस के इस कब्रिस्तान में 'उमराव जान' को किया गया था सुपुर्द-ए-खाक
वाराणसी (रणभेरी): बेजोड़ थिरकन से देश-दुनिया को मुरीद बनाने वाली मशहूर नृत्यांगना उमराव जान को सोमवार दोपहर काशी में याद किया गया। मौका था उनकी 85वीं बरसी का। सिगरा स्थित दरगाह-ए-फातमान में उनके मकबरे पर लोगों ने फातिहा पढ़ा और पुष्पवर्षा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उमराव जान ने अपना अंतिम समय बनारस में ही गुजारा था। 26 दिसंबर, 1937 में इसी शहर में अंतिम सांस ली थी। 'कितने आराम से हैं कब्र में सोने वाले, कभी दुनिया में था फिर फिरदौस में, अब लेकिन कब्र किस अहले वफा की है अल्लाह-अल्लाह... ये पंक्तियां हैं उमराव जान अदा की, जिन्हें दुनिया एक नृत्यांगना के रूप में जानती है। सिनेमाई परदे की चमकदार शख्सियत उमराव जान के असल किरदार की 85वीं बरसी सोमवार को मनाई गई।
सामाजिक संस्था डर्बीशायर क्लब की ओर से दोपहर में फातमान स्थित उमराव जान की कब्र पर फातिहा पढ़ी और गुलपोशी की गई। क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर ने बताया कि अपनी अदाकारी से उमराव जान ने उस दौर के नवाबों, रजवाड़ों से लेकर आम जनमानस तक पर गहरी छाप छोड़ी थी। उमराव जान पर बनी दो फिल्मों पर भी उन्होंने रोशनी डाली। कहा कि फैजाबाद में ही उमराव ने गीत संगीत और नृत्य की शिक्षा ली। उमराव के किरदार को मशहूर निर्देशक मुजफ्फर अली ने बड़े पर्दे पर देश दुनिया के सामने पेश किया तो उमराव का किरदार भारतीय सिनेमा में अमर हो गया। अंतिम समय में अकेलेपन से दुखी होकर उमराव वाराणसी आ गई थीं और अपनी शोहरत की बुलंदियों और दुनिया को छोड़कर 26 दिसंबर 1937 को हमेशा के लिए चली गईं। बरसी के अवसर पर वक्ताओं ने सरकार से उमराव जान की के मकबरे को संरक्षित और सुंदरीकरण करने की मांग की।