संघटक महाविद्यालयों में पीजी के 15 पाठ्यक्रम होंगे बंद
प्रयागराज। यूजीसी रिसर्च रेगुलेशन-2020 के अनुसार जो शिक्षक पीएचडी हैं और उनके तीन पेपर यूजीसी या पीयर रिव्यूड जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं, वे अपने विषय में पीएचडी करा सकते हैं। इसके लिए पीजी के पाठ्यक्रम की कोई अनिवार्यता नहीं है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के संघटक महाविद्यालयों में परास्नातक (पीजी) के जिन विषयों में आवंटित सीटों के मुकाबले छात्र-छात्राओं की संख्या आधे से कम है, वहां नए सत्र से संबंधित पाठ्यक्रम को हटाया जा रहा है। एकेडमिक कौंसिल के इस निर्णय के बाद चर्चा शुरू हो गई थी कि इसका असर पीएचडी पर भी पड़ेगा, लेकिन यूजीसी रेगुलेशन-2020 के अनुसार इस निर्णय का पीएचडी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यूजीसी रिसर्च रेगुलेशन-2020 के अनुसार जो शिक्षक पीएचडी हैं और उनके तीन पेपर यूजीसी या पीयर रिव्यूड जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं, वे अपने विषय में पीएचडी करा सकते हैं। इसके लिए पीजी के पाठ्यक्रम की कोई अनिवार्यता नहीं है। इविवि के सूत्रों के मुताबिक संघटक महाविद्यालयों और खासतौर पर महिला महाविद्यालयों में पीजी के कुल 15 विषय ऐसे हैं, जहां आवंटित सीटों के मुकाबले विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है। कुछ पाठ्यक्रमों में तो केवल दो या तीन विद्यार्थी ही पंजीकृत हैं। इसके अलावा यूजीसी की एक शर्त यह भी है कि पीजी का पाठ्यक्रम चलाने के लिए संबंधित विषय में न्यूनतम चार शिक्षक होने चाहिए। कॉलेजों में पीजी के पाठ्यक्रम सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित किए जाते हैं। ऐसे में छात्रों की फीस से इतना भी नहीं मिल पा रहा कि इन पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए अलग से शिक्षक रखे जाएं।
शिक्षा की गुणवत्ता हो रही प्रभावित
कुछ महाविद्यालयों में अधिकतम दो या तीन शिक्षक हैं। उन्हें स्नातक की पढ़ाई भी करानी है। अतिरिक्त कार्य के मद्देनजर वे नियमित रूप से पीजी या यूजी की क्लास नहीं ले पा रहे और इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इन्हीं कारणों से पीजी के 15 पाठ्यक्रम नए सत्र से बंद करने का निर्णय लिया गया है,लेकिन इन विषयों में शिक्षकों को पीएचडी कराने का मौका मिलेगा। पीजी के जिन विषयों में विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों की हालत सबसे खराब है। सूत्रों का कहना है कि संघटक महाविद्यालयों में मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र और प्राचीन इतिहास जैसे विषयों की हालत भी अच्छी नहीं है। अगर कॉलेज भविष्य में इन विषयों में न्यूनतम प्रवेश लेने की स्थिति में होंगे तो इन विषयों की वापसी हो सकती है।