आज छठ पूजा के दूसरे दिन गुड़ की खीर खाकर शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत, घाटों पर बनी वेदिकाएं

आज छठ पूजा के दूसरे दिन गुड़ की खीर खाकर शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत, घाटों पर बनी वेदिकाएं

वाराणसी (रणभेरी): कार्तिक शुक्ल की पंचमी यानी आज महापर्व डाला छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसे खरना, शुद्धिकरण , लोहंडा या संझत भी कहा जाता है। महिलाओं ने आज सुबह 3 बजे शरबत पीकर व्रत की शुरुआत की। शाम को चूल्हे पर बनी गुड़ की खीर खाएंगी। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।आज पूरे घर के भोजन के सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाएगा। लहसुन-प्याज का उपयोग नहीं होगा। खरना का अर्थ है शुद्धिकरण, इसलिए भोजन गरिष्ठ या तामसिक प्रवृत्ति का नहीं होगा। श्रद्धालु साक्षात देव भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने की गुहार लगाएंगे। 28 को नहाय खाय के साथ महापर्व का श्रीगणेश हुआ।

30 को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। 31 अक्तूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होगा।  काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य ज्योतिषाचार्य पं. दीपक मालवीय ने बताया कि छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्तूबर को चतुर्थी तिथि में नहाय खाय से हो गई है। 29 अक्तूबर यानी पंचमी तिथि यानि आज महिलाएं खरना करेंगी। इस दिन सुबह से लेकर शाम तक महिलाएं व्रत रखती हैं और सूर्यास्त के बाद मीठा भात या लौकी की खिचड़ी खाकर व्रत खोलती हैं। तीसरे दिन 30 अक्तूबर को षष्ठी पर्व पर व्रत रखने वाले सायंकाल गंगा तट पर या किसी जल वाले स्थान पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे। दूसरे दिन भोर में 31 अक्तूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण किया जाएगा। पं. मालवीय ने बताया कि षष्ठी तिथि 30 अक्तूबर को प्रात: काल 5.49 बजे लग रही है जो 31 अक्तूबर को प्रात: काल 3.27 बजे तक रहेगी। 30 अक्तूबर को सूर्यास्त शाम को 5.38 बजे होगा और 31 अक्तूबर को सूर्योदय प्रात: 6.32 बजे होगा। अरुणोदय काल में दूसरे अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होगा।

क्या होता है खरना ?

छठ पूजा में दूसरे दिन को “खरना” के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं। खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण। खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बाँट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, जिसकी वजह से इसे “संध्या अर्ध्य“ कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं भोर में सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री-पानी पीती हैं। 

छठ पूजा का चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को छठ पूजा संपन्न हो जाती है। 31 अक्टूबर को तड़के व्रती अपने परिवार के साथ घाट पर आती हैं। उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ठंडे पानी में उतर जाती हैं। अर्घ्य देने के बाद परिवार के लोग घाट पर बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं। फिर आसपास के लोगों में प्रसाद का वितरण कर महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।

वाराणसी के अस्सी से लेकर BLW के सूर्य सरोवर तक लोगों ने वेदिकाएं बनाकर जगह घेर दिया है। कुछ वेदिकाओं पर नगर निगम का लोगो भी रंग दिया गया है। जिसको जहां पर जगह मिली, वहीं पर स्थान घेरकर दीया प्रज्ज्वलित कर दिया है। वहीं बैठ स्थान की रखवाली भी कर रहे हैं। कुछ लोगों ने कब्जा बना रहे इसके लिए वेदिकाओं के चाराें ओर नगर निगम से लेकर यूपी पुलिस तक के लोगो तक बनाए हैं। साथ ही लोग परिवार के साथ मिलकर ठोकुआ, फल-फूल तैयार कर रहे हैं। बांस की बहंगी बाजार से खरीदकर लाई गई हैं। गन्ना और पूजा के सामान तैयार किए जा रहे हैं। वहीं, रविवार शाम से लोगों का घाटों पर आना शुरू हो जाएगा। इसको लेकर वाराणसी के गंगा घाटों, सरोवरों और तालाब पर तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है। साफ-सफाई अभी ढंग से नहीं हो पाई है, मगर आयोजकों का कहना है कि कल शाम तक सब कुछ चकाचक मिलेगा।