नाथ न रथ नहि तन पद त्राना, केहि विधि जितब बीर बलवाना
वाराणसी (रणभेरी सं.)। युद्ध में अपना सब कुछ गंवाने के बाद रावण के पास कोई विकल्प नहीं बचा। उसके आगे बढ़ते ही कई अपशकुन होते हैं जिसे नजरअंदाज कर वह आगे बढ़ता है। युद्ध के मैदान में आते ही रावण ने श्रीराम की सेना को विचलित कर दिया। रावण महाप्रतापी तो था ही, लेकिन माया रचना भी खूब जानता था। इसलिए तो जब वह युद्ध के लिए रणभूमि पहुंचा तो विभीषण श्रीराम से पूछ बैठे कि प्रभु आप के पास न रथ है न सारथी। आखिर जीतेंगे कैसे। युद्ध में अपना सब कुछ गंवाने के बाद बाद रावण के पास खुद युद्ध करने के अलावा कोई विकल्प नही बचा था। सो आना पड़ा उसे युद्ध मैदान में। रावण था तो प्रचंड योद्धा। आते ही उसने श्रीराम की सेना को विचलित कर दिया। रामलीला के चौबीसवें दिन श्रीराम रावण युद्ध के प्रसंग मंचित किये गए। रावण युद्ध के लिए आता है। अपनी सेना से कहता है कि लड़ाई से जिसका मन हट गया हो वह अभी से भाग जाए। लड़ाई के मैदान से भागने में भलाई नहीं है। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर बैर को बढ़ाया है। इसका जवाब भी मै स्वयं दूंगा। उसके आगे बढ़ते ही कई अपशकुन होते है जिसे नजरअंदाज कर वह आगे बढ़ता है। दोनों सेनाओं के साथ ही राम और रावण के बीच युद्ध होने लगता है। राम को पैदल युद्ध करते देख विभीषण राम से कहते है कि आप प कैसे विजय प्राप्त करेंगे। तब राम उनसे कहते है कि सुरता और धैर्य रथ के पहिए है। सत्य शील और दृढ़ता ध्वजा पताका है। ज्ञान, बल, इंद्रियों को जीतना और परोपकार रथ के घोड़े है। जो क्षमा और दया रूपी रस्सी से जुड़े है। ईश्वर का भजन उस रथ का सारथी है। बैराग्य रूपी ढाल संतोष रूपी तलवार दान रूपी फरसा और बुद्धि रूपी धनुष है। निर्मल और अचल मन तरकस है। नियम संयम तीर है। ब्राह्मण गुरु की पूजा कवच है। इसी उपाय से लक्ष्मण काट देते है। वे अपने बाण से उसके रथ को काट देते है।
रावण मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ता है। मूछी हटने पर वह लक्ष्मण पर ब्रह्मा की दी हुई प्रचंड शक्ति का प्रयोग करता है। जिससे वह विकल होकर गिर पड़ते है। रावण उन्हें उठाने लगा लेकिन वह उससे उठते नही। यह देखकर हनुमान रावण को एक घूंसा मारते है तो वह मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। मूर्छा हटने पर हनुमान के बल की प्रशंसा करता है। राम लक्ष्मण से कहते है कि हृदय में ऐसा समझो कि तुम देवताओं की रक्षा करने वाले और काल को भी खाने वाले हो। लक्ष्मण तुरन्त उठ रावण का रथ नष्ट कर देतें है।
उलट-पुलट लंका सब जारी, कूद पड़ा पुनि सिन्धु मझारी
चिरईगांव स्थानीय ब्लाक की रामबाग (गोकुलपुर) की श्रीरामलीला में बृहस्पतिवार को लंका दहन की लीला का मंचन किया गया। जब वानरी सेना माता सीता की खोज करते हुए भूख प्यास से विकल हो जाती है तो हनुमान सबको एक गुफा में ले जाते है, जहां श्राप के कारण स्वंप्रभा निवास करती थी तो उनसे आज्ञा लेकर जल पीकर सभी वापस आते हैं, तभी संपाती उनको घेर लेता है और सभी डर जाते है। अंगद गिद्ध राज जटायु की कथा सुनाते है तो संपाति उनसे कहते है कि डरो मत मैं और जटायु दोनों भाई हैं और सूर्य के प्रभाव से मेरे पंख जल गए, तुम लोग मुझे समुद्र के पास ले चलो, मैं जटायु को तिलांजलि दूंगा। इसके बदले में सीता का पता बता दूंगा। संपाती लंका की स्थिति बताते हैं तो सभी फिर से निराश हो जाते है कि समुद्र को कौन लांघ सकता है, तब जामवंत हनुमान से कहते है कि संसार में ऐसा कौन सा कार्य है, जो तुम नही कर सकते हो। इतना सुन हनुमान पर्वत के समान हो जाते है जय श्रीराम के नाम की गर्जना करते हुए समुद्र को लांघते हैं। रास्ते में सुरसा नाम की राक्षसी, मैनाक पर्वत से भेंट होती है सभी का सामना कर हनुमान लंका पहुंच जाते हैं। हनुमान अशोक वाटिका में सीता को देखते हैं, देखकर हनुमान श्रीराम की अंगूठी गिराते है तो सीता उसे पहचान लेती हैं, हनुमान को सामने आने को कहती है तो वे सामने आकर श्रीराम का संदेश सुनाते है। रावण हनुमान को पकड़ने के लिए मेघनाथ को भेजता है। मेघनाथ ब्रह्मवाण से हनुमान को बांध ले जाता है।