गली से घाटों तक फैला है नशे का जाल
वाराणसी (रणभेरी सं.)। धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस नशे की गिरफ्त में है। घाट हो या पक्का महाल की गलियां हर जगह नशा और नशा करने वाले मौजूद हैं। कला, संस्कृति और शिक्षा की नगरी में नयी पीढ़ी काली कमाई से बर्बाद हो रही है। बड़े पैमाने पर सैलानी भी नशे के जाल में फंसे हैं। बाबा विश्वनाथ के नाम पर गांजे की कश लगाने वाले अधिकांश साधु नशे के कारोबार के करियर हैं। बनारस बिहार और झारखंड को जोड़ता है। यहां से तस्कर नशे का सामान लेकर आसानी से काशी पहुंच जाते हैं। बांग्लादेश से हेरोईन पश्चिम बंगाल के रास्ते बनारस आती है। पाकिस्तान से नशे का सामान नेपाल के रास्ते यहां आता है। शहर में खपत होने के साथ ही यहां से नशे का सामान दूसरे शहरों और प्रदेशों तक पहुंचता है।
डीआरआई के अनुसार बनारस में नशे के कारोबार में कई अंतराज्यीय गिरोह सक्रिय हैं। यह गांजा, भांग, अफीम, हेरोइन, चरस का अवैध व्यापार कर रहे हैं। आए दिन इनकी गिरफ्तारियां भी होती हैं। एक आंकलन के अनुसार वाराणसी शहर में हर महीने करीब 30 कुंतल गांजा और 50 किग्रा हेरोइन की खपत हो रही है। जबकि, हर रोज दस हजार लीटर से अधिक अवैध शराब की सेल होती है। भांग की खपत तो कई कुंतल है। बिहार और बंगाल से आने वाले गांजे की खपत भांग के ठेकों पर होती है। जबकि, अवैध तरीके से अफीम और हेरोइन पुडिय़ों में बिकती है। हेरोइन की पुडिय़ा महिलाएं बच्चे उपलब्ध कराते हैं। घाटों पर मौजूद साधु वेशधारी भी नशे की तस्करी में अहम भूमिका निभाते हैं।
काशी में कश आम बात है। काशी के घाटों पर साधू से लेकर नशेड़ी तक आराम से चिलम उठाए कश लगाते मिल जाएंगे।
काशी में लगभग 30 के आसपास भांग की लाइसेंसी दुकानें हैं। भांग की इन दुकानों की आड़ में चोरी छिपे गांजा की बिक्री होती है। काशी के घाटों पर दिन दहाड़े और रात के अंधेरे साधु, विदेशी और युवा कश खींचते मिल जाएंगे। घाट व घाट से सटी संकरी गलियों में नशे का सामान आसानी से मिल जाता है। कई विदेशी तो सिर्फ कश लगाने के चक्कर में काशी की गलियों व घाटों की खाक छानते हैं। काशी में इसे बाबा का प्रसाद मानकर इसका सेवन करने वालों को खोजने की जरूरत नहीं। काशी में चवन्नी, अठन्नी और रुपया गांजे के लिये कोड वर्ड के रूप में इस्तेमाल होता है।
नशे के गिरफ्त में युवा पीढ़ी भी
बनारस के बिगड़े युवाओं में नशे का सेवन कोई नई बात नहीं है। लेकिन, जब किशोरवय बच्चे यानि टीनएजर्स ही सिगरेट, बियर, शराब गांजा व भांग को आजमाने लगे व फिर आहिस्ता-आहिस्ता लती हो जाए तो बनारस के भविष्य का क्या होगा? यह सवाल सभी के जेहन में बरबस ही बिजली के तरह कौंधना लाजमी है कि जिस उम्र में टीनएजर्स को खेलने-कूदने, पढने-लिखने व अन्य पाजिटीव हॉबी को डेवलेप करना चाहिए।
उस उम्र में ये टीनएजर्स क्लास बंक कर, कोचिंग के बाद, पार्टी के नाम पर, डिसेंट व कूल दिखने के के साथ मौज व फन के लिए शहर के एकांत में गांजा, सिगरेट फूंकते हैैं व भांग, बियर, शराब का सेवन करते हैैं। साइकाटिस्ट के अनुसार शुरूआत में मौजमस्ती के लिए टीनएजर्स द्वारा ट्राई किए जाने वाले नशे कब उनकी आदत में शुमार हो जाता है। इस बैड हैबिट की परवाह तक नशेड़ी बन रहे टीनएजर्स तक को नहीं होती है।
एसएसपीजी के मानसिक ओपीडी में प्रति महीने 10 से 12 केस टीनएजर्स में नशे के सेवन के आते हैैं। इनमें समाज के मिडल क्लास से लेकर पॉश इलाके के बच्चे शामिल होते हैैं।
गांजे से जा सकती है यादाश्त
गांजे के इस्तेमाल और यौन आनंद पर अभी तक कोई वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं है, लेकिन बनारस शहर में लोगों के बीच इसका चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति तब है जब हमें ऐसे शोध अक्सर पढ़ने को मिल जाते हैं जो बताते हैं कि गांजे के इस्तेमाल से पुरुषों की यौन शक्ति प्रभावित होती है। जो लोग रोजाना गांजे का सेवन करते हैं उनमें सेक्स संबंधी समस्या दोगुनी रफ्तार से बढ़ती हैं, यादाश्त भी जा सकती है।