बनारस में मोक्ष द्वार पर लाशों का ठेलम ठेल
- मणिकर्णिका घाट पर दुर्व्यवस्थाओं का आलम
- बेकदरी के साथ जलायी जा रही हैं लाशें
- गहरी आस्था के साथ दूर दराज से आने वाले हो रहे हैं निराश
- बेबसी के साथ दे रहे है अपनों को अंतिम विदाई
वाराणसी (रणभेरी): किसी ने लिखा है "कैसा है ये ठेलम ठेल, जीवन में आने-जाने का खेल" लेकिन यह खेल आज यथार्थ के रूप में मौजूद है काशी के मणिकर्णिका घाट पर। जी हां, काशी का मणिकर्णिका घाट जिसे मोक्ष का द्वार कहा जाता है, लोग दूर-दूर से यहां केवल मोक्ष की कामना लिए आते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति काशी में मरेगा या जिसका अंतिम संस्कार काशी में होगा उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होगी। लेकिन आज मरने के बाद मोक्ष की अभिलाषा लिए शवों को मोक्ष के द्वार पर ही दुर्व्यवस्थाओं के बीच घंटो इंतजार करना पड़ रहा है।
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कारीडोर बनकर तैयार है। एक ओर जहां काशी विश्वनाथ कारीडोर को संवारने में सरकार ने कोइ कसर बाकि नहीं रखा वहीं दूसरी ओर इसी कारीडोर से लगायत ऐतिहासिक शवदाह स्थल मणिकर्णिका घाट मूल-भूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। शासन-प्रशासन की अनदेखी की मार झेल रहा यह स्थल वैसे तो वर्ष पर्यंत दुर्व्यवस्थाओं का शिकार रहता है लेकिन इन दिनों जबकि गंगा नदी अपने उफान पर है ऐसे में मणिकर्णिका घाट के हालात बदसे बदतर हो गए है।
घाट की तरफ जाने वाले रास्ते बेहद खस्ताहाल है। नगर निगम की अनदेखी की वजह से संकरी संकरी गलियाँ जहां क्षतिग्रस्त स्थिति को प्राप्त हो चुकी है वहीं वर्त्तमान में बाढ़ की वजह से इन्ही गलियों में लकड़ी की दुकानें भी लगा ली गईं हैं। मणिकर्णिका घाट की ओर जाने वाली गलियों के पत्थर और इंटरलाकिंग भी धस के ऊबड़ खाबड़ हो गए हैं जिसकी वजह से कंधे पर शव लेकर चलने वाले शवयात्रियों को चलने में भी बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानी दुकानदारों की माने तो यहाँ अक्सर कंधे पर लाश लेकर आने वाले लोग जर्जर गलियों की वजह से गिराकर चोटिल हो जाते है।
बाढ़ के पानी की वजह से मणिकर्णिका घाट शव यात्रियों को अपने शवों के साथ गली में ही लाइन लगानी पड़ती है और घंटो इंतजार करना पड़ रहा है। इंतजार के दौरान उन्हें पीने के लिए पानी या शौच के लिए शौचालय की भी व्यवस्था सुदृढ़ नहीं हो पाई है। जिससे दूर दराज से आए हुए शव यात्रियों को बहुत ही कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि वर्तमान समय में काशी में बाढ़ ने भी दस्तक दे दी है। जिससे शवों को जलाने वाले सभी प्लेटफार्म डूब गए हैं। शवों का संस्कार घाट के ऊंचाई पर बने शव दाह गृह में हो रहा है, जहां और भी कम स्थान है इस वजह से लोगों को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। स्थान कम होने की वजह से यहाँ लाशों को बेकदरी के साथ जलाया जाता है जिसकी वजह से गहरी आस्था के साथ दूर दराज से आने वाले लोग निराश होकर जाते है जीवन के अंतिम सफर में अपनों को सम्मान के साथ विदा करने की सोच के साथ अपने गमजदा कन्धों पर अपने प्रिय की लाश को लेकर मणिकर्णिका घाट आने वाले लोग बेहद बुरे एवं दू:खद अनुभव को अपने साथ लेकर वापिस जाते है। स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित हो रहे विश्वनाथ कारीडोर के ठीक बगल में मणिकर्णिका घाट की यह तस्वीर बेहद दु:खद और शर्मसार करने वाली है, इस पर स्थानीय जनप्रतिनिधी सहित नगर निगम के अधिकारियों को भी ध्यान देने की जरूरत है। जीवन के अंतिम सफर में अपनों को सम्मान के साथ विदा करने की सोच के साथ अपने गमजदा कन्धों पर अपने प्रिय की लाश को लेकर मणिकर्णिका घाट आने वाले लोग बेहद बुरे एवं दू:खद अनुभव को अपने साथ लेकर वापिस जाते है ।
''यह ऐतिहासिक स्थल प्रशासनिक निकम्मेपन की जीती जागती दास्तान सुनाने को काफी है। यहाँ करोड़ो करोड़ रुपए से दर्शनार्थियों के लिए विश्वनाथ कारीडोर को तो खूब संवारा गया लेकिन अंतिम संस्कार स्थल मणिकर्णिका को पूरी तरह से नजर अंदाज किया गया। यहाँ आने वाले शवयात्रियों को कदम-कदम पर तकलीफों के सिवा कुछ हासिल नहीं होता। काशी वासियों की आस्था को दुर्व्यवस्थाओं के पहाड़ तले रौंदा जा रहा है।''
अजीत सिंह (पार्षद)
नगर निगम वाराणसी